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Showing posts from August, 2021

19 दिसंबर: काकोरी कांड के शहीद क्या इसीलिए शहीद हुए?..

                          काकोरी की व्यथा:             क्या कहते हैं #काकोरी के बाशिन्दे? 19 दिसंबर, 1927 को जब अंग्रेज जालिमों ने अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला खाँ तथा रोशन सिंह को फाँसी पर लटका दिया तो सोचा नहीं होगा कि एक दिन उनके राज का अंत हो जाएगा और ये शहीद जनता के प्रति समर्पण और त्याग के प्रतीक बन जाएंगे। इसके पहले 17 दिसंबर को वे अमर शहीद राजेन्द्र लाहिड़ी की जिंदगी भी फांसी के फन्दे पर लटकाकर ले चुके थे। आज इन शहीदों की शहादत को नमन करने का दिन है।  लेकिन साथ ही आज के शासकों को भी याद दिलाने का दिन है ये अमर शहीद इस बात की कल्पना भी नहीं किए होंगे जो आज ये कर रहे हैं। देश के जल, जंगल, जमीन सब ये शासक ईस्ट इंडिया कम्पनी से भी खतरनाक कम्पनियों को सौंपते जा रहे हैं। क्या यह इन शहीदों की शहादत का अपमान नहीं है?    आज शासक आम जनता से अधिक ककोरी कांड का महोत्सव मनाते हैं। वे ऐसा दिखाने का प्रयास करते हैं जैसे वे भी इस 'कांड' का समर्थन करते हैं। लेकिन उनके यह सब करने-धरने का एक ही मतलब-मक़सद है- जनता यह माने कि इन शासकों को गद्दी पर पहुँचाने के लिए ही आज़ादी के शहीद

ऐय्याशियों का महल खड़ा करने वाले किस नेता को जिताएंगे आप?

                        किसको लड़ाना, हराना,                     जिताना चाहते हैं?    जहाँ देखो, जिधर देखो...जय,जय,जय! इस बाबा की जय, उस बाबा की जय! इस भगवान की जय, उस भगवान की जय! तो तुम भगवान को जिताने के लिए 'जयकारे' लगाते हो? जयकारे नहीं लगाए तुमने तो हार जाएंगे क्या भगवानजी?... और अब भगवान का जयकारा लगाते-लगाते चुनावों में जय-जय होने लगी? ये नेतालोग भगवान हैं क्या? जरा इन नेताओं के आचरण देखो भाइयों-बहनों, किन्हें भगवान बना रहे हो??...लोकतंत्र का बेड़ा ग़र्क़ करके अपनी ऐय्याशी के महल खड़े करने वाले नेताओं का जयकारा लगाते आप लोगों को जरा भी शर्म नहीं आती?... फिर क्या मतलब है इस जय का? यही तो न कि कोई जीते, कोई हारे?.. तो इसके लिए तो संघर्ष या युद्ध भी होगा ही न?.. किसको लड़ाना, हराना या जिताना चाह रहे हैं...युद्ध में झोंकना चाह रहे हैं? वो कौन है जिसके हारने से तुम डर रहे हो और जीतने की कामना कर रहे हो? वो कौन है जो युद्ध कर रहा है, लड़ाई के मैदान में है और तुम्हें उसका उत्साहवर्धन करना है? क्या किसी मैदान में कोई खेल हो रहा है, तुम वहाँ हो और सोच रहे हो कि तुम्हारे उत्साहवर्धन से

हम बैठोल हैं!...

                                  बैठोल-शास्त्र   जी, हम बैठोल हैं! लेकिन कोई कुछ काम करता दिखता है तो हमें उसमें हजार कमी दिख जाती है। जैसे कि यह बन्दा यह काम कर ही क्यों रहा है जब हम नहीं कर रहे? जरूर कोई बेईमानी का काम होगा! क्योंकि सबसे ईमानदारी का काम तो कुछ न करना है। उसे कोई बड़ा मुनाफ़ा हो रहा होगा...कोई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़ा होगा। क्या पता किसी पार्टी के इशारे पर यह सब काम कर रहा हो। आखिर, इसके पास पैसा कहाँ से आता है यह सब करने, दौड़ने-धूपने का जबकि हम घर में बैठे-बैठे भी कंगाली महसूस करते हैं?...           सोचो तो, हम एकदम सही सोचते हैं! पूरी दुनिया भी तो ऐसा ही सोचती है। बिना फायदे के, मुनाफ़े के कोई कहीं कुछ काम करता है? इसलिए जरूर कोई ऐसा काम कर रहा है, जनता का-किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों को एकजुट करने, उन्हें जोड़ने के लिए चप्पलें घसीट रहा है तो कोई बहुत बड़ा फायदा, बल्कि स्वार्थ होगा! देखिए न, हम निःस्वार्थ भाव से अपने घर में बैठे हैं। यहाँ तक कि जब तक मजबूरी न हो जाए, घर में झगड़े की नौबत न आ जाए, घर के बाहर पाँव रखना भी गवारा नहीं करते! आखिर दुनिया मायाजाल ह