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Showing posts from March, 2018

JFME Call

        Joint Forum For Movements On Education                                                  (J F M E)       An Appeal on Onslaught of Public--funded                                 Education System READ, THINK and SUPPORT!   पढ़िए, समझिए, साथ दीजिये:

AMUTA:

             Aligarh Muslim University          Teachers Association (AMUTA)     Expresses Anguish over 'Autonomy' AMUTA passed  unanimous resolution on announcement of  granting so-called  'autonomy' to Aligarh Muslim University:        Not only AMU teachers, but teaching community all over India in general have expressed its dismay and resentment on the announcement of 'Autonomy' to 62 famous institutions of higher education. The announcement has been viewed as an step towards privatization of public-funded higher Institutions. ◆◆

शहादत के जख़्म

                      शहीद दिवस और उसके बाद.... आज 25 मार्च है!... हो सकता है शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहादत-दिवस हम 23 मार्च की जगह 24 मार्च को मनाये होते!... हो सकता है 1931 में कांग्रेस का वह अधिवेशन कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया होता!... हो सकता है इन शहीदों को भी 'कालापानी' की सजा हो जाती और वे 1947 के बाद भी सक्रिय होते!... हो सकता है जमीन के 'राष्ट्रीयकरण' ताकि उस पर सोवियत संघ की तरह सामूहिक-खेती हो सके...और कारखानों का राष्ट्रीयकरण ताकि मज़दूरों को कम से कम नियमित और निश्चित मज़दूरी मिल सके-सभी मज़दूरों को पेंशन,बोनस,फंड मिल सके...आदि शहीदों की देश की जनता के लिए की जाने वाली ये साधारण सी मांगें 1947 के बाद पूरी हो गई होतीं!... हो सकता है उनके सपनों का भारत भले न बन पाता, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईशाई-ब्राह्मण-दलित-सवर्ण-पिछड़े का भेद न कर सरकारें सबकी आजीविका-रोजगार...आवास...कपडे-लत्ते की सामान्य सी व्यवस्था कर दी होतीं!... हो सकता है जाति या धर्म के आधार पर भेद और उत्पीड़न को समाज में अपराध की तरह प्रचार-प्रसार करने के लिए सरकारों ने हर संभव प्रयास

AIFUCTO: Decision for Joint Protest

AIFUCTO (All India Federation of University & College Teachers' Organizations): Press Release       विश्विद्यालयों की 'स्वायत्तता' देश की जनता के साथ धोखा नई दिल्ली, 24 मार्च, 2018.  अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संगठन  (एआईफुक्टो )ने केन्द्रीय मानव संसाधन विभाग के दबाव में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा हाल ही में 62 संस्थानों को स्वायत्तता देने की कटु आलोचना करते हुए कहा है कि यह फैसला देश के साथ एक बड़ा धोखा है।इन विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को स्वायत्तता देना न केवल संवैधानिक एवं वित्तीय जिम्मेदारी से पीछे हटना है बल्कि चोर दरवाजे से देश के जानेमाने संस्थानों का निजीकरण कर काॅरपोरेट के हाथों सौंपने का जनविरोधी फैसला है।स्वायत्तता के नाम पर उन संस्थानों को बाजार के हवाले करने ,उनके प्रजातांत्रिक प्रतिरोध को कुचलने और शिक्षा को मॅहगा बनाकर आम आदमी की पहुँच से बाहर करने का खुला ऐलान है।डब्ल्यू टीओ और वर्ल्ड बैंक के ईशारे पर नीति आयोग और हेफा(HEFA) के रास्ते सार्वजनिक शिक्षा को सदा के लिए खत्म करने की यह एक बहुत बड़ी  सुनियोजित सरकारी

Academics for Action & Development (AAD)

  Press Release:                      Oppose Policy for Privatisation               of Existing Public-funded Institutions                   The announcement by the Minister of HRD granting of autonomy to 62 universities and colleges, which includes five central universities also, represents the government's unilateral policy for privatisation of existing public-funded institutions. AAD strongly opposes the announcement made by the Minister, which will deprive the SC, ST, OBC and poor students from these universities and colleges and contractualisation of the teachers therein. In the garb of this autonomy and freedom to open new departments/courses in self-financing mode, the present courses run by the  universities and the colleges are going to be decimated. The freedom is infact a trap for self-destruction. The UGC regulations under which this autonomy has been granted, provides: 1. All universities and colleges are to be graded in categories I/II/III. 2. The instit

यह Tन्त्र-Mन्त्र ...

                                 इस  तंत्र-मंत्र  से                                  बचिए, बचाइये!                         हम महान हैं! हमारा धर्म महान है!  हमारी संस्कृति महान है! ...  हमारी पूजा करो!            - किसकी आवाज है यह? सुनने की कोशिश कीजिए!...कौन है यह आदमी  या आदमियों का समूह जो डंके की चोट पर स्वयं को महान मान भी रहा है, उसका प्रचार भी कर रहा है? और एक तरह से धमकी भी दे रहा है! क्या चाहता है यह? क्यों कर रहा है यह सब? जरूरत क्या आ पड़ी इसे खुद को महान घोषित-प्रचारित करने की?...               ज़्यादा उत्तर नहीं हैं! जो हैं एक जैसे हैं! हम आप प्रायः सुनते  रहते हैं।...यह अपने स्वाभिमान की रक्षा है, यह खोए हुए आत्म-गौरव का उद्घोष है, यह अपनों में आत्म-विश्वास पैदा करने-उन्हें जगाने-उन्हें अन्याय के विरुद्ध खड़े होने के आह्वान का एक प्रयास है।...और ये सब उसी तरह है जैसा हम कहते हैं! हमारे राजा-महाराजा महान...उनके करतब महान!.. हम उनके अनुयायी, हम भी महान!... ये ही तो हैं न महानता के महान प्रश्नों के उत्तर?...             अब थोड़ा जमीन पर आइए! देखिए, कम से कम देखने की

अवतार सिंह पाश: 23 मार्च का एक और शहीद!

                 उन्हें मारा नहीं जा सकता!...                                अवतार सिंह पाश                   ( 9 सितम्बर, 1950 - 23 मार्च, 1988) 23 मार्च के एक और शहीद हैं पंजाबी क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश!...जिन शक्तियों ने आज ही के दिन 1988 में उनके शरीर को उनके क्रांतिकारी विचारों के चलते गोलियों से छलनी कर दिया, वे उस मरणासन्न साम्राज्यवादी व्यवस्था के ही पोषक थे जिन्हें इतिहास में इतिकथा बनना ही है! पाश जैसे लोग कभी नहीं मरते!   शहीद भगत सिंह   की ही तरह!!...          सबसे ख़तरनाक होता है         हमारे सपनों का मर जाना! श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है किसी जुगनू की लौ में पढ़ने लग जाना – बुरा तो है भींचकर जबड़े बस वक्‍त काट लेना – बुरा तो है सबसे ख़तरनाक नहीं होता सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना न होना तड़प का,

इंक़लाब ज़िंदाबाद!

शहीद भगत सिंह: आज और क्यों याद आते हैं?

28 सितम्बर: शहीद भगतसिंह जन्मदिन                     और ज़्यादा याद आते हैं             आज   शहीद भगतसिंह आज शहीदे-आज़म कहे जाने वाले उस भगतसिंह का जन्मदिन है जो मरे नहीं, 23 मार्च को फाँसी के फंदे पर झूलने के बाद और ज़िंदा हो गए!.. एक नया जन्म मिल गया उन्हें!... पुनर्जन्म नहीं, वह तो किसी का नहीं होता! 28 सितम्बर, 1907! और फिर 23 मार्च 1931.   आज कितने विद्यार्थी इतनी सी उम्र में शहीद भगत सिंह जितना कुछ पढ़-लिख जाते हैं?... और पढ़ाई भी नौकरी पाने वाली नहीं, देश- एक नया देश, एक नई दुनिया बनाने वाली पढ़ाई!          जी हाँ ,  अभी बार-बार यह दिन याद आएगा, बहुत याद आएगा! देश में, दुनिया में आम जनता के जीवन पर जितना अधिक संकट बढ़ेगा, बढ़ाया जाएगा- उतनी ही तल्ख़ी के साथ यह दिन याद आएगा! शहीद भगत सिंह याद आएंगे, उनके सपने याद आएंगे!... शोषणविहीन दुनिया का सपना, अत्याचार से मुक्त दुनिया का सपना!...धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र से दूर सच्ची मानवतावादी दुनिया का सपना!               और साथ ही याद आएंगे शहीद भगत सिंह के आदर्श ब्लादीमिर इलिच लेनिन!.... याद आएगी उनकी क्रांतिकारी विरासत!             

केदारनाथ सिंह

                                        बुनाई का गीत                                                - केदारनाथ सिंह उठो सोये हुए धागों उठो उठो कि दर्जी की मशीन चलने लगी है उठो कि धोबी पहुँच गया घाट पर उठो कि नंगधड़ंग बच्चे जा रहे हैं स्कूल उठो मेरी सुबह के धागो और मेरी शाम के धागों उठो उठो कि ताना कहीं फँस रहा है उठो कि भरनी में पड़ गई गाँठ उठो कि नाव के पाल में कुछ सूत कम पड़ रहे हैं उठो झाड़न में मोजो में टाट में दरियों में दबे हुए धागो उठो उठो कि कहीं कुछ गलत हो गया है उठो कि इस दुनिया का सारा कपड़ा फिर से बुनना होगा उठो मेरे टूटे हुए धागो और मेरे उलझे हुए धागो उठो उठो  कि बुनने का समय हो रहा है... ★★★

संकीर्णताओं का चुनाव

                             संकीर्णताओं का चुनाव            हाल ही में हमारे देश में कुछ राज्यों की विधानसभाओं और कुछ संसद सदस्यों की खाली हुई सीटों के चुनाव संपन्न हुए। इन चुनावों की कुछ विशेषताओं को समझने की जरूरत है। इनमें भारतीय लोकतंत्र में जगह बनाते कुछ ऐसे तत्त्वों को समझना जरूरी है जो आगे चलकर ऐसी स्थाई प्रवृत्ति के रूप में स्थापित हो सकते हैं जो पूरी चुनाव प्रणाली को जनता का मखौल बनाने की कवायद न सिद्ध कर दें! वैसे भी चुनाव जीतने वाले दल और व्यक्ति जब जनता के जीवन में कोई बदलाव लाने की जगह अपने लिए सुविधाएं बढाने लगें तो स्वाभाविक तौर पर जनता में निराशा घेरती है। लेकिन अगर चुनावों के मुद्दों से लेकर चुनाव-प्रणाली तक पर चुनावों के बाद तीखे सवाल उठें तो समझना चाहिए कि कुछ विशेष गड़बड़ है।          मसलन, त्रिपुरा में चुनाव के बाद मार्क्सवाद की प्रतीक स्वरूप लेनिन की मूर्ति तोड़ा जाना है। प्रश्न उठता है कि इससे किसी को क्या हासिल हुआ?...क्या यह इस बात का संकेत है कि आगे चुनाव में जो समूह जीते दूसरे समूह की विचारधारा या महत्त्व की प्रतीक मूर्तियों को तोड़ डाले?.... तालिबानों, तथाक

Stephen Hawking: The man of a different human strength

श्रद्धांजलि:                         स्टीफेन हॉकिंग: अनंत सम्भावनाओं का सितारा हाँ, स्टीफेन हॉकिंग!...“ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञान नही, ज्ञान का वहम है!” इसलिए कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं!...वह अनन्त संभावनाओं का अनंत कोष है। वह इस धरती में छिपा मानव सभ्यता और विकास की अनंत संभावनाओं का द्वार भी है! इसलिए स्वयं को 'पूर्ण' और ज्ञानी समझने वाला ही ज्ञान का असली शत्रु है, अज्ञानी है, उसे ही ऐसा वहम होता है, वही स्वयं को भगवान घोषित करता-करवाता है!...तुमने स्वयं अपने महान व्यक्तित्व से यह सिद्ध भी किया। एक मनुष्य का क्या, वह तो अपनी भूमिकाएं जैसी निभा पाएगा, निभाएगा- फिर अदृश्य हो जाएगा, समाप्त हो जाएगा। उसके बारे में न जाने कितनी कहानियां रची जाएंगी, कुछ सच्ची... कुछ झूठी, पर उसे आगे बढ़कर ज़िंदा वही रखेगा जो कहानियों में नहीं हकीक़त में उसे जिएगा!...तुम्हारे बारे में भी ऐसा ही होगा जैसा तुम्हारे उन पूर्वजों के बारे में हुआ, जिन्हें तुमने जिया-आगे बढ़ाया। इसलिए तुम्हारे जैसे लोगों के बारे में 'अमरता' जैसे शब्द रचे गए हैं- एक शरीर या जीवन के लिए नहीं जिन्हें तुमने बड़ी

तंत्रलोक की माया...

                                    तन्त्रलोक की माया... इस दुनिया से शिकायतें बहुत हैं!...इस दुनिया की शिकायतें बहुत हैं!.... -क्यों न हों? शिकायतों के बिना कभी बढ़ी है दुनिया क्या? कौन राजा चाहता था कि उससे उसका मुकुट छिने? लेकिन लोकतंत्र आया न!...दुनिया बदली न! -कितना बदली दुनिया?...कहाँ बदली दुनिया? जहां देखो, सब उल्टा-पुल्टा! बिना घूस के, बिना जी-हुजूरी के कोई काम नहीं होता! राजाओं के नाम बदल गए...चेहरे बदल गए पर राजा नहीं बदले! अब तो हर कोई राजा ही बनना चाहता है. करना-धरना कुछ न पड़े, लेकिन चांदी कटती रहे! पहले पुश्त-दर-पुश्त राजा होते थे, एक-दो परिवार राज करते थे, अब हर कोई यही चाहता है. बात तो फिर वहीँ की वहीँ रही!... -नहीं, ऐसा नहीं है! बात वहीँ की वहीँ नहीं है. अब राजतंत्र नहीं, लोकतंत्र है. जनता ही अपना राजा चुनती है.. .-वही तो! ‘राजा’ ही चुनती है, खुद राजा थोड़े होती है! खुद तो कीड़े-मकोड़ों की तरह ज़िन्दगी जीती है. एक दिन इच्छा हुई तो वोट दे आए बस, लो हो गया लोकतंत्र!...खेत-बाड़ी, रोज़गार-धंधे सब चौपट! कोई किसी की सुनता नहीं. अधिकारी सीधे मुंह बात नहीं करते , नेताओं के

प्रेम निषिद्ध है यहॉं!..

                                                     इन्हें  बचाओ!...                                   ~ अशोक प्रकाश          ये दोनों  सच्ची घटनाएं हैं!...आपके आसपास भी घटती होंगी। किन्तु ये आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं। ये उस समाज की सच्चाइयाँ हैं जिसके रचयिता भी हम हैं, भोक्ता भी हम हैं। ऐसी व्यवस्था बनाने या बनाए रखने में हमारा भी योगदान है!...              पहली घटना एक लड़की की है! इस लड़की की उम्र होगी 18-20 साल। कुुुछ दिन पहले खबर थी कि इसका अपहरण हो गया है। माँ-बाप के साथ सब चिंतित थे। नाते-रिस्तेेेदार, अड़ोसी-पड़ोसी, दोस्त-यार!...क्या हुआ?  अभी भी कोई ज़्यादा नहीं जानता! पहले पता चला कि इस शहर से बाहर एक उत्तरी शहर में उसकी लोकेशन मिल रही. उधर कोई इसके रिश्तेदार रहते हैं. लोग गए तो पता लगा कि वह इधर तो नहीं आई. वहां भी और लोगों से जानकारी की कोशिश की गई. थक-हारकर माँ-बाप-पुलिस सब वापस आ गए. दोस्तों-सहेलियों सब पर शक-संदेह का कोई फायदा नहीं हुआ. एक हफ़्ते बाद  अकस्मात थाने से उसकी खबर आई!... क्या?...आपकी सारी कल्पनाएँ-आशंकाएं सही हो सकती हैं. अगर ये कहानी होती तो उनमें से कोई भी घट

बेरोजगारी और निजीकरण की भयावहता

   शिक्षित-बेरोजगार महिलाओं की दुर्दशा:                              सामाजिक सुरक्षा या समूह में भी असुरक्षा?                                                                          -अशोक प्रकाश             'सामाजिक सुरक्षा' के सरकारी-गैर सरकारी बहुत से दावे किये जाते हैं। इन्हीं दावों में से एक दावा 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का भी है। अगर आप उत्तर प्रदेश की सीएम हेल्पलाइन-1076 पर जाइए तो पाइएगा कि आपकी हेल्प यानी मदद के लिए वहां बहुत कुछ है। लोग उम्मीद भी लगाते हैं और निश्चित ही लोगों को कुछ न कुछ मदद भी मिलती ही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह मदद वास्तव में कौन करता है और क्यों करता है?...सामान्यतः यही समझ में आता है कि यह सरकार द्वारा स्थापित एक व्यवस्था है। पर यह अर्द्धसत्य है!             सीएम हेल्पलाइन-1076 दरअसल स्योरविन नामक एक निजी एजेंसी है जिसके माध्यम से सरकारी योजनाओं की जानकारी और मदद का भरोसा दिलाया जाता है। इस एजेंसी या प्राइवेट कम्पनी ने अपने निजी कर्मचारी रखे हैं। इन्हीं में से कुछ लड़कियां भी काम करने के लिए रखी गई हैं जिन्हें 'कॉल टेकर्स

Religion VS Science:

It's a typical Indian Class with its New Teacher appointed by New Regime!...Religion has been very important to this regime from its beginning, hence all appointments supposed to be on the guidelines of Religion...of course religion of its choice ...But Students of this class proved smarter!!...                                       नया टीचर                                                                                  प्रस्तुति: ए. के.                                     (WhatsApp ) क्लास में आते ही  नये टीचर ने  बच्चों को  अपना लंबा चौड़ा परिचय दिया  बातों ही बातों में  उसने जान लिया कि  लड़कियों के इस क्लास में  सबसे तेज और सबसे आगे  कौन सी लड़की है ? उसने खामोश सी बैठी  उस लड़की से पूछा- 'बेटा आपका नाम क्या है ?' लड़की खड़ी हुई और बोली-  'जी सर , मेरा नाम है जूही!' टीचर ने फिर पूछा- 'पूरा नाम बताओ बेटा ?' -जैसे उस लड़की ने  नाम मे कुछ छुपा रखा हो...  लड़की ने फिर कहा- 'जी सर , मेरा पूरा नाम जूही ही है...'  टीचर ने सवाल बदल दिय

For An Exploitation Free World!

                    On International Women's Day                                    LONG LIVE WOMEN'S  STRUGGLE FOR                        EXPLOITATION-FREE WORLD!      

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च)

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च ):               उन्होंने  बदली है यह दुनिया                    वे इसे और बदलेगी!..                                                  - ममता                                                             वह ऐतिहासिक दिन था! लेकिन हर दिन की तरह एक दिन में नहीं आया था. इस दिन के लिए न जाने कितने दिन संघर्ष हुआ था. एक समय जिस स्त्री को खरीदने-बेचने की वस्तु उसी तरह समझा जाता था जैसे गुलामों को , जानवरों को...जिसके स्त्रीत्व  का  खरीदारों के लिए कोई  मायने नहीं था, जिसकी आहें, आंसू और असह्य पीड़ा मालिकों के लिए सिर्फ़ उपहास की वस्तु थी, उस स्त्री ने आज के दिन मनुष्य के रूप में जीने का अधिकार हासिल किया था. इसलिए रोज के दिनों की तरह निकलने वाला आज का सूरज कुछ ज़्यादा ही सुन्दर, कुछ ज़्यादा ही लाल था. यद्यपि अनेक संघर्षों के परिणाम-स्वरुप 19वीं सदी के अंत तक न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलियाई उपनिवेशों के कुछ देशों में महिलाओं को मताधिकार मिल गया था, पर पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए इसके कोई मायने नहीं थे. और संघर्ष हुए तो 1939 तक दुनिया के 28 देशों में महिलाओं

Against Victimisation of Teachers!...

                              निरंकुशता के खिलाफ़                             शिक्षकों का विशाल धरना                      डॉ भीमराव आंबेडकर आगरा विश्वविद्यालय में गत छह मार्च को एक विशाल धरने का आयोजन किया गया। यह धरना मुख्यतः बीरी सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा डॉ ज्वाला सिंह और अन्य दो महिला साथियों के साथ किये गए अन्याय और दुर्व्यवहार तथा अन्य मांगों को लेकर दिया गया। धरने में उपकुलपति के अविवेकपूर्ण और तानाशाही रवैये के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया गया। धरने के बाद महामंत्री डॉ निशांत चौहान द्वारा निम्न निर्णय की जानकारी दी गई-   1. डॉ ज्वाला सिंह के निलंबन की ससम्मान वापसी के लिए कुलपति को केवल एक सप्ताह का समय दिया गया है। 2. कुलपति द्वारा औटा प्रतिनिधियों से अभद्रता, कुलपति की हठधर्मिता, मनमानी तरीके से नियमो की अनदेखी करते हुए कार्य करने के विरोध में *जोरदार* तरीके से *पोल खोल* अभियान चलाया जायेगा। 3. प्रतिदिन राज्यपाल महोदय, मुख्यमंत्री महोदय, आदि को समाचार पत्रों की कटिंग एवं शिकायती पत्र भेजा जायेगा। 4. एक सप्ताह बाद केंद्रीय संघर्ष समिति भविष्य की रणनीति तय

इनकी नहीं है होली!...

           बेरोजगारों का धरना और सरकारी कान में रुई                                                        - नितिन  ठाकुर              यूपी- बिहार के निचले और मध्यमवर्ग के लिए एसएससी क्या मायने रखता है बताने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन शायद साइरन वाली सरकारी कारों में बैठनेवाले मंत्री और नौकरशाह बहरे हो चुके हैं. चार दिन से दिल्ली में धरने पर बैठे सैकड़ों परीक्षार्थी होली के दिन भी देश की भारी बहुमत वाली सरकार से गुहार लगाते रहे पर गृहमंत्री होली पर ढोल बजाने में मस्त दिखे और बाकी मंत्री फाग गा रहे थे. अद्भुत नज़ारा है लोकतंत्र का. जनता सड़कों पर अपने भविष्य को बचाने के लिए त्यौहार पर भी प्रदर्शन करे और मंत्री अपने सुरक्षित सरकारी बंगलों में रंग उड़ाएं. एसएससी का पर्चा सोशल मीडिया पर तैर रहा था. दुनिया उसे देख रही थी मगर अफसर बाबू सबूत पूछ रहे हैं. इस देश में पर्चा लीक होना भला कितनी हैरत की बात रह गई है बाबू जी?? अपने कोटर से बाहर आइए और मेरे ही साथ चलिए. आपको लाखों ऐसे लोगों से मिलवा दें जो हर परीक्षा का पर्चा लीक करने का दावा करते हैं और हर साल खूब रकम बनाते हैं. इस धंधे में सालों

कौन हैं नंद के बाप, जसोदा के नाना?

      माई  रे लोटा में रंग लिहे       मैं जात रह्यौं नगरी बरसाना                                   संग रहीं दुइ चारि अली                             वृषभानु लली रहीं गावति गाना।                               हाथ मरोरि के छोरि के रंग                               भिगोइ दिहे चुनरी मनमाना                                     ऊपर से मुस्कात रहे                              वै नंद कै बाप जसोदा कै नाना।।                                                       -अष्टभुजा शुक्ल