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Showing posts with the label कथा कहानी

कृषि कर्म से कृषि-कृष्ण हैं!..

  कृषि-कृष्ण कथा -1:                          अंधेरे से संघर्ष में                     उम्मीद का उजाले   लगभग पाँच हजार साल पहले की बात है!...शायद उससे भी पहले की! तब, सब जगह जंगल ही जंगल हुआ करता था! घना जंगल, वैसा ही जैसा अबूझमाड़!..या उससे भी घना, उससे भी ज़्यादा अबूझ! शायद अमेज़न के अभेद्य जंगलों की तरह..! या शायद उससे भी ज़्यादा अभेद्य! जंगल के बीच से नदियाँ बहते हुए निकलती थीं~ कल-कल निनादिनी नदियाँ!..भयावह नदियाँ!..तरह-तरह के विस्मयकारी प्राणियों वाली नदियाँ! पूरा जंगल संगीतमय होता था। पक्षी ही नहीं, तरह-तरह की वनस्पतियाँ, पेड़-पौधे, कीट-पतंगे तरह की ध्वनियां निकालते, सब कुछ मिलकर संगीत बन जाता! जीवन का संगीत! पक्षी, पशु इस प्राकृतिक अभयारण्य में निर्भय विचरण किया करते थे। चारागाह की कमी होने का सवाल ही नहीं था। पक्षियों, पशुओं और मनुष्यों के लिए जंगल न जाने कितने प्रकार के खाद्य, चूस्य, पेय रस प्रदान करता था। एक से बढ़कर एक स्वाद!   संसार के ...

बैंक से पैसा निकाल लो!..

महात्मा की  कहानियाँ :  दो:                      महात्मा नहीं परमात्मा!. .                     (कॉमा अपने आप लगा लीजिए) 【 पिछले अंश में  आपने महात्माजी का संक्षिप्त परिचय पाया था। आपने जाना था कि महात्माजी कोई साधारण आदमी नहीं हैं। उनके बारे में तरह-तरह की धारणाएँ हैं~ कि वे पहुँचे हुए आदमी हैं, धूर्त हैं, सीआईए के एजेंट हैं...आदि-आदि। लेकिन तब सब चौकन्ने हो गए जब महात्माजी ने कहा कि  "सावधान कर रहा हूँ, बैंक में रखा अपना सारा पैसा निकाल लो! बैंक में रखा पैसा अब सुरक्षित नहीं रह गया है!. ." अब आगे.. 】 ~~~          "क्यों?..क्यों महात्माजी? हम तो बैंक में पैसा सुरक्षित रखने के लिए ही डालते हैं और आप कह रहे हैं कि वहाँ पैसा रखना सुरक्षित नहीं रह गया है!"..                                                  ...