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हम बैठोल हैं!...

                                  बैठोल-शास्त्र 


जी, हम बैठोल हैं! लेकिन कोई कुछ काम करता दिखता है तो हमें उसमें हजार कमी दिख जाती है। जैसे कि यह बन्दा यह काम कर ही क्यों रहा है जब हम नहीं कर रहे? जरूर कोई बेईमानी का काम होगा! क्योंकि सबसे ईमानदारी का काम तो कुछ न करना है। उसे कोई बड़ा मुनाफ़ा हो रहा होगा...कोई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़ा होगा। क्या पता किसी पार्टी के इशारे पर यह सब काम कर रहा हो। आखिर, इसके पास पैसा कहाँ से आता है यह सब करने, दौड़ने-धूपने का जबकि हम घर में बैठे-बैठे भी कंगाली महसूस करते हैं?...

          सोचो तो, हम एकदम सही सोचते हैं! पूरी दुनिया भी तो ऐसा ही सोचती है। बिना फायदे के, मुनाफ़े के कोई कहीं कुछ काम करता है? इसलिए जरूर कोई ऐसा काम कर रहा है, जनता का-किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों को एकजुट करने, उन्हें जोड़ने के लिए चप्पलें घसीट रहा है तो कोई बहुत बड़ा फायदा, बल्कि स्वार्थ होगा! देखिए न, हम निःस्वार्थ भाव से अपने घर में बैठे हैं। यहाँ तक कि जब तक मजबूरी न हो जाए, घर में झगड़े की नौबत न आ जाए, घर के बाहर पाँव रखना भी गवारा नहीं करते!

आखिर दुनिया मायाजाल ही तो है। लोग मजाक उड़ाते हैं संत मलूकदास का, लेकिन हम कहते हैं, उन्होंने एकदम ठीक कहा था-

                 अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।

                 दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।।

हाँ, राम नाम से याद आया। अगर कुछ करना ही है तो भजन करो- राम नाम जपो। 'जै श्रीराम' या 'अल्लाह-ओ-अकबर' के नारे लगाओ। मंदिरों-मस्जिदों की बलि-बलि जाओ। देखो न, आजकल संतों-महात्माओं-बाबाओं की बल्ले-बल्ले हो रही है। यह काम नहीं, निष्काम की महिमा है। निष्काम मतलब जिसके पास कोई काम नहीं हो या जिसका कोई और काम करने का जी न चाहे सिवाय भजन के, भक्ति के, पूजा-नमाज़ के! इसे ही हम निष्काम-कर्म समझते हैं, इसीलिए घर पर बैठे रहते हैं! कहा भी तो गया है- 'जब ज़िन्दगी में हो आराम तो नए-नए आइडियाज़ आते हैं!'...

आप भी घर बैठिए। बैठोल-शास्त्र का पारायण कीजिए। आपका भी कल्याण होगा। हमारा हो रहा है!..

                                ★★★★★★

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