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क्या शिक्षक अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?..

शिक्षक और शिक्षा की दुर्दशा                                     शिक्षक हौ सगरे जग कौ?..                तो लँगोटी पहिरि जग में विचरौ! सरकार, टीवी, समाचार पत्र, सोशल मीडिया यानी लगभग सभी संचार माध्यम कोरोना-बीमारी, महामारी और उसके स्ट्रेन-ब्लैक फंगस आदि अननुमन्य वैरियंटों से आक्रांत हैं। कब कितने लोग संक्रमित होकर मर जाएँगे या नहीं मरेंगे, स्वस्थ होकर लौट आएँगे या बिना जाँच के 'बिना बीमार' हुए ठीक रहेंगे, इसका कोई निश्चित आँकड़ा और अनुमान नहीं है। जो है, उस पर भी न जाने कितने सवाल! हर दवा, हर उपचार, हर संक्रमण और संक्रमण से मृत्यु यहाँ तक कि मरे हुए लोगों के आंकड़ों पर भी सवाल हैं।--- हम सबके दिलों-दिमाग में हाय-कोरोना, हाय-कोरोना चल रहा है।  कोरोना का संकट बहुत बड़ा है, यह तो सबने मान लिया है,  सबसे मनवा लिया गया है!         लेकिन कोरोना के अलावा कहीं कुछ और भी है क्या जिस पर हमारा दिमाग जाता है?  मसलन किसान-आंदोलन, मजदूर कानूनों में मजदूर-विरोधी बदलाव, बदली जाती शिक्षा नीति के दुष्प्रभाव और ख़त्म की जाती नौकरियाँ!... सब कुछ कोरोना ही है या कुछ और भी है जो हमें परेशान कर रहा है? क्य