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Showing posts with the label बेरोजगारी

इस रात की सुबह कब?..

                      सिर्फ़   नाइंसाफ़ी नहीं,                 शासकों का अपराध है यह! हे युवाओं! हे  बेरोजगारो!.. सब कुछ अपने आप नहीं हो रहा है! किसी ईश्वर की माया से अपने आप नहीं घट रहा है! यह सब सुनियोजित है! तुम्हारी बेरोजगारी भी, निकाली और न भरी जातीं भर्तियाँ भी! परीक्षा के एक-दो दिन पहले मिलते प्रवेशपत्र भी। इधर का परिक्षाकेन्द्र उधर होना और उधर का परिक्षाकेन्द्र इधर होना भी! बसों और ट्रेनों में भुस की तरह घुसकर तुम्हारा जाना भी। ज़्यादा किराया वसूलना भी, मारपीट करना भी। कु छ भी नेचुरल नहीं, स्वाभाविक नहीं। करोड़ों की कमाई और मुनाफ़ा इसके पीछे है! सब शासकों द्वारा सुचिंतित और सोच-विचार कर सुनियोजित तरीके से क्रियान्वित किया गया!.. कब जागोगे?... कब समझोगे?... कब उठोगे?...                       ★★★★★

यह संदेश आप सबके लिए है!

                        राजतिलक की करो तैयारी                         घर आ रहे हैं..                 18 लाख बैंक कर्मचारी!  😁😁 बैंको के निजीकरण से 10 लाख नौकरियां खत्म होंगी  तो उन 10 लाख लोगो को  अपने परिवार के साथ 30 लाख लोगो को  सड़कों पर आंदोलन पर होना चाहिए। BSNL से शुरू हुआ कारवां,  दिन दूनी रात चौगनी तरक़्क़ी करता हुवा  आज बैंकों तक पहुँच गया.. नम्बर सबका आएगा प्रसाद सबको मिलेगा जब तक दवाई नही तब तक ढिलाई नही। लगातार हाथ धोते रहिये। कभी नौकरी से,कभी सैलरी से, कभी पेंशन से,कभी बिजनेस से 🙄सरकार आपके साथ है😉 रामराज युग में नोट व बैंक नहीं थे, रेल व हवाई अड्डे नहीं थे,  BSNL, LIC नहीं थी, विश्वविद्यालय और न्यायालय नही थे, तो फिर इन सबके साथ रामराज कैसे स्थापित होगा ?? 😍आज बैंक वाले भी हड़ताल पर किसी को छोड़ना नहीं है  कोई बचा हो तो,  सर्च करो और सड़क पर आने दो. चायवाला बैंक बेच रहा है  अब बैंक वाले चाय बेचेंगे । #BankStrike एक बार फिर से थाली और परात लेकर तैयार रहें पता नही कब आदेश आ जाए📯📯               प्रस्तुति: मुकेश कुमार मयंक ,                   मानव सेवा दल संस्थान    

बढ़ती बेरोजगारी क्या किसान आंदोलन को और बढ़ाएगी?

                       रोजगार का संकट:               किसानी  पर दबाव बेरोजगारी अब पढ़े-लिखे नौजवानों और मजदूरों की ही समस्या नहीं रही। बड़ी संख्या में किसान भी साल में कम से कम छह महीने हाथ पर हाथ धरे बैठने के लिए मजबूर हैं। विशेषकर पहले लाकडाउन के बाद शहरों से हुए मजदूरों के पलायन ने हालात और बिगाड़ दिए। वे भी गाँवों में इसीलिए लौटे कि वहीं कुछ काम-धाम करके गुजारा कर लेंगे। पर किसानी की पहले से ही खस्ताहाल दशा ने उन्हें राहत से ज़्यादा मुसीबत दी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट बताती है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में 28.4 लाख रोजगार ख़त्म हो गए। शहरी क्षेत्रों में भी लगभग 5.6 लाख रोजगार खत्म  हुए। इसका भी असर ग्रामीण क्षेत्र के रोजगार पर पड़ा। किन्तु सरकारें कोरोड़ों बेरोजगार लोगों को सपने दिखाकर इससे निपटना चाहती हैं। अखबारों और टीवी चैनलों पर गरीब लोगों के मुस्कराते चेहरे दिखाने से रोजगार की स्थिति नहीं बेहतर हो जाती। कई-कई साल बाद होनी वाली नियुक्तियों का इस तरह प्रचार किया जाता है कि लोगों को लगे अब सारी बेरोजगारी दूर हो गई है। लेकिन खेती पर कम्पन

बेरोजगार किसान आंदोलन से क्यों जुड़ रहे हैं?

बेरोजगारी और किसान आंदोलन                       ख़त्म होते रोजगार के अवसर और            किसान आंदोलन की उम्मीदें आजादी के बाद डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों और असली आज़ादी के लिए शहीद भगत सिंह जैसे नौजवानों की कुर्बानियों के चलते जो कुछ रोटी-रोजगार के साधन हमें हासिल भी हुए थे, आज एक-एक कर छीन लिए जा रहे हैं। देशी-विदेशी कम्पनियों के मुनाफों की चिंता करने वाली सरकारें निजीकरण के नाम पर न केवल पहले से हासिल नौकरियां और रोजगार खत्म कर रही हैं जिससे आरक्षित वर्गों के आरक्षण अपने आप खत्म हो रहे हैं, बल्कि व्यापक जनता की आजीविका के साधन खेती योग्य जमीनों, पहले से स्थापित सार्वजनिक उद्यमों, सरकारी संस्थानों को भी खत्म कर पूँजीपतियों और विदेशी कंपनियों के हवाले कर रही हैं। बैंक, बीमा, परिवहन, रेलवे, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय सहित तमाम सार्वजनिक उपक्रम पूरी बेशर्मी के साथ प्राइवेट हाथों में सौंपने का ही नतीजा है कि शिक्षित-अशिक्षित सभी प्रकार के नौजवान-मजदूर-किसान बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।             बेरोजगारी आज समाज के सभी मेहनतकश वर्गों की एक मुख्य और विकराल समस्या है। पढ़े-लिखे लोगों