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सेंगोली-राजा मुर्दाबाद, लोकतंत्र ज़िंदाबाद!

                         राजतन्त्र नहीं,                 लोकतंत्र है यह! तो यह भूमिका बनाई जा रही है?...राजतन्त्र स्थापित किया जाएगा? जवाहलाल नेहरू की आत्मा को भी अपने दुष्चक्र में घसीट लाया गया?..कहा गया कि उन्होंने भी 'सेंगोल' या 'राजदण्ड' ग्रहण किया था?        हुज़ूरे-आला! राजतन्त्र नहीं, लोकतंत्र है यह! इतिहास को छिपाने और मनगढ़ंत रचने की आपकी कोशिशें कामयाब नहीं होने दी जाएंगी! और राजतन्त्र के साथ जिस 'साम्राज्य' को पुनर्स्थापित करने का सपना कीर्तन-मंडली देख रही है, उसे इस देश की जनता चकनाचूर कर देगी!        बहाना 'सेंगोल' का है। किसी जमाने में, 'चोल-साम्राज्य' के काल में चोल राजा के उत्तराधिकारी की घोषणा होने पर नए राजा को सत्ता-हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 'सेंगोल' अर्थात 'राजदण्ड' दिया जाता था। दरअसल किसी को भी राजदण्ड देने का मतलब राजा को राज का डंडा दिया जाना ही हो सकता है। शायद तमाम सिपहसालारों के बीच भी अंतिम शस्त्र के रूप में राजा द्वारा इसे इस्तेमाल करने की जरूरत महसूस की जाती रही होगा। मिथकों में एक 'देवता'