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Showing posts from May, 2021

कहीं आपमें कोई पालतू तो नहीं है?..

नौकर                          एक सामयिक बोध-कथा ● बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था... उसके पास एक बडी जालीदार टोकरी में बहुत सारे तीतर थे!.. लेकिन एक छोटी जालीदार टोकरी में सिर्फ एक ही तीतर था!.. एक ग्राहक ने पूछा-  "एक तीतर कितने का है?.." "40 रुपये का!.." ग्राहक ने छोटी टोकरी के तीतर की कीमत पूछी  तो वह बोला,  "मैं इसे बेचना ही नहीं चाहता!.."  "लेकिन आप इसे ही लेने की जिद करोगे,  तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी!.." ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा,  "इसकी कीमत इतनी ज़्यादा क्यों है?.." चिड़ीमार ने जवाब दिया- "दरअसल यह मेरा अपना पालतू तीतर है और  यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है!.. जब ये चीख पुकार कर दूसरे तीतरों को बुलाता है  और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे ही एक जगह जमा हो जाते हैं... तो मैं आसानी से सभी का शिकार कर लेता हूँ!   बाद में,  मैं इस तीतर को उसकी मनपसंद की 'खुराक" दे देता हूँ जिससे ये खुश हो जाता है!..   बस, इसीलिए इसकी कीमत भी ज्यादा है !.." उस समझदार आदमी ने तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की स

क्या शिक्षक अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?..

शिक्षक और शिक्षा की दुर्दशा                                     शिक्षक हौ सगरे जग कौ?..                तो लँगोटी पहिरि जग में विचरौ! सरकार, टीवी, समाचार पत्र, सोशल मीडिया यानी लगभग सभी संचार माध्यम कोरोना-बीमारी, महामारी और उसके स्ट्रेन-ब्लैक फंगस आदि अननुमन्य वैरियंटों से आक्रांत हैं। कब कितने लोग संक्रमित होकर मर जाएँगे या नहीं मरेंगे, स्वस्थ होकर लौट आएँगे या बिना जाँच के 'बिना बीमार' हुए ठीक रहेंगे, इसका कोई निश्चित आँकड़ा और अनुमान नहीं है। जो है, उस पर भी न जाने कितने सवाल! हर दवा, हर उपचार, हर संक्रमण और संक्रमण से मृत्यु यहाँ तक कि मरे हुए लोगों के आंकड़ों पर भी सवाल हैं।--- हम सबके दिलों-दिमाग में हाय-कोरोना, हाय-कोरोना चल रहा है।  कोरोना का संकट बहुत बड़ा है, यह तो सबने मान लिया है,  सबसे मनवा लिया गया है!         लेकिन कोरोना के अलावा कहीं कुछ और भी है क्या जिस पर हमारा दिमाग जाता है?  मसलन किसान-आंदोलन, मजदूर कानूनों में मजदूर-विरोधी बदलाव, बदली जाती शिक्षा नीति के दुष्प्रभाव और ख़त्म की जाती नौकरियाँ!... सब कुछ कोरोना ही है या कुछ और भी है जो हमें परेशान कर रहा है? क्य

मुक्केबाज स्वीटी ने क्यों किसानों को समर्पित किया चैंपियनशिप का पदक?

      काला कानून, कितना काला!                     किसान आंदोलन की                        परीक्षा  एवं सफलताएं                                      Boxer  Saweety Boora                                             Ph oto Courtesy: merisaheli.com  किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं सहित देश के कोने-कोने में तीन कृषि सम्बन्धी कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन और धरने जारी हैं, उसी तरह शासकों के साथ-साथ प्रकृति द्वारा भी उसकी परीक्षाएँ जारी हैं। मुसीबतों और अड़चनों के बावजूद धैर्य और दृढ़ता से किसान इनका सामना कर रहे हैं! संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के क्रम में शाहजहांपुर बॉर्डर को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा। इस तूफान के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा ने समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया है कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्

तो सांसद-विधायकों से होगा सीधा टकराव?..

     काला कानून, कितना काला!                                                    लंबी लड़ाई के लिए                तैयार हो रहे किसान ★ भाजपा सांसद, विधायक व जनप्रतिनिधियों के दफ्तरों के सामने किसान जलाएंगे कानूनों की प्रतियां ★ पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनकी पुण्यतिथि पर किसानों द्वारा श्रद्धांजलि ★ पंजाब के दोआबा से किसानों का बड़ा जत्था आया ★ पंजाब में किसान आंदोलन के 8 महीने पूरे : 100 से ज्यादा जगह पक्के मोर्चे ★ किसानों की लंबे संघर्ष की तैयारी : सभी तरह के इंतजाम कर रहे किसान तीन कृषि कानूनो के खिलाफ  देश के किसानों की लंबी लड़ाई चल रही है। पंजाब का इस लड़ाई का अहम योगदान है। पिछले साल सितम्बर से पंजाब में मोर्चे लगने लग गए थे। आज पंजाब में आंदोलन शुरू हुए 8 महीने हो गए है। पंजाब के किसानों के संघर्ष का परिणाम है कि राज्य में किसी भी टोल प्लाजा पर टैक्स नहीं लिया जा रहा है। पंजाब के किसान ना सिर्फ सरकारों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे है, बल्कि देश के बड़े कॉरपोरेट्स घरानों के खिलाफ भी बड़ी जंग छेड़े हुए है। किसानों ने हर मौसम में अपने आप को मजबूत रखते हुए सरकार व कॉर्पोरेट के खिल

क्या सचमुच तीनों कानून 'गैर-संवैधानिक' हैं?..

काला कानून, कितना काला!           क्या हैैं कृषि संबंधित तीनों कानून?             क्या सचमुच ये संवैधानिक नहीं हैं?                                            आलेख :  एडवोकेट   आराधना  भार्गव                                                                       नए लाए गये तीनों कृषि संबंधित कानूनों का विवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। दिल्ली की सीमाओं के साथ-साथ देश के दूसरे कई स्थानों पर किसान इन कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ धरने पर बैठे हैं। प्रस्तुत है किसान संघर्ष समिति की मध्यप्रदेश उपाध्यक्ष एडवोकेट आराधना भार्गव के विचार:-   तीनों कृषि कानून इसलिए रद्द किये जाने चाहिये क्योंकि भारत के संविधान के भाग 4 अनुच्छेद 48 में कृषि राज्य का विषय है, और राज्य के विषय पर केन्द्र का कानून बनाना गैर संवैधानिक है। देश संविधान से चलना चाहिए, सरकार की मर्जी से नही। तीनों कानूनों को हमें एक दूसरे से जोड़कर देखना होगा। कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020 जिसे हम बोलचाल की भाषा में बंधुवा किसान कानून कहते हहैैं, इसमें पीड़ित पक्षकार न्याय पालिका का

कितना समर्थन मिला कालादिवस को?..

काला कानून, कितना काला!                             किसान आंदोलन में                             उत्साह                                 काला-दिवस' सुदूर दक्षिण तक 'काला-दिवस' को मिले देश भर के भारी समर्थन से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाए जा रहे किसान आंदोलन में अत्यधिक उत्साह का संचार हुआ है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विरोध प्रदर्शन को जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक और पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक व्यापक समर्थन मिलने और आंदोलन को गाँवों-कस्बों तक पहुँचने की खबरें आईं। किसानों ने काले झंडे दिखाते, पुतले फूँकते अपने फोटो और वीडियो वायरल किए। इससे यह संदेश गया है कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने की सरकार की सभी साजिशें नाकाम सिद्ध हो रही है। विविध कार्यक्रमों से यह स्पष्ट हुआ कि अपनी मांगों को पूरा करने में किसानों का पक्ष मजबूत हो रहा है। किसान मांगों को पूरा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सयुंक्त किसान मोर्चो सभी देशवासियों को कल के सफल कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करता है। यह आंदोलन अब भारत भर में व्यापक स्थानों पर फैल रहा है। चाहे वह उत्तर पूर्व भारत में हो, या

कड़वी बात: हम सच कब स्वीकार करेंगे?

         क्या गौतम बुद्ध भगवान हैं?                   https://youtu.be/qKJpbmtDCDA गौतम बुद्ध को आज प्रायः भगवान बुद्ध कहा और माना जाता है! यद्यपि बौद्ध स्वयं को नास्तिक कहते हैं और ईश्वर के अस्तित्व को इंकार करते हैं फिर भी वे गौतम बुद्ध को भगवान बुद्ध कहते हैं! क्यों?...इसके उत्तर में कुछ बौद्धों का कहना है कि ईश्वर शब्द का अलग अर्थ होता है और भगवान का अलग। देश-दुनिया में तो दोनों का मतलब एक ही समझा जाता है। या फिर बाबा रामदेव तथा मध्यकालीन संतों की तरह जगत के कण-कण में भगवान या परमेश्वर की अवधारणा को स्वीकार करते हुए राम-कृष्ण-महात्म्य गांधी-डॉ आंबेडकर सबको जो चाहें सो भगवान/ईश्वर की उपाधि देते हुए उन्हें पूजें। लेकिन दोनों विचार तो एक साथ नहीं हो सकते-है भी, नहीं भी है! अन्यथा 'अस्ति-नास्ति' की अवधारणा बना जो चाहो सो मानो।            अपनी प्रसिद्ध पुस्तिका 'तुम्हारी क्षय' में प्रसिद्ध बुद्धानुयायी राहुल सांकृत्यायन का एक लेख है- 'तुम्हारे भगवान की क्षय'! वे इस लेख में लिखते हैं- "अज्ञान का दूसरा नाम ही ईश्वर है। हम अपने अज्ञान को साफ स्वीकार करने में शर

बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और किसानों का 'काला दिवस'

              बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और                           किसानों का 'काला दिवस' संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के छह महीने पूरे होने के बाद भी शासकों द्वारा उनकी माँगे न माने जाने पर 26 मई को एक तरफ 'काला दिवस' मनाने का फ़ैसला किया है, दूसरी तरफ इसी दिन बुद्ध पूर्णिमा पड़ने के कारण 'बुद्ध पूर्णिमा' भी मनाने का आह्वान किया है। क्या इसके पीछे कोई रणनीति है या यह सिर्फ़ एक औपचारिकता के तौर पर ही कहा गया है?... क्या आंदोलन का गौतम बुद्ध के विचारों से कोई तालमेल भी है। अपरंच, क्या बौद्ध धम्म का किसी आंदोलन से कोई रिश्ता हो सकता है या यह भी मात्र एक धर्म है, धार्मिक सम्प्रदाय है? इन सवालों का बेहतरीन जवाब महापण्डित कहे जाने वाले और सच्चे बुद्धानुयायी राहुल सांकृत्यायन का जीवन और किसान आंदोलन में उनकी भूमिका को जानने-समझने से मिलता है। राहुल न केवल तत्कालीन किसान आंदोलन का साथ देते हैं बल्कि अमवारी के किसान आंदोलन का नेतृत्व भी करते हैं।  'किसानों, सावधान!' शीर्षक एक लेख में राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं, "किसानों की कठिनाइयां और कष्ट काल्पनिक नहीं है

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और कोई सहारा नहीं!.. जी, छतरपुर के बक्सवाहा जंगलों में कुछ ऐस

26 मई का 'काला दिवस' क्या सीख देगा जनता को?..

                     किसान-मजदूर विरोधी निरंकुश                          शासकों के खिलाफ़ ' काला-दिवस '           बहुत से लोगों के मन में सवाल उठता है कि किसान आंदोलन से कोरोना बढ़ रहा है? यह भी कि अगर किसान आंदोलन से कोरोना बाधा है तो चुनावों की भीड़ों से क्या हुआ है?...आखिर ग्रामीणों के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है इन हालातों में?...किसान संगठन के फेसबुक लाइव कार्यक्रम में किसान नेताओं ने सवालों के माक़ूल जवाब दिए!..पढ़ें, यह विशेष प्रेस विज्ञप्ति: ★ देश भर के सभी जिलों में 26 मई को काला दिवस मनाया जाएगा! ★ किसान आंदोलन से नहीं,  चुनाव और कुंभ मेला से देश में कोरोना बढ़ा है! ★ग्रामीण आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में सरकार पूरी तरह विफल!      26 मई को किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने और किसान विरोधी मोदी सरकार के निरंकुश कुशासन के 7 साल पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति  के फेस बुक पेज से किसान की बात का फेसबुक लाईव प्रसारित करते हुए 'काला दिवस' मनाने पर विचार प्रस्तुत किए गए।            उल्लेखनीय है कि तीन किसान विरोधी कान

क्या है किसान आंदोलन को मजबूत करने की नई योजना?..

              क्या और व्यापक, और मजबूत होगा                                         किसान आंदोलन  संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जारी किसान आंदोलन अब आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनने कोशिश कर रहा है। दिख रहा है कि अगर सरकार ऐसे ही आंदोलन की उपेक्षा करती रही तो किसान आंदोलन को जारी रखने के लिए न केवल उसे आम देशवासियों से जोड़ा जाएगा, बल्कि संघर्ष को भी और शक्तिशाली बनाया जाएगा। हरियाणा के किसानों पर हुए लाठीचार्ज के बाद इसकी जरूरत और ज़्यादा बढ़ गई है। किसान आंदोलन इसके लिए खुद को न केवल और व्यापक बनाने की कोशिश कर रहा है बल्कि इसे समाज के वंचित वर्गों तक भी इसे ले जाने के लिए भी प्रयासरत है। शायद बुद्ध पूर्णिमा को मनाने का आह्वान भी इसकी एक क़वायद है!... देखें, संयुक्त किसान मोर्चा की नई प्रेस विज्ञप्ति: हरियाणा के हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने हिंसक कार्रवाई की थी। इसमें अनेक किसानों को गहरी चोटें भी आई थी व कई किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसी दिन किसानों के भारी विरोध के बाद पुलिस ने किसानों पर कोई केस न दर्ज करने का फैसला लिया था

कौन दबाव में है- किसान या सरकार?..

                 संयुक्त किसान मोर्चा ने लिखा                             प्रधानमंत्री को पत्र लगता तो है कि हालात दबाव बना रहे हैं।... किसान आंदोलन पर एक दबाव है कोरोना का तो दूसरा दबाव  है मौसम का ! सरकार की बेरुखी और हठधर्मिता का दबाव किसानों पर नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन सरकार पर भी कम दबाव नहीं है। कोरोना की दुर्व्यवस्थाओं के चलते बिगड़े हालातों और किसान आंदोलन के प्रति जनता के सकारात्मक रुख से सरकार की छवि और धूमिल हो रही है। इन स्थितियों में जहाँ सरकार ने डीएपी के बढ़ाए दाम में किसानों को राहत दी है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। दूसरी तरफ 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध का भी आह्वान कर रखा है। क्या है  इसका मतलब?.. पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति का सार: ★ संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा ; किसानों से बातचीत कर मांगे माने सरकार। ★ पर्यावरणविद सूंदर लाल बहुगुणा और किसान नेता बाबा गौड़ा पाटिल के निधन पर शोक।   संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखते हुए किसानों से बातचीत करने क

तो क्या दुनिया गुलामी के लिए तैयार की जा रही है?..

                  हम फ़िलिस्तीन के साथ खड़े हैं!                                     चित्र साभार: फ़ेसबुक पूँजीवाद अपरंच साम्राज्यवाद को दुनिया के लिए अपरिहार्य मानने वाले दिमाग की दुनिया में कमी नहीं है! 'वीरभोग्या वसुंधरा' और 'वैश्विक गाँव' जैसे विचार न केवल वैश्वीकरण के लिए समर्थन जुटाते हैं; बल्कि उदारीकरण और निजीकरण के नाम पर साम्राज्यवाद को भी दुनिया के लिए अपरिहार्य बताते हैं। ऐसे में मानवतावाद, मानव अधिकार, समाजवाद आदि विचार अपने आप ऐसे दिमाग के दुश्मन बन जाते हैं। साथ ही दुश्मन बन जाते हैं आज़ादी, मुक्ति जैसे शब्द भी जिनके लिए मानवता की छटपटाहट कभी ख़त्म नहीं होने वाली!...              फिलिस्तीनी संघर्ष दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की  ऐसी प्रतीकात्मक त्रासदी है जिसने हार खाए पूंजीवादियों और फासिस्टों को हार न स्वीकार करने की निराशा की अभिव्यक्ति कहा जा सकता है। वे इसी बहाने दुनिया को जताना चाहते हैं कि दुनिया पर उनका ही सिक्का चलेगा। इज़राइल को उन्होंने आगे कर पूरी मानवतावादी चेतना पर गोले बरसाए हैं, फिलिस्तीन की तरह सबक सिखाने की धारणा बनाई है। संयुक्त राष्ट्र संघ का

क्या राजा नंगा है?..

                            देखो, राजा नंगा है!.. एक देश में एक राजा हुआ करता था। उसको नये-नये प्रयोग करने का शौक था। सारे प्रयोग वह अपनी प्रजा और अपने कर्मचारियों पर करता था। एक दिन उसने एक खाई खुदवाई और उसमें आग के अंगारे दहकाये। इसके बाद उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि सभी को इन अंगारो पर से गुजरना है इन अंगारों जो गुजर जाएगा, उसकी नौकरी बची रहेगी। अगर कोई अंगारो से गुजरते हुऐ मर जायेगा तो उसको पचास लाख का मुआवजा मिलेगा।  लेकिन जो अंगारो से गुजरने से मना कर देगा उसको नौकरी से निकाल दिया जाएगा।  कर्मचारियों ने मजबूर होकर राजा के आदेश को माना और दहकते हुये अंगारो से गुजरना शुरू किया। बड़ी मुश्किल से कुछ लोग पार कर पाये। मगर पर करते समय कुछ लोगों के पैर जल गये, कुछ फिसल गये तो उनके हाथ-मुँह सब जल गये। कुछ उसी आग में गिर गये जिनको घसीट कर निकाला गया।  किन्तु इनमें से तीन लोग उसी आग में भस्म हो गये जिनको आग से बचाने में लोग नाकाम रहे। इस प्रयोग के दो-चार दिन बाद जो लोग उस आग से झुलस गये थे उनकी जिन्दगी नरक बन गयी । एक-एक कर लोग दम तोड़ने लगे और दम तोड़ने का सिलसिला इतना बढ़ा की मरने वा

शहीद महावीर सिंह को आप जानते हैं क्या?

                     शहीद भगतसिंह के साथी:                         अमर शहीद महावीर सिंह            देश की माटी अमर शहीदों की यादगार है। इस देश की खेती-बाड़ी, इस देश के किसानों-मजदूरों की खुशहाली के लिए अनगिनत शहीदों का कर्ज हम सब पर है। जैसे अंग्रेजों के समय रायबहादुर, रायसाहब, सर आदि उपाधियां लेने वालों और जनता से गद्दारी कर अंग्रेजी राज और उनकी कम्पनियों को लूट में सहयोग करने वालों की कमी नहीं  थी, वैसे ही आज भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दलाली करने, उनसे सांठगांठ करने, तथाकथित 'समझौता' कर देश के प्राकृतिक संसाधनों-जल, जंगल, जमीन..बाज़ार और मानवश्रम का कारोबार करने और उनके बल पर सत्ता-सुख हासिल करने, अरबों-खरबों का वारा-न्यारा करने वालों की कमी नहीं है। जनता की बदहाली और इन जनद्रोहियों के ऐशो-आराम से आज की हालात को समझा जा सकता है।  लेकिन देखें, शहीद भगतसिंह के साथी अमर शहीद महावीर सिंह ने क्या किया था और इन देश के सच्चे नेताओं से आज जे नेताओं की तुलना करें!...  17 मई 1933 की शाम थी, जब अंडमान (कालापानी) की जेल के बैरक संख्या 66 में आधे घण्टे की कुश्ती के बाद दस -बारह व्यक्तियों