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Showing posts from April, 2020

विद्यार्थी, ऑनलाइन पढाई और सोशल मीडिया

                      सोशल मीडिया:               साहित्य और  सामाजिक-चेतना                                                   साहित्य और समाज का सम्बंध  चर्चा का एक पुराना विषय है! लेकिन समाज का दुर्भाग्य कहें कि साहित्य का, यह विषय आज भी जीवंत है और समाज का एक बड़ा हिस्सा साहित्य को 'मनोरंजन की चीज' से अधिक और कुछ नहीं मानता। शायद इसीलिए समाज में बहुत कम लोग हैं जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल साहित्य अध्ययन के लिए करते हैं। ज़्यादातर के लिए तो सोशल मीडिया मनोरंजन का एक साधन भर है। इसी कारण जब कोई गंभीर साहित्यिक चर्चा होती है, अधिक लोग उससे नहीं जुड़ते। विशेषकर यूट्यूब और फेसबुक का इस्तेमाल तो गप्पों और भौंडे मनोरंजन के लिए ही अधिक होता है। लेकिन जैसे साहित्य का समाज की चेतना के लिए उपयोग होता है, वैसे ही सोशल मीडिया का भी विद्याध्ययन और सामाजिक चेतना के विकास के लिए उपयोग किया जा सकता है।                 इसे दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य, ऑनलाइन पढाई के इस दौर में ऑफलाइन या अध्ययन-केंद्रों में जाकर अध्ययन का दायरा अब सिकुड़ता जा रहा है। उच्च अध्ययन के लिए भी लोग अब इंटरनेट पर ब्

डॉ._अम्बेडकर और #राहुल_सांकृत्यायन

                 डॉ. भीमराव अम्बेडकर,     राहुल सांकृत्यायन  और बौद्धधम्म                                                           - अशोक प्रकाश            14 अप्रैल देश की जनता और बुद्धिजीवियों के लिए एक खास तारीख है। देश के दो प्रखर बुद्धिजीवियों के स्मरण का यह एक विशेष दिन है!...इस दिन जहाँ 'संविधान_निर्माता' माने जाने वाले डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पड़ती है, वहीं देश के अप्रतिम साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन की निधन-तिथि!... राजनीतिक गलियारों ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम को आत्मसात कर लिया है!..देश भर में #अम्बेडकर_जयंती के अवसर पर आज उनकी वन्दना, पूजा की जाती है... इसके लिए रैलियां निकाली जाती हैं। वर्णवादी उत्पीड़न-अत्याचार को जातिवादी स्वरूप  देकर डॉ. अम्बेडकर को भुनाने का काम उनके समर्थक और अनुयायी ही नहीं, उनके वैचारिक-राजनीतिक विरोधी भी कर रहे हैं! दोनों के निष्कर्षों में आज कोई विशेष अंतर भी नहीं रह गया है। डॉ. अम्बेडकर ने जिस तबके के शोषण-उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए आजीवन संघर्ष किया, आज वह वोटबैंक बनकर चकरघिन्नी बना हुआ है!... आज भी डॉ. #अम्बेडकर

#कोरोना_टाइम्स: लोग ही इतिहास बनाते हैं..

                                    वे फिर हारेंगे!...                                                 - अशोक प्रकाश ऐसा लगता है जैसे हम किसी दूसरी दुनिया में आ गए हों!..लगता है जैसे यह हमारी वह दुनिया नहीं जिस पर एक मनुष्य के रूप में हमें सुकून महसूस होता था!... लगता था कि ये हवा, ये फूल और उनकी खुशबू, ये नदियां, पहाड़, बाग-बगीचे, आसमान और चांद, ये मिट्टी और उसकी सुगन्ध...पूरी की पूरी क़ायनात पर हमारा भी हक़ है!... न जाने कितने समय से यह धरती हमें अपने आगोश में छुपाए रही है, सहारा देती रही है, तभी तो हमारा अस्तित्व बचा है अभी तक इस पर!...और अब? लगता है जैसे हम गए!... लेकिन नहीं!...शायद यह हमारा भ्रम है, भ्रम था। एक पल भी संघर्षों के बिना हम इस धरती पर टिके नहीं रह सकते थे। धरती तो एक जीवनदायिनी शक्ति रही है हमारे अस्तित्व की।   ...जीने का एक सहारा, एक संसाधन! वह  अपने आप न तो हमें जीवन दे सकती थी, न ले सकती थी! इस धरती और हमारे बीच के द्वंद्वात्मकता सम्बन्ध ही हैं जिन्होंने हमें बनाया-बढाया, इस धरती को भी और सुंदर बनाया।  हम मनुष्य ही हैं जिन्होंने  अपनी जरूरतों

कोरोना_टाइम्स: जिंदगी दुश्वार होती जा रही...

                    एक ग़ज़ल                               - अखिलेश कुमार शर्मा जिंदगी  दुश्वार  होती  जा  रही। हर  दवा  बेकार  होती जा रही। भेड़िये का काम मुश्किल कर रही भेड़  भी   गद्दार  होती  जा  रही । भाग जाती है झटक कर हाथ ही तू  तो अब सरकार होती जा रही। मछलियों ने जाल खुद ही चुन लिए योजना  साकार   होती   जा  रही । अबतो पैसों की खनक सुनती है बस जानेमन  अखबार   होती  जा  रही ।।                               -  फेसबुक से साभार                       ★★★★

किसानों के बारे में...

                                                         समाज के  अप्रतिम  शिक्षक और                       साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन आज देश के एक महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन का जन्मदिन है ! 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के पंदहा गांव (-ननिहाल, कनैला- पैतृक गांव) में जन्मे राहुल सांकृत्यायन का व्यक्तित्व बहु आयामी था। उन्होंने बहुत कुछ और विविध विषयों पर लिखा है। अनेक देशों का भ्रमण किया, रहे। वहां के बारे में लिखा। 'वोल्गा से गंगा' के अलावा बहुत कुछ वैश्विक-भारतीय संस्कृति से परिचय कराने के लिए लिखा। 'दिमागी गुलामी' दिखाई तो विकृतियों पर आक्रोश व्यक्त करते हुए 'तुम्हारी क्षय' जैसी पुस्तिका लिखी। 'हिंदी काव्यधारा' तो उनकी ऋणी है ही, बौद्ध धम्म की पांडुलिपियों की खोज में नेपाल-तिब्बत-श्री लंका...न जाने कहाँ-कहाँ की खाक छानी!... हिंदी विकिपीडिया का यह कथन वास्तव में उनके महान व्यक्तित्व की व्याख्या करता है:.. "२१वीं सदी के इस दौर में जब संचार-क्रान्ति के साधनों ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ में परिवर्तित कर दिया हो एवं

Corona_Times: Study_Help

#Corona_Times Study_Help : #कोरोना_टाइम्स का यह पटल विद्यार्थियों और हिंदी साहित्य में अभिरुचि रखने वाले आम जनों की जिज्ञासाओं को प्रशमित करने, उनके महत्वपूर्ण सवालों का जवाब देने, साहित्याधारित समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से बनाया गया है!...       कृपया अपने सवालों और समस्याओं को नीचे टिप्पणी बॉक्स (Enter Your Comment) में लिखे!  **********************************************                   अप्रतिम साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन आज देश के एक महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन का जन्मदिन है ! 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के पंदहा गांव (-ननिहाल, कनैला- पैतृक गांव) में जन्मे राहुल सांकृत्यायन का व्यक्तित्व बहु आयामी था। उन्होंने बहुत कुछ और विविध विषयों पर लिखा है। अनेक देशों का भ्रमण किया, रहे। वहां के बारे में लिखा। 'वोल्गा से गंगा' के अलावा बहुत कुछ वैश्विक-भारतीय संस्कृति से परिचय कराने के लिए लिखा। 'दिमागी गुलामी' दिखाई तो विकृतियों पर आक्रोश व्यक्त करते हुए 'तुम्हारी क्षय' जैसी पुस्तिका लिखी। 'हिंदी काव्यधारा' तो उनकी ऋण