राजतन्त्र नहीं,
लोकतंत्र है यह!
तो यह भूमिका बनाई जा रही है?...राजतन्त्र स्थापित किया जाएगा? जवाहलाल नेहरू की आत्मा को भी अपने दुष्चक्र में घसीट लाया गया?..कहा गया कि उन्होंने भी 'सेंगोल' या 'राजदण्ड' ग्रहण किया था?
हुज़ूरे-आला! राजतन्त्र नहीं, लोकतंत्र है यह! इतिहास को छिपाने और मनगढ़ंत रचने की आपकी कोशिशें कामयाब नहीं होने दी जाएंगी! और राजतन्त्र के साथ जिस 'साम्राज्य' को पुनर्स्थापित करने का सपना कीर्तन-मंडली देख रही है, उसे इस देश की जनता चकनाचूर कर देगी!
बहाना 'सेंगोल' का है। किसी जमाने में, 'चोल-साम्राज्य' के काल में चोल राजा के उत्तराधिकारी की घोषणा होने पर नए राजा को सत्ता-हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 'सेंगोल' अर्थात 'राजदण्ड' दिया जाता था। दरअसल किसी को भी राजदण्ड देने का मतलब राजा को राज का डंडा दिया जाना ही हो सकता है। शायद तमाम सिपहसालारों के बीच भी अंतिम शस्त्र के रूप में राजा द्वारा इसे इस्तेमाल करने की जरूरत महसूस की जाती रही होगा। मिथकों में एक 'देवता' यमराज भी हैं! उनके हाथ में साधारण दंड-डंडा नहीं, 'लौहदण्ड' लोहे के डंडे की कल्पना की गई है ताकि सज़ायाफ्ता मनुष्य को सीधे स्वर्ग या नरक पहुँचाया जा सके! ऐसी कल्पनाएँ तब की गई थीं जब राजा का आदेश ही 'कानून' माना और मनवाया जाता था।
लेकिन इतिहास तो वह है जो 'हो चुका' है, 'भूत' है! तो इस 'भूतकाल' को आधुनिक काल, 'इक्कीसवीं शताब्दी' में स्थापित करने की कोशिश के क्या मायने हैं?...'परम्परा' के नाम पर आप क्या ढोना या लागू करते है- करना चाहते है अपने जीवन में, इससे आपकी समझ का पता चलता है। हो सकता है किसी सिरफिरे को सती-प्रथा, बालविवाह या रजस्वला-विवाह भी परम्परा लगे तो क्या उसे आज भी अपनाया जा सकता है?.. इतिहास से सीखा जाता है या उसे हू-ब-हू आज के जमाने में भी लागू किया जाता है?
आपकी कामना राजा बनने की हो सकती है, चक्रवर्ती-सम्राट या किन्नर-नरेश बनने की कल्पना आप कर सकते हैं ताकि आपके सिर पर मुकुट चमके, आपके पास सोने का सिंहासन हो; लेकिन मानव-सभ्यता के इस विकास का क्या कीजिएगा हुज़ूर जो आपके सपनों को 'मुंगेरीलाल का सपना' और मानवता के लिए इसे दुःस्वप्न मानकर खारिज़ कर चुका है?..
लोकतंत्र को लोककल्याणकारी बनाने का सपना देखिए, हुज़ूर! देश में सच्चा लोकतंत्र स्थापित करने की कोशिश कीजिए ताकि अपना महान देश भूतकाल के अंधकार में फिर न रहे! औपनिवेशिक काल हो या राजतन्त्र-युग या सामन्तों-बादशाहों का समय जनता का खून चूसा जाता था इनमें, बहुसंख्यक जनता को सिर्फ़ अधोवस्त्र में गुज़ारा करना पड़ता था। तथाकथित 'परम्परा' का एक बोझ ढोने के चलते, महिलाओं के प्रति पुरुष-कुंठाओं के चलते #बृजभूषण_सिंह पैदा हो रहे हैं, परंपरा-परंपरा कहकर देश के संघर्षों की वास्तविक महान परम्पराओं का भी अपमान मत कीजिए! ओलम्पिक पदक विजेता महिला पहलवानों #जंतरमंतर की सड़क पर धरने पर बैठने को मजबूर करने वाली मानसिकता से बाहर आइए।
सभ्यता के विकास ने हमें लोक-हित की व्यवस्थाओं को लागू करना सिखाया है। उसे और बेहतर ढंग से लागू करने-करवाने की कोशिश होना चाहिए, जो कुछ जन-हितैषी है- उसे भी ध्वस्त करने की कोशिश नहीं होना चाहिए! वरना 'काल' आपको माफ़ नहीं करेगा, हर चौराहे पर अपना इंतज़ार करवाने वाले हुज़ूर!
★★★★★★★
बहुत खूब 👍
ReplyDeleteधन्यवाद!
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