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हुज़ूर, आपके नीचे से जमीन खिसक रही है!..

              उत्तरप्रदेश: जीत कि हार?..

#कर्नाटक में हार से तिलमिलाए भाजपा-भक्त अब मोदी-मोदी का नारा न लगा उत्तरप्रदेश-उत्तरप्रदेश कह रहे हैं। वे योगी के बुलडोज़र-राज को तो रामराज्य का आदर्श मान ही रहे हैं, अपने 'अगले प्रधानमंत्री' को अभी भी करिश्माई कह रहे हैं। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों को वे इसके उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं।

यह सही है कि सपा, कांग्रेस, बसपा, रालोद सहित सभी राजनीतिक दल महापौर या मेयर की 17 में से एक भी सीट नहीं जीत पाए। यह सीबीआई, ईडी, बुलडोज़र का खौफ़ हो  अथवा जनता के जातिवाद या मूढ़ता के प्रति उनका अटूट भरोसा, बाकी राजनीतिक दलों ने कोई विशेष कोशिश भी नहीं की। शहरों के मेयर पद-लोलुप पूंजीपतियों का गणित भी इन राजनीतिक दलों की अपेक्षा 'चुप बैठो' की रणनीति को अपने लिए बेहतर मानता रहा है। इसलिए विपक्ष के कुछ महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों को छोड़ महापौर के चुनाव को इन दलों ने गम्भीरता से नहीं लड़ा। वैसे भी उन्हें पता था कि राज्य में भाजपा सरकार के रहते अन्य किसी दल के मेयर को काम करना बहुत मुश्किल होता है, वह उनके 'मन-मुताबिक' काम नहीं कर पाता। फिर सर खपाने से क्या फ़ायदा!..

बहरहाल, विकास और गरीब हितैषी होने का ढोंग करने वाली भाजपा को भले ही अमीरों के गढ़ शहरों में मेयर के पदों पर विजय मिल गई हो क्योंकि 82.35 प्रतिशत जीते महापौर 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति वाले हैं। लेकिन नगरों और कस्बों की जनता ने उसे बुरी तरह नकार दिया है। 199 नगर पालिका परिषद में से केवल 89 (44.72%) और   सभासद के 5327 में से केवल 1360 पर (25.53%), नगर पंचायतों के 544 में से 181 (33.27%) अध्यक्ष तथा पंचायतों के 7177 सभासद में से केवल 1403 भाजपा(19.54%) सभासदों  की जीत ने यह सिद्ध किया है कि भाजपा की हालत उत्तर प्रदेश में भी खस्ता ही रही है।

           हाल के इन नगरीय चुनावों ने यह भी सिद्ध किया है कि आम जनता स्थापित राजनीतिक दलों की अपेक्षा निर्दलीयों को अधिक भरोसेमंद मान रही है। यही कारण है कि नगर पालिकाओं में से 58% से ज़्यादा पर तो नगर पंचायतों में से 67% से ज़्यादा पर निर्दलीय प्रतिनिधियों को जनता ने चुना है! ऐसे में भाजपा के खिलाफ़ तो व्यापक जनता अपना आक्रोश प्रकट कर ही रही है, लगभग एक जैसी कार्यशैली और जनता के प्रति लापरवाह रहने वाले अन्य राजनीतिक दलों को भी जनता सबक सिखा रही है। ज़ाहिर है, जनता बड़े परिवर्तन की बाट जोह रही है। ऐसे में व्यवस्था-परिवर्तन की सोच रखने वाले  संगठन और किसान यूनियनें इसे 'एक धक्का और' की नीति अपना कर किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों के आंदोलनों को गति देने में जुट रही हैं। बड़े परिवर्तन के लिए वे विशेषकर गाँवों-कस्बों की गरीब, किसान, मजदूर, बेरोजगार जनता को तैयार करने लगी हैं! #पुरानी_पेंशन  को एक प्रमुख मुद्दा बनाकर छत्तीसगढ़, पंजाब, हिमाचल और अब कर्नाटक का चुनाव जितवाने वाली शासकीय-अर्द्ध शासकीय शिक्षकों-कर्मचारियों की फौज़ #NMOPS और #atewa भी पूरे देश में भजपा की जड़ खोद उसकी कॉरपोरेट-परस्त नीतियों पर प्रहार करने में जुटी है।

        'आगे-आगे देखिए होता है क्या?...'

                           ★★★★★★★


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