बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत: पुण्यतिथि पर एक श्रद्धांजलि ⭕ हरे रंग की टोपी पहने हर किसान में जिंदा हैं टिकैत ⭕ संयुक्त किसान मोर्चा के मंचों पर लगे बैनरों पर आन्दोलन के प्रेरणा स्रोतों में एक चेहरा ऐसा रहता है जो देहत्याग के बाद भी आज जिन्दा है। वह चेहरा है बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत। इन महापंचायतों में हजारों की संख्या में जुटे किसानों में हरे रंग की टोपी पहने हर किसान में जिंदा हैं टिकैत! आज वे अपने हर संघर्ष के साथी में प्रतिबिम्बित हो गए।सत्तर - अस्सी साल के उनके किसी भी किसान साथी से मिलिए, बात करिए, आपको बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत के दर्शन हो जाएंगे। आज ही के दिन यानी 15 मई 2011 को किसानों का मसीहा उन्हें छोड़ कर चला गया। लेकिन आज इस आन्दोलन में महेन्द्र सिंह टिकैत वापस लौट आए, उन हजारों चेहरों में, जो उनके सखा हैं, अनुयायी हैं, उनके अपने सगे हैं। जनवरी 1987 में बिजली समस्याओं को लेकर करमूखेड़ी पावर हाउस के घेराव से किसान आन्दोलन में कदम रखा। वैसे तो आठ साल की छोटी सी उम्र में ही बाल्यान खाप के मुखिया की बड़ी जिम्मेदार उनके कंधों पर
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.