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मई दिवस पर:
इससे पहले कि...
- अशोक प्रकाश
इससे पहले कि
वे जानवर जैसी ज़िंदगी के लिए
मजबूर कर दें
दुनिया को समझो
और देखो कि
इंसान कीड़ा-मकोड़ा, जानवर नहीं
ज्ञान-विज्ञान के सहारे
इन पर विजय पाने वाला
धरती का सबसे ताकतवर
प्राणी है...
इससे पहले कि
उनके बनाए, बताए, समझाए
भूत-प्रेत, ओझा-सोखा, भगवान
विषाणु-कीटाणु-शैतान
तुम्हें निगल जाएँ
सत्य का हथौड़ा उठाओ
और
प्रहार करो उस
अपराधी दिमाग पर
जो पूँजी के हथियार से
खत्म कर देना चाहता है
सारी दुनिया
जिसमें इंसान भी है और विज्ञान भी
सिर्फ़ अपने लालच और
मुनाफ़े की हवस के लिए....
इससे पहले कि
वे तहस-नहस कर दें
धरती और उसकी सारी खूबसूरती
इनकार कर दो
उनकी सारी शर्तें
उघाड़ दो उनके अपराध
उसकी सारी परतें
जान और मान लो कि
बढ़ती मुसीबतों का कारण
तुम खुद नहीं, तुम्हारी मेहनत नहीं
उनके मन का विकार-
तुम्हारे ज्ञान पर छाया
अंधकार है....
इससे पहले कि
वे तुम्हें फिर
जाति-धर्म-क्षेत्र-देश के नाम पर
बहकाएँ
तुम्हारी मेहनत-मजूरी-जिंदगी
डकार जाएँ
खेत-खलिहानों, कल-कारखानों में
उगो और उठो
और हे कैरियर और इंजीनियर-शब्दों के
मई दिवस पर:
इससे पहले कि...
- अशोक प्रकाश
इससे पहले कि
वे जानवर जैसी ज़िंदगी के लिए
मजबूर कर दें
दुनिया को समझो
और देखो कि
इंसान कीड़ा-मकोड़ा, जानवर नहीं
ज्ञान-विज्ञान के सहारे
इन पर विजय पाने वाला
धरती का सबसे ताकतवर
प्राणी है...
इससे पहले कि
उनके बनाए, बताए, समझाए
भूत-प्रेत, ओझा-सोखा, भगवान
विषाणु-कीटाणु-शैतान
तुम्हें निगल जाएँ
सत्य का हथौड़ा उठाओ
और
प्रहार करो उस
अपराधी दिमाग पर
जो पूँजी के हथियार से
खत्म कर देना चाहता है
सारी दुनिया
जिसमें इंसान भी है और विज्ञान भी
सिर्फ़ अपने लालच और
मुनाफ़े की हवस के लिए....
इससे पहले कि
वे तहस-नहस कर दें
धरती और उसकी सारी खूबसूरती
इनकार कर दो
उनकी सारी शर्तें
उघाड़ दो उनके अपराध
उसकी सारी परतें
जान और मान लो कि
बढ़ती मुसीबतों का कारण
तुम खुद नहीं, तुम्हारी मेहनत नहीं
उनके मन का विकार-
तुम्हारे ज्ञान पर छाया
अंधकार है....
इससे पहले कि
वे तुम्हें फिर
जाति-धर्म-क्षेत्र-देश के नाम पर
बहकाएँ
तुम्हारी मेहनत-मजूरी-जिंदगी
डकार जाएँ
खेत-खलिहानों, कल-कारखानों में
उगो और उठो
और हे कैरियर और इंजीनियर-शब्दों के
बियावानों में भटकते नौजवानों,
दिहाड़ी के लिए खून-पसीना निचोड़ते
देश-दुनिया के असंख्य कामगारों
का हाथ पकड़ो
सोचो और देखो कि
उनकी और अपनी जिंदगी
और कितना खूबसूरत बना सकते हो तुम
धरती का और कितना श्रृंगार
कर सकते हो,
इसे और कितना बेहतर
बना सकते हो तुम...
बहुराष्ट्रीय-गुलामी से बेहतर है
जन-स्वतंत्रता
मुक्त खेत-खलिहान, कल-कारखाने
शोषण-मुक्त जिंदगी की खुशहाली
अपनों की,
अपनी नई दुनिया की रखवाली!...
उन पर अविश्वास
आज
अपनों पर विश्वास का प्रतीक है
पूँजी के शहजादों और प्यादों को
झूठा, मक्कार और गद्दार मानना ही
सही है, सटीक है!...
★★★★★
दिहाड़ी के लिए खून-पसीना निचोड़ते
देश-दुनिया के असंख्य कामगारों
का हाथ पकड़ो
सोचो और देखो कि
उनकी और अपनी जिंदगी
और कितना खूबसूरत बना सकते हो तुम
धरती का और कितना श्रृंगार
कर सकते हो,
इसे और कितना बेहतर
बना सकते हो तुम...
बहुराष्ट्रीय-गुलामी से बेहतर है
जन-स्वतंत्रता
मुक्त खेत-खलिहान, कल-कारखाने
शोषण-मुक्त जिंदगी की खुशहाली
अपनों की,
अपनी नई दुनिया की रखवाली!...
उन पर अविश्वास
आज
अपनों पर विश्वास का प्रतीक है
पूँजी के शहजादों और प्यादों को
झूठा, मक्कार और गद्दार मानना ही
सही है, सटीक है!...
★★★★★
बहुत सुंदर-#किसान सेना निर्दल
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