कटूक्ति:
हे हे अति-माननीयों!...
अर्थात् -
हे मधुशाला के मधु-मिलिंद यानि शराब की तलाश में इस लॉकडाउन में भी निर्भय विचरण करते रहने वाले भ्रमर-बंधुओं, शराब जिसे तुम सोमरस कहकर अलौकिक आनन्द की अनुभूति करते हो, तुम्हें मुबारक़ हो! तुम्हारी हर जगह जय है, मैं जय हो कहकर लज्जित हूँ!...
आखिर ये तो बताओ, इतना दिन धीरज कैसे धारण किए रहे?...आप यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं, हर जगह हैं। आपने पहले ही क्यों अपने दिव्य प्रभाव का इस्तेमाल कर मधुशालाएँ नहीं खुलवा लीं?...जबकि दवा की दुकानें खोलने जाते हुए भी रास्ता डंडा लेकर भयभीत करता है, आपके लिए सब कुछ सुलभ है।...
हे शराब के शौकीन अति-माननीयों! पत्नियों, लड़कियों, ठेले वालों, सब्ज़ी वालों, नाली-नालों को बचाए रखना! हे संप्रभुओं, आपकी जय-जयकार हो रही है, और भी हो!...किसी गाड़ी को न चकनाचूर कर देना प्रभु!
हम जानते हैं कि आप न होते तो अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी होती। इसीलिए आपके कुछ अति-प्रेमी लोग कहने लगे हैं-
'शराब बेचने पर भी अगर
अर्थव्यवस्था नहीं सुधरे तो,
चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन आदि पर भी
विचार करना चाहिए..!' 🤔🤔🤔
गलत बात!...उच्चवर्ग के शौक को गरीब लोगों में 'पउआ', 'अद्धा' तक तो सीमित किया जा सकता है लेकिन चोरी-छिपे के मुनाफ़ा-व्यापार को अगर यूँ ही सर्व-सुलभ और सार्वजनीन कर दिया गया तो 'दो-नम्बर' की महिमा घट जाएगी!...
Comments
Post a Comment