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विश्वास कैसे बन जाता है संस्कृति?...

                अपनी संस्कृति को जानिए,                        पहचानिए! पूरी दुनिया की सांस्कृतिक विरासतें उन विश्वासों की अभिव्यक्तियाँ हैं जिन पर एक समय में न केवल विश्वास नहीं किया गया, बल्कि उन्हें अंधविश्वास भी माना गया। जुनूनी कलाकारों ने अपनी भावनाओं-कल्पनाओं को ऐसे-ऐसे कलात्मक स्वरूपों में ढाल दिया कि वे विश्वास या अंधविश्वास जनता के अद्भुत प्रेरणास्रोत बन गए। मनुष्य की कल्पना और चिंतन के ऐसे अद्भुत उदाहरण अपने मूल में रहस्यमय हैं, इतने कि इनकी कोई सीमा नहीं बनाई जा सकती।  मानव-सभ्यता की इस अनथक और अद्भुत विकास-यात्रा में अनगिनत सांस्कृतिक प्रेरणास्रोत मिथकों, कथा-काव्यों, पूजा-पाठों, आदतों, वस्त्राभूषणों, चित्रों, नक्काशियों, इमारतों आदि में अभिव्यक्त हुए हैं। सामयिक जरूरतों और तर्कों के आधार पर इन्हें आसानी से खारिज़ किया जा सकता था और आज भी व्यर्थ सिद्ध किया जा सकता है, किंतु मानव-जीवन के सौंदर्य-दर्शन की ये अभिव्यक्तियाँ आज भी सक्रिय हैं और लोगों के जीवन में खुशियों का संचार करती हैं, उनके जीवन को अर्थवत्ता प्रदान करती हैं।  पिछले दिनों हमारे देश में, विशेषकर उत्तर भारत में