Skip to main content

किसानों के बारे में...

            
                       
                    समाज के अप्रतिम शिक्षक और 
                     साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन


आज देश के एक महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन का जन्मदिन है ! 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के पंदहा गांव (-ननिहाल, कनैला- पैतृक गांव) में जन्मे राहुल सांकृत्यायन का व्यक्तित्व बहु आयामी था। उन्होंने बहुत कुछ और विविध विषयों पर लिखा है। अनेक देशों का भ्रमण किया, रहे। वहां के बारे में लिखा। 'वोल्गा से गंगा' के अलावा बहुत कुछ वैश्विक-भारतीय संस्कृति से परिचय कराने के लिए लिखा। 'दिमागी गुलामी' दिखाई तो विकृतियों पर आक्रोश व्यक्त करते हुए 'तुम्हारी क्षय' जैसी पुस्तिका लिखी। 'हिंदी काव्यधारा' तो उनकी ऋणी है ही, बौद्ध धम्म की पांडुलिपियों की खोज में नेपाल-तिब्बत-श्री लंका...न जाने कहाँ-कहाँ की खाक छानी!...

हिंदी विकिपीडिया का यह कथन वास्तव में उनके महान व्यक्तित्व की व्याख्या करता है:..

"२१वीं सदी के इस दौर में जब संचार-क्रान्ति के साधनों ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ में परिवर्तित कर दिया हो एवं इण्टरनेट द्वारा ज्ञान का समूचा संसार क्षण भर में एक क्लिक पर सामने उपलब्ध हो, ऐसे में यह अनुमान लगाना कि कोई व्यक्ति दुर्लभ ग्रन्थों की खोज में हजारों मील दूर पहाड़ों व नदियों के बीच भटकने के बाद, उन ग्रन्थों को खच्चरों पर लादकर अपने देश में लाए, रोमांचक लगता है। पर ऐसे ही थे भारतीय मनीषा के अग्रणी विचारक, साम्यवादी चिन्तक, सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, सार्वदेशिक दृष्टि एवं घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के महान पुरूष राहुल सांकृत्यायन।..." राहुल सांकृत्यायन वास्तव में हमारे समाज के एक अप्रतिम शिक्षक थे। उनकी दी गई शिक्षा हमारे लिए आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी उनके समय में थी। वे किसानों-मजदूरों के चिंतक और बुद्धिजीवियों को रास्ता दिखाने वाले कर्मयोगी थे।

    देश की रीढ़ कहे जाने वाले किसानों के बारे में राहुल लिखते हैं:

" किसान वास्तविक धन का उत्पादक है, क्योंकि वह मिट्टी को गेहूं , चावल, कपास के रूप में परिणत करता है।...उसको मालूम है कि धरती माता के यहाँ रिश्वत नहीं चल सकती-- वह स्तुति-प्रार्थना के द्वारा अपने हृदय को खोल नहीं सकती। यह अकिंचन मिट्टी सोने के गेहूँ, रूपे के चावल और अंगूरी मोतियों के रूप में तब परिणत होती है जब धरती माता देख लेती है कि किसान ने उनके लिए अपने खून के कितने घड़े पसीने दिए, कितनी बार थकावट के मारे उसका बदन चूर-चूर हो गया और कुदाल अनायास उसके हाथ से गिर गई।
        गेहूँ बना-बनाया तैयार एक-एक जगह दस-बीस मन रखा नहीं मिलता, वह पन्द्रह-पन्द्रह, बीस-बीस दानों के रूप में और वह भी अलग अलग बालियों में छिपा सारे खेत में बिखरा रहता है। किसान उन्हें जमा करता है, बालियों से अलग करता है। दस-दस, बीस-बीस मन की राशि को एक जगह देखकर एक बार उसका हृदय पुलकित हो उठता है। महीनों की भूख से अधमरे उसके बच्चे चाह भरी निगाह से उस राशि को देखते हैं। वे समझते हैं कि दुःख की अंधेरी रात कटने वाली है और सुख का सवेरा सामने आ रहा है। उनको क्या मालूम कि उनकी यह राशि- जिसे उनके माता-पिता ने इतने कष्ट के साथ पैदा किया- उनके खाने के लिए नहीं है। इसके खाने के अधिकारी सबसे पहले वे स्त्री-पुरुष हैं जिनके हाथों में एक भी घट्टा नहीं है, जिनके हाथ गुलाब जैसे लाल और मक्खन जैसे कोमल हैं..." ('- तुम्हारे समाज की क्षय')

राहुल सांकृत्यायन का जीवन और कृतित्व यह सिखाता है कि शिक्षा का मतलब आजीविका चलाना मात्र कभी नहीं समझा जाना चाहिए।...यही सीख यह भी प्रेरणा देती है कि कम से कम आजीविका के लिए तो संघर्ष करो, पढ़े-लिखों!

                           ★★★★★★★

Comments

Popular posts from this blog

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

नाथ-सम्प्रदाय और गुरु गोरखनाथ का साहित्य

स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र परीक्षा की तैयारी नाथ सम्प्रदाय   गोरखनाथ         हिंदी साहित्य में नाथ सम्प्रदाय और             गोरखनाथ  का योगदान                                                     चित्र साभार: exoticindiaart.com 'ग्यान सरीखा गुरु न मिल्या...' (ज्ञान के समान कोई और गुरु नहीं मिलता...)                                  -- गोरखनाथ नाथ साहित्य को प्रायः आदिकालीन  हिन्दी साहित्य  की पूर्व-पीठिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।  रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल को 'आदिकाल' की अपेक्षा 'वीरगाथा काल' कहना कदाचित इसीलिए उचित समझा क्योंकि वे सिद्धों-नाथों की रचनाओं को 'साम्प्रदायिक' रचनाएं समझत...

अवधी-कविता: पाती लिखा...

                                स्वस्ती सिरी जोग उपमा...                                         पाती लिखा...                                            - आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' श्री पत्री लिखा इहाँ से जेठू रामलाल ननघुट्टू कै, अब्दुल बेहना गंगा पासी, चनिका कहार झिरकुट्टू कै। सब जन कै पहुँचै राम राम, तोहरी माई कै असिरबाद, छोटकउना 'दादा' कहइ लाग, बड़कवा करै दिन भै इयाद। सब इहाँ कुसल मंगल बाटै, हम तोहरिन कुसल मनाई थै, तुलसी मइया के चउरा पै, सँझवाती रोज जराई थै। आगे कै मालूम होइ हाल, सब जने गाँव घर खुसी अहैं, घेर्राऊ छुट्टी आइ अहैं, तोहरिन खातिर सब दुखी अहैं। गइया धनाइ गै जगतू कै, बड़कई भैंसि तलियानि अहै। बछिया मरि गै खुरपका रहा, ओसर भुवरई बियानि अहै। कइसे पठई नाही तौ, नैनू से...