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मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️

गोरखनाथ का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पद

     नाथ सम्प्रदाय                          https://youtu.be/8v9W0acjctQ गोरखनाथ की रचनाएं ' गोरखनाथ का पद- ' मनसा मेरी व्यौपार बांधौ...'                                 पद का तात्पर्य एवं                                           व्याख्या: यह कविता नाथ सम्प्रदाय के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवि गुरु गोरखनाथ के प्रसिद्ध पदों में से एक है। इस पद को डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल द्वारा 'पद ' शीर्षक रचना में स्थान दिया गया है। कविता में  गुरु गोरखनाथ ने अपनी साधना-पद्धति का पक्ष-पोषण करते हुए मन की इच्छाओं को साधनारत होने के लिए कहा है। इसमें वे अपने मन को ही संबोधित करते हुए उसे योग साधना में लीन होने तथा  प्रकारांतर से समस्त मनुष्यों को  सांसारिक मायाजाल से दूर रहने का उपदेश देते हैं।               इस कविता में कई पारिभाषिक शब्द हैं। पवन, पुरिष- पुरुष, इला-इड़ा, प्यंगुला-पिङ्गला, सुषमन-सुषुम्ना, कंवल, हंस, पनिहारी, रवि, गङ्गा, सस-शशि, चंद-चन्द्रमा, सुर-सूर्य, गगन आदि शब्द नाथ और योगियों के सम्प्रदाय में अपने प्रचलित अर्थों से अलग एक विशिष्ट पारिभाषिक अर्थ प्रकट करते हैं। पवन