शुभ दीपावली, सच की दीपावली!
जैसा लिखो, वैसा दिखो!
है अगर दिखता कहीं कुछ भी अंधेरा
टिमटिमाते दीप सा रौशन दिखो।
एक सूरज ही नहीं देता उजाला
रात में सूरज नहीं कुछ करने वाला
डूबता है धुप अंधेरे में जहाँ जब
एक टिमटिम दीप ही देता उजाला।
दौर फुलझड़ियों का ही है ये अगर
लाखों दिल डूबे अंधेरे में मगर
सदियां गुज़री रोशनी आई नहीं
अब भी है ग़मगीन जीवन का सफ़र।
रोशनी के भी लुटेरे होते क्या
शोषकों के ही सवेरे होते क्या
है अगर ऐसा नहीं तो सच कहो
हैं अंधेरे रोशनी को ढोते क्या?
सच की भी दीपावली होगी जरूर
मत अंधेरे झूठ पर करना गुरूर
फुलझड़ी की रोशनी में भी दीप तो
खुशियों की उम्मीद सा दिखता हुज़ूर!
अब लिखो या तब लिखो
देर हो अंधेर हो जब लिखो
दीप खुशियों का सच्चा तो जले
सपने सच करते हुए तो दिखो!
टिमटिमाते दीप सा रौशन दिखो।
एक सूरज ही नहीं देता उजाला
रात में सूरज नहीं कुछ करने वाला
डूबता है धुप अंधेरे में जहाँ जब
एक टिमटिम दीप ही देता उजाला।
दौर फुलझड़ियों का ही है ये अगर
लाखों दिल डूबे अंधेरे में मगर
सदियां गुज़री रोशनी आई नहीं
अब भी है ग़मगीन जीवन का सफ़र।
रोशनी के भी लुटेरे होते क्या
शोषकों के ही सवेरे होते क्या
है अगर ऐसा नहीं तो सच कहो
हैं अंधेरे रोशनी को ढोते क्या?
सच की भी दीपावली होगी जरूर
मत अंधेरे झूठ पर करना गुरूर
फुलझड़ी की रोशनी में भी दीप तो
खुशियों की उम्मीद सा दिखता हुज़ूर!
अब लिखो या तब लिखो
देर हो अंधेर हो जब लिखो
दीप खुशियों का सच्चा तो जले
सपने सच करते हुए तो दिखो!
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