⚫ आरक्षण बनाम विरोध ⚫ - हर्ष बर्द्धन मेरा बेटा इस बार बारहवीं में था और अब कम्पटीशन की तैयारी कर रहा है। क्योंकि अब हम क्रीमी लेयर में आते हैं, अतः वह अब आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता। एक दिन मुझे उसने कटऑफ का अंतर दिखाया और वह भी आरक्षण-विरोधियों की ही भांति कुंठित हो गया। उसको मैने समझाया कि अगर वह ऊपर के 50 प्रतिशत में अपनी जगह नहीं बना सकता तो फिर कुछ और करने की जरूरत है और यह बात उसकी समझ में आ गयी और अब वह अच्छा कर रहा है।... मैने कुछ विश्लेषण किया है और पाया कि ज्यादातर लोग आरक्षण का विरोध तभी करते हैं जब उनके बच्चे बारहवीं में होते हैं और वह सारी सुविधाओं के बावजूद औसत ही होते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आरक्षण का लाभ लेने के बावजूद समाज में अपने को फारवर्ड दिखाने के चक्कर में अपनों का विरोध करने लगते हैं। रही बात फारवर्ड क्लास की तो वह यूँ ही फारवर्ड नहीं है! इस वर्ग ने ऐसा चक्कर चलाया है कि लोगों को समझ ही नहीं आता की हो क्या रहा है! जितना
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.