एक ग़ज़ल
- अखिलेश कुमार शर्मा
जिंदगी दुश्वार होती जा रही।
हर दवा बेकार होती जा रही।
भेड़िये का काम मुश्किल कर रही
भेड़ भी गद्दार होती जा रही ।
भाग जाती है झटक कर हाथ ही
तू तो अब सरकार होती जा रही।
मछलियों ने जाल खुद ही चुन लिए
योजना साकार होती जा रही ।
अबतो पैसों की खनक सुनती है बस
जानेमन अखबार होती जा रही ।।
- फेसबुक से साभार ★★★★
एक अच्छी ग़ज़ल
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