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ये किसकी जीत ये किसकी हार?..

              तंत्रलोक के किस्से यार                           --  अशोक प्रकाश तंत्रलोक के किस्से यार ये किसकी जीत ये किसकी हार! इक हौली में चार पियक्कड़ अक्कड़ बक्कड़ लाल बुझक्कड़ तय है वादा तय है रोना तय है खोना तय है सोना तय है किस पर पड़नी मार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! रामसिंह के रमरजवा नौकर किसके पेट पे किसकी ठोकर चार हजार में कर मज़दूरी रामसिंह कहें ये मजबूरी किसके सइकिल किसके कार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! खेती-बाड़ी मुश्किल काम न दिन आराम न रात आराम खाद-बीज-पानी के चक्कर राधा-कृष्ण बने घनचक्कर उमर हो गई सत्तर पार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! बड़का लड़का पड़ा बीमार नौकरी-चाकरी कुछ न यार छोटकी की पहले परवाह कैसे होगा इसका ब्याह? क्षीण पड़ रही जीवन-धार... ये किसकी जीत ये किसकी हार!               ★★★★★

प्रेमचंद अभी भी प्रासंगिक क्यों लगते हैं?..

          प्रेमचंद का कालजयी साहित्य:                        https://youtu.be/16Ci1hB5o4k   प्रेमचंद साहित्य        आज इस इक्कीसवीं सदी के इस उथल-पुथल के दौर में,  प्रेमचंद साहित्य    की रचना की शुरुआत के लगभग सवा सौ साल बाद भी हमें लगता है कि प्रेमचंद को पढ़ना, उसका जन-जन तक पहुँचना-पहुँचाना अब और ज़्यादा जरूरी हो गया है। आज़ादी की माँग के वे कारण जिन्हें हम औपनिवेशिक दास्ताँ के रूप में जानते आए हैं, आज कहीं और ज़्यादा झकझोरने वाले हैं। आज उस दौर के ठीक उलट विदेशी कम्पनियों के लिए पलक-पाँवड़े बिछाए जा रहे हैं। विदेशों के कई-कई चक्कर काटकर कम्पनियों को लुभाया जा रहा है कि आज भारत पहले से कहीं ज़्यादा निवेश के माक़ूल है, आइए और मुनाफ़ा कमाइए! 'अब दुनिया बदल गई है' - कहकर कितना भी हम इस सच्चाई को ढांपने-तोपने की कोशिश करें किन्तु प्रेमचंद ने 'महाजनी सभ्यता' कहकर जिस गुलामी के खिलाफ जनता में चेतना विकसित की थी, वह आज भी वैसे ही बल्कि उससे भी ज़्यादा हमारी मुश्किलों के लिए जिम्मेदार है। विश्वगुरु का ढोल पीटकर भले ही इसे छुपाने की नाकाम कोशिश की जा रही हो, पर विदेशी-निवेश की लाचारी,