Skip to main content

यह Tन्त्र-Mन्त्र ...


                                 इस तंत्र-मंत्र से 
                                बचिए, बचाइये!
      
                हम महान हैं! हमारा धर्म महान है! 
हमारी संस्कृति महान है!...  हमारी पूजा करो!
           - किसकी आवाज है यह? सुनने की कोशिश कीजिए!...कौन है यह आदमी  या आदमियों का समूह जो डंके की चोट पर स्वयं को महान मान भी रहा है, उसका प्रचार भी कर रहा है? और एक तरह से धमकी भी दे रहा है! क्या चाहता है यह? क्यों कर रहा है यह सब? जरूरत क्या आ पड़ी इसे खुद को महान घोषित-प्रचारित करने की?...
             ज़्यादा उत्तर नहीं हैं! जो हैं एक जैसे हैं! हम आप प्रायः सुनते  रहते हैं।...यह अपने स्वाभिमान की रक्षा है, यह खोए हुए आत्म-गौरव का उद्घोष है, यह अपनों में आत्म-विश्वास पैदा करने-उन्हें जगाने-उन्हें अन्याय के विरुद्ध खड़े होने के आह्वान का एक प्रयास है।...और ये सब उसी तरह है जैसा हम कहते हैं! हमारे राजा-महाराजा महान...उनके करतब महान!.. हम उनके अनुयायी, हम भी महान!... ये ही तो हैं न महानता के महान प्रश्नों के उत्तर?...
           अब थोड़ा जमीन पर आइए! देखिए, कम से कम देखने की कोशिश कीजिए। कोई कुछ और कह रहा है तो उसे भी सुनिए। जानने की भी कोशिश कीजिए। तर्क-वितर्क से क्यों घबड़ाते हैं? आपकी संस्कृति के संवाद क्या इतने संकुचित और तर्कहीन हैं!...और क्या यही संस्कृति है?...
           कुछ दिन पहले अलीगढ़ के एक गाँव के एक खेत में एक पांच साल के बच्चे की लाश मिली! क्षत-विक्षत! सर धड़ से अलग! वीभत्स दृश्य! इतना कि न देखने की हिम्मत हो, न सुनने की!...पर भाग के जाएंगे कहाँ?...
           लड़के के ताऊ की ज़िंदगी में बहुत कष्ट हैं। कष्टों से निज़ात पाने का कोई ऐसा उपाय नहीं जिसे उन्होंने न आज़माया हो। मन्दिर-दरगाहों में विनतियों-मिन्नतों का कोई फ़ायदा नहीं हुआ। एक तांत्रिकनुमा शख्स काफी समय से इसे ताड़ रहा था।...वह न पढ़ा-लिखा है न अक्षर-ज्ञान के अलावा और कुछ पढ़ने-लिखने सोचने-बोलने में उसका विश्वास है! ताऊ भी लगभग ऐसा ही है!...और ताऊ ही क्या, समाज का अधिसंख्यक हिस्सा ऐसा ही नहीं सोचता क्या?...
            तांत्रिक और ताऊ को इलहाम होता है होता है कि कोई बलि दे दी जाय तो दुर्दिन दूर हो जाएंगे!...बकरे की, नहीं! केवल इंसान की!...बच्चे की, बच्चे पवित्र होते हैं!...
            ताऊ का भतीजा बलि चढ़ा दिया गया!...
            आगे क्या?...उनके जेल जाने से क्या होगा!... तन्त्र-मन्त्र-सिद्धि और उन पर विश्वास क्या नहीं कर-करा सकता?... चारों तरफ इन्हीं का गुणगान!...विश्वास को पुख़्ता क्यों नहीं करेगा? बलि क्या एक ही तरह की होती है। पूरा समाज तो बलि चढ़ रहा है!..खुद को चढ़ा रहा है, खुश हो रहा है!
              हो सके तो बचिए-बचाइए!...यह केवल कुछ लोगों का अन्धविश्वास नहीं है। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। उन्हें और पुख़्ता और गहरा किया जा रहा है!...उफ़्फ़!! ●●● 

Comments

  1. अंधविश्वास के रूप में तंत्र-मन्त्र समाज के लिए जहर है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

मुर्गों ने जब बाँग देना छोड़ दिया..

                मत बनिए मुर्गा-मुर्गी! एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया।.. एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।"  मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !" सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है।  मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं वध कर दूँगा।  अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया।  मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए। अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया।  मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था। मालिक ने कहा कि कल...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...