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Showing posts with the label शहीद भगत सिंह

और जानिए शहीद ऊधमसिंह को!

                              और  जानिए         शहीद ऊधमसिंह को!   आज आप एक ऐसी सोच-समझ के अधीन जी रहे हैं जो साम्राज्यवाद को नहीं स्वीकार करती। यह समझ साम्प्रदायिक, जातिवादी, मौकापरस्त व्यक्ति तैयार करती है। ऐसी समझ के लोग साम्राज्यवाद को या तो कुछ 'विदेशी' तत्त्वों की मनगढ़ंत विचारधारा मानते हैं या ऐसी कहानी जब उनके जैसे 'वीर' तलवार भांजते हुए प्राण न्यौछावर कर देते थे। यह कोई अनोखी या आज की समझ नहीं है। ऐसी समझ वाले समझदार अंग्रेजों के तलवाचाटू भी थे और 'प्रजा' के सिर उठाने के घोर विरोधी भी। ऐसे तलवाचाटुओं और उपनिवेशी-साम्राज्यवादियों के खिलाफ़ जिस अनूठे योद्धा ने अपनी दिलेरी से अंग्रेजों को हतप्रभ कर दिया, उसे हम शहीद ऊधमसिंह के नाम से जानते हैं। 31 जुलाई अनूठे बलिदानी ऊधमसिंह का शहादत दिवस है। इसी दिन सन् 1940 की सुबह 9 बजे ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने उन्हें फाँसी दे दी। या शहीद ऊधम सिंह के प्रिय आदर्श भगतसिंह के शब्दों में कहें तो शहीद ऊधम सिंह ने उस दिन 'मृत्यु का वरण' किया ('married death')। अंग्रेज़ साम्राज्यवादियों को शहीद ऊधम सिंह उनके प्रत

शहीदों की यादमें एक यात्रा

                                शहीदों के सपनों को        मंजिल तक पहुंचाने की एक जद्दोजहद गाँव-गाँव पहुँचने लगा किसान आंदोलन अब शहीदों की स्मृतियों को संजोते हुए आगे बढ़ने लगा है। इसी क्रम में संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय आह्वान पर 23 मार्च को एक 'शहीदी यादगार किसान यात्रा' अलीगढ़ से पलवल रवाना हुई। तय कार्यक्रम के अनुसार 12 बजे से किसान-मजदूर-बेरोजगार-नौजवान किसान आंदोलन के कार्यकर्ता अंबेडकर पार्क में जुटना शुरू हो गये। खबर पाते भारी संख्या में पुलिस बल ने अंबेडकर पार्क को घेर लिया। किसानों ने इसका विरोध करते हुए 'हिटलरशाही नहीं चलेगी', 'पुलिस के बल पर यह सरकार- नहीं चलेगी, नहीं चलेगी', 'भगतसिंह के सपनों को- मंजिल तक पहुँचाएंगे', 'लडेंगे, जीतेंगे' आदि नारे लगाए तथा किसान-यात्रा को तय कार्यक्रम के अनुसार जाने देने की मांग करने लगे।   https://youtu.be/C9P1nMfQb48   संयुक्त किसान मोर्चा संयोजक शशिकान्त, अखिल भारतीय किसान सभा के इदरीश मोहम्मद,  बेरोजगार मजदूर किसान यूनियन के सोरन सिंह बौद्ध, भाकियू अम्बावता के जिलाध्यक्ष विनोद सिंह, भाकियू महाश

संघर्षों-शहादतों की यादों का महीना

                  पेरिस कम्यून और शहीद भगत सिंह एवं उनके                          साथियों को याद करने का महीना                                                            - अशोक प्रकाश                  Picture Courtesy: marxist.com मार्च का महीना हिंदुस्तानियों के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया की शोषित-पीड़ित जनता के लिए खास महीना है! यह कार्ल मार्क्स, पेरिस कम्यून, मैक्सिम गोर्की,  शहीद भगत सिंह और उनके साथियों, अवतार सिंह पाश को याद करने का महीना है।       मार्च के ही महीने में 18 मार्च 1871 को आधुनिक दुनिया की सच्ची आज़ादी की आकांक्षा को व्यक्त करने वाली पेरिस कम्यून बनी जिसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव को भुलाकर मज़दूरों ने राजसत्ता को हराकर अपनी सरकार बनाई और जिससे दुनिया भर की पूँजीवादी ताकते घबरा उठीं!..भले ही यह कम्यून मात्र दो माह तक चल पाया और फ्रांस के चालबाज़ शासक को समझने में विफल होने के कारण पराजित हो गया! किन्तु इसके बाद इसके अनुभवों से सबक लेते हुए आगे दुनिया के अनेक देशों में क्रान्तियां हुईं और मजदूरों-किसानों की समाजवादी सरकारें बनीं!..सच है कि 'पेरिस कम्यून मजद

शहीद-दिवस: 23 march

                          आज 23 मार्च है!...   शहीद भगतसिंह-राजगुरु-सुखदेव की फाँसी की तारीख पहले 24 मार्च निश्चित की गई थी। किन्तु उन्हें 23 मार्च को ही फाँसी दे दी गई! अगर ऐसा होता तो हो सकता है हम शहीद भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव का शहादत-दिवस हम 23 मार्च की जगह 24 मार्च को मना रहे होते!... हो सकता है 1931 में कांग्रेस का वह अधिवेशन कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया होता!... हो सकता है इन शहीदों को भी 'कालापानी' की सजा हो जाती और वे 1947 के बाद भी सक्रिय होते!... हो सकता है जमीन के 'राष्ट्रीयकरण' ताकि उस पर सामूहिक-खेती हो सके...और कारखानों का राष्ट्रीयकरण ताकि मज़दूरों को कम से कम नियमित और निश्चित मज़दूरी मिल सके-सभी मज़दूरों को पेंशन,बोनस,फंड मिल सके...आदि शहीदों की देश की जनता के लिए की जाने वाली ये साधारण सी मांगें 1947 के बाद पूरी हो गई होतीं!... हो सकता है उनके सपनों का भारत भले न बन पाता, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईशाई-ब्राह्मण-दलित-सवर्ण-पिछड़े का भेद न कर सरकारें सबकी आजीविका-रोजगार...आवास...कपडे-लत्ते की सामान्य सी व्यवस्था कर दी होतीं!... हो सकता है जाति

शहीद भगत सिंह: आज और क्यों याद आते हैं?

28 सितम्बर: शहीद भगतसिंह जन्मदिन                     और ज़्यादा याद आते हैं             आज   शहीद भगतसिंह आज शहीदे-आज़म कहे जाने वाले उस भगतसिंह का जन्मदिन है जो मरे नहीं, 23 मार्च को फाँसी के फंदे पर झूलने के बाद और ज़िंदा हो गए!.. एक नया जन्म मिल गया उन्हें!... पुनर्जन्म नहीं, वह तो किसी का नहीं होता! 28 सितम्बर, 1907! और फिर 23 मार्च 1931.   आज कितने विद्यार्थी इतनी सी उम्र में शहीद भगत सिंह जितना कुछ पढ़-लिख जाते हैं?... और पढ़ाई भी नौकरी पाने वाली नहीं, देश- एक नया देश, एक नई दुनिया बनाने वाली पढ़ाई!          जी हाँ ,  अभी बार-बार यह दिन याद आएगा, बहुत याद आएगा! देश में, दुनिया में आम जनता के जीवन पर जितना अधिक संकट बढ़ेगा, बढ़ाया जाएगा- उतनी ही तल्ख़ी के साथ यह दिन याद आएगा! शहीद भगत सिंह याद आएंगे, उनके सपने याद आएंगे!... शोषणविहीन दुनिया का सपना, अत्याचार से मुक्त दुनिया का सपना!...धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र से दूर सच्ची मानवतावादी दुनिया का सपना!               और साथ ही याद आएंगे शहीद भगत सिंह के आदर्श ब्लादीमिर इलिच लेनिन!.... याद आएगी उनकी क्रांतिकारी विरासत!