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क्या 'सरकार' का लोकतंत्र पर भरोसा है?

                       एक आपबीती!... यह कुछ समय पहले की घटना है! लेकिन कहीं न कहीं की यह क्या रोज़-रोज़ की घटना नहीं है?...ऐसा क्यों है? क्या 'सरकार' का लोकतंत्र पर भरोसा है? 'जब से डबल इंजन की सरकार देश और प्रदेश में आया है तब से मेरे ऊपर लगातार फर्जी मुकदमों का अंबार लगाया जा रहा है। आज 5:10 पर रावटसगंज चौकी से फोन आया कि आप तत्काल चौकी पर चले आओ कुछ बात करना है! मैंने जाने से इनकार किया! 2 घंटे बाद शाम 7:00 बजे मैं घर पर नहीं था तभी रावटसगंज कोतवाली के कोतवाल साहब अपने लाव लश्कर के साथ मेरे घर पर पहुंच गया! उस समय मैं घर पर नहीं था! मैं अपने इलाज के लिए गया था!  मेरे बच्चे और मेरे घर के दूसरे सदस्य मुहर्रम के त्यौहार के अवसर पर मोहल्ले में खिचड़ा का दावत था जहां मेरे घर के बच्चे गए हुए थे सिर्फ मेरे घर पर मेरी पत्नी नजमा खातून अकेले ही मौजूद थे लेकिन पुलिस वाले ने बिना आवाज दिए चुपचाप दरवाजा खोल कर घर में घुस गया मेरी पत्नी नजमा खातून बिस्तर पर सोई थी पुलिस वाले जब घर में पहुंचा पत्नी घबरा गई। पुलिस वाले से पूछने लगीं कि 'कोई महिला पुलिस आपके साथ नहीं है और आप बिना आवा

एक गाँव: अंधकार के देवताओं से संघर्ष की कहानी

                 लोकतंत्र के लिए तंत्र से लोक के                          एक संघर्ष की कथा                    सचमुच निराशा तो होती है!..जब शहीद भगत सिंह, महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया आदि की 'लोकतंत्र' की विचारधाराओं को धता बताते हुए एक ऐसी 'विचारधारा' सत्ता पर काबिज़ हो जाए जो न केवल इन सबकी विरोधी हो बल्कि जिसका लोकतंत्र पर ही भरोसा न हो! मानव-सभ्यता के विकास के तमाम सारे मानदंडों को जो न केवल अस्वीकार करती हो बल्कि जिसका आदर्श 'दासयुग' हो! जो राजा-प्रजा व्यवस्था को विद्यमान सभी व्यवस्थाओं से बेहतर मानती हो और 'रामराज्य' के नाम पर ऐसी व्यवस्था को स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हो! वर्तमान सत्ताधारी दल की विचारधारा इसे 'हिन्दूराष्ट्र' के रूप में चिह्नित और प्रचारित करती है! क्या यह प्रतिक्रांति की कोई भूमिका है या क्रांतिकारी परिवर्तन की बाट जोह रहे संगठनों और लोगों की विचारधाराओं पर कुठाराघात है, उन पर एक सवाल है?  या फिर यह इस दुर्व्यवस्था के ताबूत की आखिरी कील सिद्ध होने जा रही प्रतिक्रियावादियों की अंतिम कोशिश और किसी आसन्न