Skip to main content

Posts

Showing posts with the label शिक्षा व्यवस्था

शिक्षक क्यों उठाते रहे हैं नेताओं और संगठनों पर सवाल?..

क्या नेता दोषी हैं?                                 सचमुच शिक्षक हैं तो    सवाल उठाएंगे, सीखेंगे, सिखाएँगे! वैसे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम जनता के पास उसके संगठन और आंदोलन ही दुर्व्यवस्थाओं से लड़ने के मुख्य अस्त्र माने जाते हैं, किन्तु यदि कुछ निहित स्वार्थों के चलते संगठनों के नेता जनता का विश्वास खोने लगें तो वह क्या करे? आजकल यह सवाल नेताओं को छोड़कर अधिकतर जनता के दिमाग को मथने लगा है। आज  हालत यह है कि 'प्रचण्ड बहुमत' देकर भी जनता ने जिस भी दल को जिताया वह सबसे ज़्यादा जन-विरोधी निकला।  राजनीतिक दलों ने तो एक के बाद एक जनता का विश्वास खोया ही है, ट्रेड यूनियनों- कर्मचारियों और शिक्षकों के संगठनों के लिए  यह और भी चिंता का विषय है।  माना जाता है कि शिक्षक संगठन पढ़े-लिखे बुद्धजीवियों के संगठन हैं, बड़े संघर्षों के बाद  ये संगठन खड़े हुए हैं। लालच की ख़ातिर 24 घण्टे में चार दल बदलने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह इन संगठनों के नेता भी हो जाएंगे, ऐसी उम्मीद कोई नहीं करता! लेकिन आजकल संसदीय चुनावों के समय देखा जाता है कि  शिक्षक संगठन  के कुछ बड़े नेतागण भी पंचायत चुनाव में

क्या शिक्षा में सचमुच गरीबों के लिए कोई जगह है?

             प्राथमिक शिक्षा के प्रति                  उनका नकचढ़ापन!                                                  - अशोक प्रकाश              प्राथमिक शिक्षा का जो हाल किया जा रहा है वह बाहर से कुछ और, भीतर से कुछ और है! बाहर से तो दिख रहा है कि शासक-लोग गरीब जनता को अंग्रेजी पढ़ाकर उन्हें बड़ी-बड़ी कम्पनियों में नौकरी के लिए तैयार कर रहे हैं, पर हक़ीक़त में उनसे उनकी पढ़ाई-लिखाई की रही-सही संभावनाएं भी छीनी जा रही हैं। एक तरफ पूरी दुनिया की भाषाओं में हिंदी भाषा की रचनाओं के अनुवाद किए जा रहे हैं, गूगल से लेकर तमाम सर्च इंजन और वेबसाइटों द्वारा दुनिया की मातृभाषाओं के अनुसार अपने को ढालने और लोगों तक पहुंचने की कोशिशें की जा रही हैं, दूसरी तरफ हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही उनकी मातृभाषा छीनने की कोशिश हो रही है।...             इस क्रम में उत्तर प्रदेश के पिछले सालों में हिंदी माध्यम के प्राथमिक विद्यालयों को खत्म कर उन्हें अंग्रेजी माध्यम में रूपांतरित करने की कार्रवाई को देखा जा सकता है। सरकार ने कोई अतिरिक्त अंग्रेज़ी के विद्यालय नहीं खोले बल्कि थोड़ा बेहतर आधा