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Showing posts with the label कविता

केवल संख्या बल नहीं!

               केवल संख्या बल नहीं!.. केवल संख्या से कुछ नहीं होगा हिंदुस्तानियों.. अंग्रेज़ तुमसे बहुत कम थे अन्य देशों से आकर राज क़ायम करने वाले दूसरे शत्रु भी! कबूतर हमेशा नहीं उड़ जाया करते बहेलिए का जाल लेकर!.. इन दिनों ही देखो, कितने कम हैं तुम पर  राज करने वाले उनसे भी बहुत कम हैं राज का ताज पहनाने वाले! अगर तुम नहीं समझ सकते ताज़ का राज़ और अपनी गुलामी का कारण तो समझने की कोशिश करो... मत लड़ो उनके इशारों पर और सोचो कि लोकतंत्र कैसे बना है  और कितना बचा है! इतना तो समझ सकते ही हो पुष्पक विमान की कल्पना बहुत आगे बढ़ चुकी है चन्द्रमा और मंगल सिद्ध हो चुके हैं अपूर्ण पृथ्वी! पृथ्वी पर रहने वालों मनुष्यों खुद को बचाओ अपने ही बीच के शत्रुओं से जो जानवर बन खा जाना चाहते हैं तुम्हें निगल जाना चाहते हैं यह  पृथ्वी स्वर्गादपि गरीयसी भस्मासुर बनकर!... लेकिन वह पौराणिक कथा है सच में तो कहानियों का इस्तेमाल से राज और ताज दोनों सुरक्षित हैं!                   ★★★★★★

मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️

हारे हुए लोग

एक कविता~अकविता :                                                 ये हारे हुए लोग कभी अपनी हार नहीं मानते..   'निश्चित विजय' के लिए ये फिर-फिर अपनी कमर कसते हैं दुनिया के ये अजूबे लोग घटनाओं पर नहीं सिद्धांत पर भरोसा करते हैं किसी व्यक्ति की जगह सभ्यता के विकास के लिए जीते-मरते हैं... रक्तबीज हैं ये आधा पेट खा और कुछ भी पहनकर देश और दुनिया नापते हैं चिंगारी की तरह यहाँ-वहाँ बिखरे इन अग्निदूतों से दुनिया के सारे शासक काँपते हैं! अज़ीब हैं ये लोग कभी अपनी हार  नहीं मानते हैं पूरी दुनिया के जंगल पहाड़ खेत मैदान इन्हें पहचानते हैं प्राकृतिक रूप से खिलते फूल तितलियां भौंरे कीट हवाओं में तैरते दूर देश के  गीत संगीत इनके साथ  अमर-राग के सुर तानते हैं! अज़ीब हैं ये लोग! - अशोक प्रकाश                     ★★★★★★

कम से कम इतना तो जाने भक्तिकाल के बारे में...

परीक्षा की तैयारी हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि           भक्तिकाल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण                कवि और  उनका साहित्य कालक्रम की दृष्टि से  हिंदी साहित्य के भक्तिकाल का प्रारम्भ  निर्गुण काव्य धारा  से होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में इस काव्य धारा को ‘निर्गुण ज्ञानाश्रयी धारा’ नाम दिया। डा. रामकुमार वर्मा ने इसे ‘सन्त काव्य परम्परा’ कहा तो आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी ने इसे ‘निर्गुण भक्ति साहित्य’ का नाम दिया। इसे ज्ञानाश्रयी काव्यधारा भी कहा गया। इस काव्यधारा के सबसे चर्चित कवि के रूप में कबीर विख्यात हैं। भक्तों-संतों के नाम के आगे 'दास' लगाने की परम्परा के चलते वे 'कबीरदास' नाम से भी जाने जाते हैं। ★★ शब्द 'सन्त':             सामान्यतः सदाचार के लक्षणों से युक्त मन की शांति का पाठ पढ़ाने वाले व्यक्ति को 'सन्त' कहा जाता है। ऐसा संत व्यक्ति स्वयं की जगह सामाजिक कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयासरत माना जाता है। आत्मोन्नति द्वारा मनुष्य सदाचारी हो सकता है, ऐसा संतों का मानना था। डा. पीताम्बरदत्त ब

एक कविता खेतों की

               ★ खेतों के क़ातिल ★ पूरी मिठास पूरे स्वाद के साथ आएगा सच, यह जहर आपकी ज़िंदगी निगल जाएगा। आप? आप खुद को भी पहचान नहीं पाएँगे वे आपको आप नहीं हैं कोई और हैं बता जाएँगे। वे क़ातिल हैं खेतों के, फसलों के खलिहानों के उन्हें पता हैं सारे राज निकल ते  गेहूँ के  दानों के। वे तुम्हारी ताकत न सिर्फ़ गेहूं से निचोड़ेंगे वे तुम्हें रोटी खाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे। वे ला रहे हैं ऐसे कानून जो अंग्रेज भी न ला पाए थे लूटा था अंग्रेजों ने जरूर पर खेत न कब्ज़ा पाए थे।  अब जो हुक्मरान हैं वे अंग्रेजों से भी भले आगे हैं इन्हें नहीं पता किसान मजदूर बेरोजगार अब जागे हैं। ये कम्पनीराज जो देशी भी है विदेशी भी, खदेड़ा जाएगा इनका दलाल कोई भी किसी चोले में हो, न बच पाएगा।                    ★★★★★★

बैंक बचाओ, देश बचाओ

              दिवालिया होने से पहले                     https://youtu.be/7t4BsE7d4wM                                                                  - अशोक प्रकाश इससे पहले कि 'भाइयों और बहनों!' से शुरू हो 'राष्ट्र के नाम' एक और संबोधन मैं खासकर राष्ट्रीकृत समस्त बैंकों, उनके कर्मचारियों और उनके ग्राहकों को कहीं छुपा देना चाहता हूँ ताकि दिवालिया घोषित होने से पहले 'राष्ट्रीय पूँजी' किसी बिटिया के विवाह और किसी बेटे के  परचून की दूकान खोलने में बाधा न बन सके! दिवालिया दुल्हन बनाकर जिसे विस्थापित किया जा रहा है लंदन, न्यूयॉर्क या स्विट्जरलैंड में  कालाधन कहकर जब तक कि उसे वापस लाने का वादा दोहराया जाए मैं खेतों में धान और गेहूँ की बालें देखना चाहता हूँ ताकि कब्ज़ा होने से पहले  खेत बता सकें दुबारा पैदा होने के कुछ गुर उन दानों को जो पसीने की गंध और मिट्टी की सुगंध से हजारों साल से उगते आए है!.. इससे पहले कि मैं न होऊँ तुम्हें बता देना चाहता हूँ उनका ठिकाना जो बीज उगाना जानते हैं हल-बैल चलाना जानते हैं ट्रैक्टर और रोबोट भी चला सकते हैं कारखाने और हथियार भी बना सकते

'नोटबन्दी' सा दुःस्वप्न फिर न देखना पड़े!

  ★ नोटबंदी कौ आल्हा ★                                          -- अशोक प्रकाश                               चित्र साभार: aajtak.in शीश नवाय के जनगनमन कौ धरिकै सब जनता कौ ध्यान, आल्हा गावहुँ उन बीरन कौं जोे लाइन महं तज दियौ प्रान।। आठ नवम्बर सन् सोलह कौ देस कौ पी एम गयौ पगलाय, भासन घातन ऐसो करि गयौ जनगनमन सब गयौ कुम्हलाय।। चारों तरफ तहलका मचि गयौ ऊ जापान महं रह्यौ मुस्काय, लाइन महं यां प्रान जाय रहे वा नीरो बाँसुरी बजाय।। इक-इक रुपिया मुश्किल ह्वै गयौ बड़ा नोट सब भयौ बेकार, खेती-बारी नष्ट ह्वै गई मज़दूरन घर हाहाकार।। काम-धाम सब छोड़ि-छाँड़ि के बैंकन चक्कर रह्यौ लगाय, उहां खेल सेठन कौ होइ रह्यौ भारी घात सह्यौ ना जाय।। अस्पताल का कहौं मुसीबत लोग मरैं बस भए बुखार, लगन सगाई शादी छोड़हुँ मरन काज ना मिलै उधार।। ऐसो राज न देखा कबहूँ ऐसो डाकौ सुन्यौ न भाय, अपनौ पैसो उनकौ होइ गयौ कम्पनियन रह्यौ मज़ा उड़ाय।। ●●●●

कविता की भाषा में किसान आंदोलन

             क्या है किसान आंदोलन ?                               - अशोक प्रकाश 1. हम पर न दया करो, न तरस खाओ हमारा हक़ छीना जा रहा है, हमारे साथ आओ!.. 2. खाद-बीज-बिजली-डीज़ल-कीटनाशक सब पर जिनका अधिकार है, किसान की मेहनत के लुटेरे हैं वे, इन मुनाफाखोरों का किसान शिकार है!... 3. सबको अपनी उत्पादन-लागत-मेहनत के अनुसार मुनाफ़ा तय करने का अधिकार है, ये कौन सी नीति है, किसान की लागत, कीमत, मुनाफ़ा पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधिकार है?...  4. जब किसान को मिलेगी सुनिश्चित आय कर्जा-मुक्त होंगे जब सभी किसान फसल का मिलेगा पूरा दाम जब देश में होगा  किसान का तब असली सम्मान!..  5.   विकास का सारा मतलब उलटा समझाया गया है चंद लोगों के विकास को किसानों का, जनता का विकास बताया गया है... ऐसा कब तक और क्यूँ चलेगा? किसी का एंटिला देखकर बेरोजगार नौजवान कब तक बहलेगा??...                           ★★★★★★★ हिन्दी साहित्य

अस्सी पार पिता: तीन कविताएँ

                                                अस्सी पार पिता                     एक: पिता जब अस्सी साल के हुए लड़के से बोले- मैं अब ज़्यादा दिन नहीं रहूँगा... दो बातें गाँठ बाँध ले- पहली बात: घर में लाठी जरूर रखना जानवर जानवर ही होते हैं, उन्हें इंसान मत समझना... व्यर्थ मत मारना लेकिन वक़्त आ पड़े तो मत छोड़ना! दूसरी बात: बंदूक और लाठी में ज़्यादा फर्क़ मत समझना दोनों से जानवर ही नहीं इंसान की भी जान जा सकती है फर्क़ सिर्फ़ इस बात में है... कौन चला रहा है, कैसे चला रहा है, किसके लिए चला रहा है? किराये पर लाठी या बंदूक चलाने वाले हमेशा कमजोर होते हैं, उनकी ताक़त पर भरोसा मत करना! दो: पिता उस पेड़ जैसे ही हैं!... पेड़ अस्सी साल पुराना था उसे लगने लगा था कि किसी भी तेज अंधड़ में वह धराशायी हो जाएगा... टहनियाँ बोलीं ऐसे भी निराश मत होओ तुमने हजारों जीवनदान दिए हैं तुम्हारे बीज हजारों मील तक फैले हैं, उनमें भी तुम हो... पेड़ को लगा सचमुच, मैं और क्या कर सकता था! लोगों ने आश्चर्य से देखा- पेड़ के भीतर से निकल रहे हैं अनगिनत पेड़ हाथ हिलाती निकल रहीं हैं टहनियाँ फूट रही हैं मुस्कराती कोंपलें हरे होने लगे ह

लॉकडाउन: वो जा रहे हैं...

                                   वो जा रहे हैं...                                                    - अशोक प्रकाश वो जा रहे हैं तुम संभालो अपनी दिल्ली तुम्हारे दिमाग में घुसा वायरस न जाने फिर कब फट पड़े!.. उन्होंने जब-जब तुम पे भरोसा किया धोखा खाया... समझते हो कि सच सिर्फ़ तुम समझते हो सच कोई फ़िल्मी हीरो नहीं है ज़नाब वह हारता भी है तुम कितना भी लिख लो कहीं भी - सत्यमेव जयते! माना कि तुम्हारा राज है सड़कें भी तुम्हारी हैं रेल भी खाना-पीना सोना-जागना सब तुम्हारे अधीन है मगर सपने- मत छेड़ो उन्हें वे जग गए तो कहीं के न रहोगे जनाबे-आली! तुम्हारा जीतना ही तुम्हारी हार है तुम नहीं मानोगे इतिहास को भी नहीं स्वीकारोगे... लेकिन हो सके तो आंखें खोलकर देख लो वे जा रहे हैं तुम्हारे सारे प्रतिबंधों तुम्हारे आकाओं के सारे उपबन्धों को तोड़कर... डरो तुम और तुम्हारे मालिकान सदियों उन्होंने डर को हराया है डराने वालों को धूल चटाया है अजेय समझे जाने वाले राजाओं-महाराजाओं को ही नहीं- एक से एक क्रूर और खूंखार जानवरों को मार गिराया है.. सावधा

अय भाग जा दरिन्दे फ़ौरन (ग़ज़ल):

तमाम संघर्षों को समर्पित...                                                                           ग़ज़ल                                                 - कवि महेन्द्र मिहोनवी अय भाग जा दरिन्दे फ़ौरन मचान लेकर निकले हैं  अब परिन्दे गद्दी पे प्रान लेकर दरकी  हैं ये  ज़मीनें  कय्यक हज़ार मीलों फूटी  हैं  कुछ चटानें इतनी  उठान लेकर रस्ते  में  हर क़दम पर  खूँख़ार जानवर हैं चलना  हमें  पड़ेगा  तीरो   कमान लेकर बुलबुल को बर्तनी है अतिरिक्त सावधानी सैयाद   घूमते  हैं  टोही   विमान  लेकर जिसमें मगर के हक़ में सारे नियम बने हैं चाटेंगीं मछलियाँ क्या एसा विधान लेकर जंगल  में दूर   शायद  बरसात  हो रही है आने  लगीं हवायें  माफ़िक़ रुझान लेकर लाठी नहीं तो क्या ग़म बाजू तो हैं सलामत मिट्टी  को  रो  रहे हो  हीरों की खान लेकर जगमग  है  राजधानी  मेला  नया  लगा  है ठग  तो  वही  पुराने   बैठे  दुकान  लेकर इससे तो था ये अच्छा आते न मुझसे मिलने सीने  से लग  रहे हो  दिल में गठान लेकर माने  कोई न   माने  मंज़िल के जो दीवाने वो   बैठते  नहीं  हैं  पथ में थकान लेकर               

कोई सवाल न उठाएं..

                          समय आ गया है...                                                               - अशोक प्रकाश   समय आ गया है कि हम पहले ताली बजायें फिर अपनी पीठ थपथपाएँ कि... 'आपके अवशेष और वेतन भुगतान हेतु स्वीकृत बजट विधान सभा और विधान परिषद में प्रस्तुत कर दिया गया है... और जल्दी ही दोनों जगहों से पारित हो जाएगा।...' कि आपकी #पुरानी_पेंशन की मांग जल्द पूरी हो जाएगी... इसलिये जरूरी है कि हम इस पर कोई सवाल न उठाएं सिर्फ़ ताली बजायें मसलन... घोषणाओं को मिल गया, मिल गया- बतायें क्या-क्या नहीं मिला या चला गया... - ऐसे सवाल नहीं उठाएं... नीला, हरा होते हुए जो #भगवा हो गया है उसकी विजय-पताका फहरायें इसे शिक्षक समुदाय की बहुत बड़ी जीत बताएं जोर-जोर से चिल्लाएं! उसे विधानसभा या संसद पहुंचाने का जश्न मनायें अभी से माला पहनाएं! समय आ गया है उसे नेता बनाएं खुद भाड़ में जाएं!....                           ★★★★★