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Showing posts from April, 2018

एक क्रीमीलेयर का बयान:

                     ⚫      आरक्षण बनाम विरोध    ⚫                                                     - हर्ष बर्द्धन               मेरा बेटा इस बार बारहवीं में था और अब कम्पटीशन की तैयारी कर रहा है। क्योंकि अब हम क्रीमी लेयर में आते हैं, अतः वह अब आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता। एक दिन मुझे उसने कटऑफ का अंतर दिखाया और वह भी आरक्षण-विरोधियों की ही भांति कुंठित हो गया। उसको मैने समझाया कि अगर वह ऊपर के 50 प्रतिशत में अपनी जगह नहीं बना सकता तो फिर कुछ और करने की जरूरत है और यह बात उसकी समझ में आ गयी और अब वह अच्छा कर रहा है।...                  मैने कुछ विश्लेषण किया है और पाया कि ज्यादातर लोग आरक्षण का विरोध तभी करते हैं जब उनके बच्चे बारहवीं में होते हैं और वह सारी सुविधाओं के बावजूद औसत ही होते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आरक्षण का लाभ लेने के बावजूद समाज में अपने को फारवर्ड दिखाने के चक्कर में अपनों का विरोध करने लगते हैं।            रही बात फारवर्ड क्लास की तो वह यूँ ही फारवर्ड नहीं है! इस वर्ग ने ऐसा चक्कर चलाया है कि लोगों को समझ ही नहीं आता की हो क्या रहा है! जितना

बन्द, बाज़ार और बेरोजगार

                        तुम लड़ो-मरो, हम मजा लेंगे!...             पिछले कुछ दिनों में हमने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के नाम पर दो 'भारत बंद' के आह्वान और उनके परिणाम देखे। दोनों तथाकथित भारत-बंद की एक सामान्य विशेषता देखने को मिली. दोनों में 'जातीय विद्वेष' को हवा दी गई. एक-दूसरे अर्थात् दलित और तथाकथित सवर्ण जाति के लोगों ने एक-दूसरे का मजाक उड़ाया और अपनी-अपनी जातियों को महान बताया. 'द ग्रेट....-जाति' को स्वाभिमान के नाम पर उछालने में ख़ास तौर पर दलित-उत्पीड़न और विषमता की त्रासदी के मसले दब गए. बेरोजगारी के स्थान पर सिर्फ आरक्षण पर बहस शासकों को बहुत सुकून दिलाती होगी!            इन प्रदर्शनों में एक ने यदि दलित-उत्पीड़न को ही झूठ सिद्ध करने की नाकाम कोशिश की तो दूसरे ने ऐसा सिद्ध करने का प्रयास किया जैसे हर मंत्री-सन्त्री-अधिकारी दलित जाति का होने के नाते रोज उत्पीड़न का शिकार हो रहा हो और उसे रोज 'अनुसूचित जाति-जनजाति उत्पीड़न क़ानून' के तहत किसी न किसी सवर्ण के नाम रिपोर्ट कराने की जरूरत हो. हकीकत यही है कि दलित जातियां अभी भी न केवल भीषण व

मर्म-कथा

                                           त्रिशंकु                                                   - नज़्म सुभाष             शांतिपूर्ण चल रहे आंदोलन ने अंततः  रौद्र रूप धारण कर लिया । बीस लोग मारे गये हैं।  ये मारे गये लोग सवर्ण थे या दलित अथवा मात्र मनुष्य.... इसको लेकर पक्ष -विपक्ष में अफवाहों का बाजार गर्म है। जैसा तर्क वैसी फोटो!...कौन असली कौन नकली?...कुछ नहीं सूझता...सबकुछ गड्मड्ड है!          सैकड़ों दुकानें फूंक दी गयी हैं....जनजीवन अस्त-व्यस्त है।... स्कूल, अस्पताल, रेल,  बस सब कुछ  अराजकता की भेंट चढ़ चुके हैं। टीवी पर भोंपू लगातार यही चीख रहा है।         सोशल मीडिया भी उबल रहा है ।सबके अपने - अपने पक्ष और तर्क हैं ।             सवर्ण चीखता है -"आरक्षण संविधान के माथे पर कलंक है!... उसने प्रतिभाओं का गला घोंट दिया।"             दलित उन्हीं के लहजे में जवाब देता है- " आरक्षण की जरूरत क्यों पड़ी? पहले इस पर बात कर!... सदियों से सवर्णों ने दलितों को दबाये रखा तब कितनी  प्रतिभाओं का गला घोंटा गया..... याद है?  मात्र 70 सालों में ही प्रतिभाओं का घों

अंग्रेज़ी बनाम हिंदी

                                 लड़ोगे तो जीतोगे!           अंग्रेज़ी वैश्विक-आर्थिक-आक्रमण या वैश्वीकरण की भाषा है, जबकि हिंदी सिर्फ़ भारत के एक(बड़े)क्षेत्र की भाषा! दोनों की तुलना ठीक नहीं!...     ....देश के बाहर ही नहीं, देश के अंदर भी हिंदी लिखने-बोलने-पढ़ने वालों की इज़्ज़त और पैसा यानी रोज़गार मिलता है। किंतु यह केवल भाषायी ग़ुलामी नहीं है। यह वास्तविक गुलामी का द्योतक है। .....देश की भाषाओं के अस्तित्व का संघर्ष अनिवार्यतः इस गुलामी (मुख्यतः आर्थिक) से मुक्ति का संघर्ष है! लड़ोगे तो जीतोगे वरना ऐसे ही सड़ोगे!         हिंदी भाषियों के सामने यह चुनौती सबसे बड़ी है...क्योंकि उन्हीं को सबसे कम अंग्रेज़ी आती है! और यह अच्छी और सकारात्मक बात है। बड़े क्षेत्र के लोगों को रोज़गार नहीं मिल रहा! मिलने की संभावनाएं और क्षीण होती जा रही हैं। उन्हें रोज़गार के लिए लड़ना पड़ रहा है। यह लड़ाई एक भाषायी और सांस्कृतिक लड़ाई भी है। दरअसल, यह गुलामी के खिलाफ़ लड़ाई है।           लड़ोगे तो जीतोगे, नहीं तो ऐसे ही सड़ोगे!  ★★★

कविता:

                          🔴    चलो,  लड़ा जाये!....🔴 ⚫चलो, लड़ा जाये कुछ आगे बढ़ा जाये! तुम मेरा सिर फोड़ो मैं तुम्हारा थाने चलें थानेदार का होगा वारा-न्यारा... कुछ नया इतिहास गढ़ा जाये! तुम वो हो मैं ये हूँ तुम खटिया के खटमल हो मैं सिर की जूं हूँ... खटमल और जूं पे चलो, और अड़ा जाए! इतिहास तुम्हारा भी है इतिहास हमारा भी गाय-गोबर और गोबरधन के साथ लाते हैं दोनों भैंस का चारा भी... बकरी को चलो, एक डंडा जड़ा जाये! तुम रोटी खाते हो में चावल खाता हूँ तुम्हें सब्ज़ी नहीं मिलती में दाल नहीं पाता हूँ.... रोटी और दाल का सब्ज़ी और चावल का चलो, उल्टा पहाड़ा पढ़ा जाये! तुमने चोटी कटवा ली है मैंने दाढ़ी मुड़वा ली है मालिक की मर्ज़ी थी हमने तो सिर्फ़ पूरी की है... थोड़ा-थोड़ा और चलो, घूरे में सड़ा जाये! हम बहादुर लोग हैं लड़ने में बहादुरी है नौकरी-चाकरी खेती-धंधा बात बहुत बुरी है.... चीन-पाकिस्तान से भ्रष्टाचार और बेईमान से बहुत लड़े.... आपस में अब चलो, फिर से भिड़ा जाए!⚫ 🔴🔴