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लॉकडाउन: वो जा रहे हैं...


                                   वो जा रहे हैं...

                                                   - अशोक प्रकाश




वो जा रहे हैं
तुम संभालो अपनी दिल्ली
तुम्हारे दिमाग में घुसा वायरस
न जाने फिर कब
फट पड़े!..

उन्होंने जब-जब तुम पे
भरोसा किया
धोखा खाया...
समझते हो कि सच
सिर्फ़ तुम समझते हो
सच कोई फ़िल्मी हीरो नहीं है
ज़नाब
वह हारता भी है
तुम कितना भी लिख लो
कहीं भी
- सत्यमेव जयते!

माना कि तुम्हारा राज है
सड़कें भी तुम्हारी हैं
रेल भी
खाना-पीना सोना-जागना
सब तुम्हारे अधीन है
मगर सपने-
मत छेड़ो उन्हें
वे जग गए तो
कहीं के न रहोगे जनाबे-आली!

तुम्हारा जीतना ही
तुम्हारी हार है
तुम नहीं मानोगे
इतिहास को भी
नहीं स्वीकारोगे...
लेकिन हो सके तो
आंखें खोलकर देख लो
वे जा रहे हैं
तुम्हारे सारे प्रतिबंधों
तुम्हारे आकाओं के
सारे उपबन्धों को तोड़कर...

डरो तुम और तुम्हारे मालिकान
सदियों उन्होंने डर को
हराया है
डराने वालों को
धूल चटाया है
अजेय समझे जाने वाले
राजाओं-महाराजाओं को ही नहीं-
एक से एक
क्रूर और खूंखार जानवरों को
मार गिराया है..

सावधान!
वे जा रहे हैं
तुम्हारे दिमागी वायरस को
हराने
मार गिराने...

वह सबसे बड़ा ख़तरा है!...

   
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