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बैंक बचाओ, देश बचाओ

              दिवालिया होने से पहले                     https://youtu.be/7t4BsE7d4wM                                                                  - अशोक प्रकाश इससे पहले कि 'भाइयों और बहनों!' से शुरू हो 'राष्ट्र के नाम' एक और संबोधन मैं खासकर राष्ट्रीकृत समस्त बैंकों, उनके कर्मचारियों और उनके ग्राहकों को कहीं छुपा देना चाहता हूँ ताकि दिवालिया घोषित होने से पहले 'राष्ट्रीय पूँजी' किसी बिटिया के विवाह और किसी बेटे के  परचून की दूकान खोलने में बाधा न बन सके! दिवालिया दुल्हन बनाकर जिसे विस्थापित किया जा रहा है लंदन, न्यूयॉर्क या स्विट्जरलैंड में  कालाधन कहकर जब तक कि उसे वापस लाने का वादा दोहराया जाए मैं खेतों में धान और गेहूँ की बालें देखना चाहता हूँ ताकि कब्ज़ा होने से पहले  खेत बता सकें दुबारा पैदा होने के कुछ गुर उन दानों को जो पसीने की गंध और मिट्टी की सुगंध से हजारों साल से उगते आए है!.. इससे पहले कि मैं न होऊँ तुम्हें बता देना चाहता हूँ उनका ठिकाना जो बीज उगाना जानते हैं हल-बैल चलाना जानते हैं ट्रैक्टर और रोबोट भी चला सकते हैं कारखाने और हथियार भी बना सकते

'नोटबन्दी' सा दुःस्वप्न फिर न देखना पड़े!

  ★ नोटबंदी कौ आल्हा ★                                          -- अशोक प्रकाश                               चित्र साभार: aajtak.in शीश नवाय के जनगनमन कौ धरिकै सब जनता कौ ध्यान, आल्हा गावहुँ उन बीरन कौं जोे लाइन महं तज दियौ प्रान।। आठ नवम्बर सन् सोलह कौ देस कौ पी एम गयौ पगलाय, भासन घातन ऐसो करि गयौ जनगनमन सब गयौ कुम्हलाय।। चारों तरफ तहलका मचि गयौ ऊ जापान महं रह्यौ मुस्काय, लाइन महं यां प्रान जाय रहे वा नीरो बाँसुरी बजाय।। इक-इक रुपिया मुश्किल ह्वै गयौ बड़ा नोट सब भयौ बेकार, खेती-बारी नष्ट ह्वै गई मज़दूरन घर हाहाकार।। काम-धाम सब छोड़ि-छाँड़ि के बैंकन चक्कर रह्यौ लगाय, उहां खेल सेठन कौ होइ रह्यौ भारी घात सह्यौ ना जाय।। अस्पताल का कहौं मुसीबत लोग मरैं बस भए बुखार, लगन सगाई शादी छोड़हुँ मरन काज ना मिलै उधार।। ऐसो राज न देखा कबहूँ ऐसो डाकौ सुन्यौ न भाय, अपनौ पैसो उनकौ होइ गयौ कम्पनियन रह्यौ मज़ा उड़ाय।। ●●●●