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Showing posts with the label हिन्दी

क्या आप मुर्गा नहीं हैं?

                मत बनिए मुर्गा-मुर्गी! एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया।.. एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।"  मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !" सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है।  मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं वध कर दूँगा।  अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया।  मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए। अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया।  मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था। मालिक ने कहा कि कल से तुम्हें अंडे देने होंगे नहीं तो मै तेरा

हिन्दी काव्य के आधार: विद्यापति, गोरखनाथ, अमीर खुसरो, कबीर एवं जायसी

                              हिन्दी काव्य  कोरोना-काल के चलते विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में भौतिक रूप से कम कक्षाएं चल पाने के चलते विद्यार्थियों के सामने पाठ्यक्रम पूरा करने की चुनौती तो है ही। साथ ही परीक्षा-उत्तीर्ण करने से ज़्यादा बड़ी चुनौती पूरे पाठ्यक्रम को आत्मसात करने की  है। क्योंकि पता नहीं कि परीक्षाएँ ओएमआर सीट पर वस्तुनिष्ठ हों या विस्तृत-उत्तरीय? विद्यार्थी इस चुनौती का सामना कैसे करें, इसके लिए यहाँ कुछ तरीके बताए जा रहे हैं। इसके पहले के लेख में विद्यार्थियों को समय-सारिणी बनाकर अध्ययन करने की आवश्यकता बताई गई थी। जो विद्यार्थी ऐसा कर रहे होंगे उन्हें इसके लाभ का अनुभव जरूर मिल रहा होगा। यहाँ  आदिकालीन हिन्दी के तीन कवियों- विद्यापति, गोरखनाथ एवं अमीर खुसरो तथा निर्गुण भक्ति काव्य के दो कवियों- कबीर एवं मलिक मोहम्मद जायसी के महत्त्वपूर्ण एवं स्मरणीय बिंदुओं को रेखांकित करने का प्रयास किया जा रहा है। वस्तुतः ये ही हिन्दी विशाल हिन्दी काव्यधारा के आधार कवि हैं जिनकी भावभूमियों पर आगे की कविता का महल खड़ा हुआ है।  उम्मीद है कि विद्यार्थी इसका लाभ भी अवश्य उठाएंगे! (1) व

कबीर इतने महत्त्वपूर्ण क्यों?..

  online_classes                 कबिरा खड़ा बजार में...           अच्छा नहीं लगता, पर सवाल तो है! सारे लोगों के दिमाग में यह सवाल उठना चाहिए कि जिस व्यक्ति के माँ-बाप का भी ठीक से पता नहीं, जो स्वयं 'मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ'...का उद्घोष करता हो, वह भी उस मध्यकाल में जब राजाओं-सामन्तों का हुक्म ही कानून माना जाता था, ऐसे समय में एक व्यक्ति समाज की रूढ़ियों पर ही नहीं धर्म-मजहब पर भी ऐसा कठोर प्रहार कैसे कर लेता है?             तब मानवतावाद का न तो कोई ढिंढोरा पीटा जाता था और न ऐसा कोई नाम कमाने के लिए करता था, तब की उस अंधेरी दुनिया में जब जाति और धर्म आज की तरह राजनीति के दुमछल्ले न होकर समाज के अपने नियमों से चलने वाले थे...कैसे एक व्यक्ति इतना आदरणीय हो सकता है जो दोनों को उल्टा खड़ा कर दे? या यह सब इसीलिए कि आज मानवतावादी सोच विकसित हुई है, इसीलिए कबीर की रचनाओं को भी महत्त्व मिलने लगा है? लेकिन, अगर इतना ही मानवतावादी मूल्यों की समाज में मान्यता है तो फिर ये 'मॉब-लिंचिंग', जातिवादी-साम्प्रदायिक दंगे कैसे? क्या मानवतावाद का ढिंढोरा पीटना और किसी धर्म-सम्प्

चित्रलेखा~ पाखण्ड का लेखाजोखा

  online_classes                             चित्रलेखा उपन्यास:                              एक परिचय 'चित्रलेखा' हिन्दी साहित्य का एक ऐसा प्रसिद्ध उपन्यास है जिसकी प्रसिद्धि प्रेमचन्द के उपन्यास गोदान, फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास मैला आँचल, यशपाल के उपन्यास दिव्या आदि की तरह मानी जाती है। उपन्यास अपने प्रकाशन वर्ष सन् 1934 से ही यह चर्चा के केंद्र में रहा है। उपन्यास सामाजिक-आध्यात्मिक क्षेत्र के बहु-चर्चित मुद्दे- अध्यात्मवाद बनाम भौतिक जीवन को अत्यंत जीवन्त रूप में प्रस्तुत करता है। उपन्यास धर्म और समाज की पारम्परिक मान्यताओं को चुनौती देता है। सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में प्रचलित पाखण्डों पर चोट करने के कारण इसने साहित्यिक क्षेत्र में विशेष प्रसिद्धि पाई।          चित्रलेखा उपन्यास को प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक-उपन्यासकार और सन् 1921 के साहित्य का नोबेल पुरस्कार विजेता अनातोले फ्रांस के उपन्यास थॉयसिस से प्रेरणा-प्राप्त उपन्यास कहा जाता है किंतु इसका विषय अनातोले फ्रांस के ही 1914 में प्रकाशित उनके  दूसरे उपन्यास 'रिवोल्ट ऑफ़ एंजेल्स' अथवा 'देवदूतों का विद्रोह' स

परीक्षा की तैयारी के कुछ जरूरी टिप्स: हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए!

परीक्षा की तैयारी     online_classes                              कम समय में              कैसे करें परीक्षा की बेहतर तैयारी? कम समय में परीक्षा की तैयारी कैसे करें  ?   इस वर्ष से उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रथम वर्ष का पाठ्यक्रम 'सेमेस्टर-सिस्टम' के हिसाब से तैयार किया गया है। एक वर्ष में दो सेमेस्टर या सत्र होने हैं। इन दोनों ही सत्रों का पाठ्यक्रम पूरी तरह अलग होगा। ऐसे में कोरोना-काल में विश्वविद्यालय/महाविद्यालय प्रायः अध्ययन-अध्यापन के लिए 'भौतिक रूप से बन्द' होने के चलते पाठ्यक्रम की तैयारी में विद्यार्थियों को परेशानी होना स्वाभाविक है। विद्यार्थियों के लिए #ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था का प्रचार किया जा रहा है, किन्तु इसके लिए  आधारभूत व्यवस्था न होने के चलते यह सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। सारे विद्यार्थियों के पास न तो उपयुक्त मोबाइल की व्यवस्था होती है, न ही इंटरनेट की। सभी अध्यापक भी ऑनलाइन तरीके से पढ़ाने में पारंगत नहीं होते। इसके बावजूद विद्यार्थियों की मजबूरी है कि वे 'ऑनलाइन' पढ़ाई करें। इसके अलावा अभी प्रवेश के बाद पढाई की व्यवस्

'मुक्तिबोध' की कविता

  हिन्दी साहित्य     परीक्षा की तैयारी स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र     गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की कविता                       'ब्रह्मराक्षस'                          गजानन माधव 'मुक्तिबोध'   हिंदी के ऐसे कवि हैं जिनकी कविताओं का मर्म भेदने के लिए कविता के शब्दों से अधिक मुक्तिबोध के मानस में उतरना पड़ता है। उनकी कविताओं के शब्द एक पर्दे की तरह हैं जिनको खोले बिना आप उनके पीछे का संसार नहीं देख सकते, उसके सौंदर्य को नहीं परख सकते। केवल शब्दों से उनके काव्य-सौंदर्य की थाह लगा लेना उसी तरह मुश्किल है जैसे किसी कमरे के पर्दे के बाहर से कमरे के भीतर की स्थितियों को जानने की कोशिश करना। उनके शब्द अनुमान का साधन मात्र हैं, प्रत्यक्ष का अनुभव कराने के साधन नहीं- उद्भ्रांत शब्दों के नए आवर्त में हर शब्द निज प्रति शब्द को भी काटता, वह रूप अपने बिंब से भी जूझ विकृताकार-कृति है बन रहा...                             - 'ब्रह्मराक्षस'        मुक्तिबोध  की कविताओं में ऐसे ही शब्दों के अनेक आवर्त-चक्र मिलते हैं जो उनकी कविताओं के नए पाठकों  को चकरा देते हैं। कविताओं

ये किसकी जीत ये किसकी हार?..

              तंत्रलोक के किस्से यार                           --  अशोक प्रकाश तंत्रलोक के किस्से यार ये किसकी जीत ये किसकी हार! इक हौली में चार पियक्कड़ अक्कड़ बक्कड़ लाल बुझक्कड़ तय है वादा तय है रोना तय है खोना तय है सोना तय है किस पर पड़नी मार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! रामसिंह के रमरजवा नौकर किसके पेट पे किसकी ठोकर चार हजार में कर मज़दूरी रामसिंह कहें ये मजबूरी किसके सइकिल किसके कार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! खेती-बाड़ी मुश्किल काम न दिन आराम न रात आराम खाद-बीज-पानी के चक्कर राधा-कृष्ण बने घनचक्कर उमर हो गई सत्तर पार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! बड़का लड़का पड़ा बीमार नौकरी-चाकरी कुछ न यार छोटकी की पहले परवाह कैसे होगा इसका ब्याह? क्षीण पड़ रही जीवन-धार... ये किसकी जीत ये किसकी हार!               ★★★★★