अरे चुन रे धागा, बुन
रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!..
कान लगा ले पूरब-पच्छिम
पूरब-पच्छिम रे उत्तर-दक्खिन
चारों तरफ तो शोर ही शोर रे
तू ध्यान लगा के सुन!
चुन रे धागा, बुन
रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!..
वे गीधे जो पच्छिम में थे
उत्तर में थे दक्खिन में थे
तेरे पुरब में मड़राएं रे
निगलें सूरज दें अवगुन!
चुन रे धागा, बुन
रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!..
कहत कबीर तू सुन रे संता
मत बन रे अंखियन का अंधा
अंधियारे में आग लगा दे
रे छेड़ दे भोर की धुन!
चुन रे धागा, बुन
रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!..
★★★★★★
Sahi baat
ReplyDeleteधन्यवाद!..
Deleteअति सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया!👍👍
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