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प्रवासी मजदूर और किसान आंदोलन:

किसान आंदोलन             क्या प्रवासी मजदूरों के साथ आने से        और तेज होगा  किसान आंदोलन?           हालांकि पिछले साल की अभूतपूर्व और निर्मम प्रवासी मजदूर पलायन की घटना की पुनरावृत्ति शायद ही इस साल हो!...क्योंकि शासकवर्ग भी यह जानता है और प्रवासी मजदूर भी कि ऐसा होना किसी भी प्रकार की अनहोनी घटना को आमंत्रण दे सकता है। यद्यपि पूंजीवाद अपने मुनाफे के लिए किसी भी हद तक क्रूर हो सकता है, पिछली सदी के दो विश्वयुद्ध इसीलिए लड़े गए थे, किन्तु इनके संचालक यह भी समझते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि सिक्के का पहलू हमेशा उनकी तरफ ही बना रहे। दो विश्वयुद्धों का परिणाम भी उन्हें अच्छी तरह पता होगा। इन युध्दों के बाद एक समय ऐसा लगने लगा था कि जैसे दुनिया से पूंजीवाद का हमेशा के लिए खात्मा हो जाएगा। इन युध्दों के खिलाफ उठ खड़ी हुई जनता की वैश्विक गोलबंदी का ही परिणाम था लंबे समय से बनाए रखे गए उपनिवेश आज़ाद होने लगे। भले ही औपनिवेशिक शासकों ने स्थानीय शासकों से मिलकर मुनाफे को बनाए रखने के समझौते किए और इसी का परिणाम है कि वैश्विक पूँजीवाद या साम्राज्यवाद आज भी जिंदा है। दुनिया भर की जनता को इन समझौतों