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Showing posts from May, 2020

नरक की कहानियाँ: 2~बनो दिन में तीन बार मुर्गा!..

व्यंग्य-कथा :                       दिन में तीन बार मुर्गा बनने का आदेश:                                 और उसके फ़ायदे                                                     - अशोक प्रकाश     मुर्गा बनो जैसे ही दिन में कम से कम तीन बार मुर्गा बनने का 'अति-आवश्यक' आदेश निकला, अखबारों के शीर्षक धड़ाधड़ बदलने लगे। चूंकि इस विशिष्ट और अनिवार्य आदेश को दोपहर तीन बजे तक वाया सर्कुलेशन पारित करा लिया गया था और पांच बजे तक प्रेस-विज्ञप्ति जारी कर दी गई थी, अखबारों के पास इस समाचार को प्रमुखता से छापने का अभी भी मौका था। एक प्रमुख समाचार-पत्र के प्रमुख ने शहर के एक प्रमुख बुद्धिजीवी से संपर्क साधकर जब उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही, उन्होंने टका-सा जवाब दे दिया। बोले- "वाह संपादक महोदय, वाह!...आप चाहते हैं कि इस अति महत्वपूर्ण खबर पर अपना साक्षात्कार मैं यूं ही मोबाइल पर दे दूँ!....यह नहीं होगा। आपको मेरे घर चाय पीनी पड़ेगी, यहीं बातचीत होगी और हाँ, मेरे पारिश्रमिक का चेक भी लेते आइएगा ताकि साक्षात्कार मधुर-वातावरण में स

मधुशाला के मधुमिलिंद हे!

कटूक्ति:                              हे हे अति-माननीयों!... अर्थात् - हे मधुशाला के मधु-मिलिंद यानि शराब की तलाश में इस लॉकडाउन में भी निर्भय विचरण करते रहने वाले भ्रमर-बंधुओं,   शराब जिसे तुम सोमरस कहकर अलौकिक आनन्द की अनुभूति करते हो, तुम्हें मुबारक़ हो! तुम्हारी हर जगह जय है, मैं जय हो कहकर लज्जित हूँ!... आखिर ये तो बताओ, इतना दिन धीरज कैसे धारण किए रहे?...आप यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं, हर जगह हैं। आपने पहले ही क्यों अपने दिव्य प्रभाव का इस्तेमाल कर मधुशालाएँ नहीं खुलवा लीं?...जबकि दवा की दुकानें खोलने जाते हुए भी रास्ता डंडा लेकर भयभीत करता है, आपके लिए सब कुछ सुलभ है।... हे शराब के शौकीन अति-माननीयों! पत्नियों, लड़कियों, ठेले वालों, सब्ज़ी वालों, नाली-नालों को बचाए रखना! हे संप्रभुओं, आपकी जय-जयकार हो रही है, और भी हो!...किसी गाड़ी को न चकनाचूर कर देना प्रभु! हम जानते हैं कि आप न होते तो अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी होती। इसीलिए आपके कुछ अति-प्रेमी लोग कहने लगे हैं- 'शराब बेचने पर भी अगर  अर्थव्यवस्था नहीं सुधरे तो,  चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन आदि पर भी विचार करन

मई-दिवस: इससे पहले कि...

●●●● मई दिवस पर:                                 इससे पहले कि...                                                   - अशोक प्रकाश    इससे पहले कि वे जानवर जैसी ज़िंदगी के लिए मजबूर कर दें दुनिया को समझो और देखो कि इंसान कीड़ा-मकोड़ा, जानवर नहीं ज्ञान-विज्ञान के सहारे  इन पर विजय पाने वाला धरती का सबसे ताकतवर प्राणी है... इससे पहले कि उनके बनाए, बताए, समझाए भूत-प्रेत, ओझा-सोखा, भगवान विषाणु-कीटाणु-शैतान  तुम्हें निगल जाएँ सत्य का हथौड़ा उठाओ और  प्रहार करो उस अपराधी दिमाग पर जो पूँजी के हथियार से  खत्म कर देना चाहता है सारी दुनिया जिसमें इंसान भी है और विज्ञान भी  सिर्फ़ अपने लालच और मुनाफ़े की हवस के लिए.... इससे पहले कि वे तहस-नहस कर दें धरती और उसकी सारी खूबसूरती इनकार कर दो उनकी सारी शर्तें  उघाड़ दो उनके अपराध उसकी सारी परतें जान और मान लो कि बढ़ती मुसीबतों का कारण तुम खुद नहीं, तुम्हारी मेहनत नहीं उनके मन का विकार- तुम्हारे ज्ञान पर छाया अंधकार है.... इससे पहले कि वे तुम्हें फिर जाति-धर्म-क्षेत्र-देश के नाम पर बहकाएँ तुम्हारी मेहनत-मजू