Skip to main content

अखिल गोगोई- किसान आंदोलन की एक नई परिभाषा

 

                    कौन हैं अखिल गोगोई?...    


★ अखिल गोगोई की जीत से असम में नई राजनीति का दौर शुरू हो,

★अखिल गोगोई की जीत से देश के किसान आंदोलन को बल मिलेगा।                            ~~~ डॉ. सुनीलम

   असम के शिवसागर विधानसभा क्षेत्र से अखिल गोगोई चुनाव जीत गए। 5 राज्यों में जहां भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां कोई ना कोई उम्मीदवार जीता है। लेकिन अखिल गोगोई की जीत विशेष महत्व रखती है। जीत का महत्व केवल इसलिए नहीं है कि असम की भाजपा सरकार और  कॉर्पोरेट  की पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी वे चुनाव जीते हैं, यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि वह डेढ़ वर्षो से जेल में बन्द होने और चौतरफा हमले के  बावजूद भी चुनाव जीते हैं। 

असम सरकार ने उन पर यूएपीए लगाया है, एनआईए ने राष्ट्र द्रोह के प्रकरण तैयार किये हैं। तमाम मुकदमों में उन्हें हाईकोर्ट से राहत मिल चुकी है लेकिन एनआईए कोर्ट उन्हें जमानत देने को तैयार नहीं है। परन्तु शिवसागर की जनता की अदालत में उनकी जीत हो गई है।

अखिल गोगाई की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जब दो पार्टियों या मोर्चों के बीच ध्रुवीकरण होता है तब तीसरे का जितना लगभग असंभव हो जाता है। इसका उदाहरण बंगाल है। दसियों साल तक राज करने वाली कांग्रेस और वाम मोर्चे को एक भी सीट नहीं मिली है। केरल में चुनाव एल डी एफ और यू डी एफ के बीच था वहां आर एस एस  और कॉरपोरेट की पूरी ताकत लगाने के बाद भा ज पा को एक भी सीट नहीं मिल सकी। परन्तु ध्रुवीकरण के बावजूद शिवसागर के मतदाताओं ने अखिल को जिताया।

      हालांकि चुनाव के शुरू होने के पहले असम के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा था कि वह अखिल गोगोई की मदद करेगा, उनके लिए सीट छोड़ेगा। परंतु सीट छोड़ना तो दूर अखिल गोगोई के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के खासम-खास को टिकट देकर मैदान में उतार दिया। मैं असम की राजनीति का जानकार तो नहीं हूं लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि यदि कांग्रेस पार्टी के गठबंधन ने अखिल गोगोई के लिए सीट छोड़ दी होती, रायजोर दल के साथ गठबंधन कर लिया होता  तो संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच सकता था। मैं वोट प्रतिशत के आधार पर नहीं व्यापक एकता से बनने वाले माहौल को ध्यान में रखकर  यह कह रहा हूँ।

अखिल गोगोई की खासियत है कि वह खुलकर सांप्रदायिक ताकतों का विरोध करते है, फिर वह चाहे हिंदू कट्टरपंथी हो या मुस्लिम कट्टरपंथी। यही बात कांग्रेस गठबंधन को पसंद नहीं आई। उन्होंने कहा कि हिन्दू कट्टरपंथियों का विरोध और मुस्लिम कट्टरपंथियों का समर्थन नहीं चलेगा ।भारत सरकार ने जब असम में पड़ोसी देशों के हिंदुओं को बसाने के लिए नागरिकता कानून बनाया तब अखिल गोगोई ने सड़कों पर इसका विरोध किया। अखिल गोगोई ने कहा कि धर्म नागरिकता का आधार नहीं हो सकता। अखिल गोगोई असम में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर जाने जाते हैं। उनकी पहचान बड़े बांधों का विरोध करने वाले, जैव विविधता को बचाने के लिए संघर्ष करने वाले, जैव विविधता पार्क बनाने वाले कारपोरेट विरोधी नेता की है। जब  गौहाटी में गरीबों को उजाड़ा गया तब अखिल गोगोई ने जमकर सड़कों पर उसका विरोध किया। मैं अखिल गोगोई के चुनाव क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने सात दिन गया था।

 देश में शायद ही ऐसा कोई उम्मीदवार होगा जिसने 10 -15 अलग-अलग वैचारिक मुद्दों पर पर्चे छापे होंगे तथा हर मतदाता के पास उन पर्चो को पहुंचा कर विभिन्न मुद्दों की जानकारी दी होगी। पूरे शिवसागर विधानसभा  में सभी बुथों पर 25 साल से कम उम्र के 10 से 20 युवा और युवतियां शिवसागर में पहुंचे थे। हर बूथ स्तर पर उन्होंने कार्यालय स्थापित किया था। जहां वे एक साथ रहते थे 1 दिन में 20 लोग मिलकर 70 घरों में जाकर परंपरागत तरीके से एक बर्तन में पर्चे रखकर सौंफ के साथ मतदाताओं  को पर्चे दिया करते  थे तथा कम से कम 15 मिनट मतदाता परिवार के साथ चर्चा किया करते थे।     

      अखिल गोगोई की जीत में उनकी वृद्ध माताजी और बहनों की बहुत अहम भूमिका है। वे सुबह से शाम तक गाड़ियों के काफिले के साथ  पंचायतों में जाती थी। महिलाएं बड़े पैमाने पर इकट्ठा होकर उनके दर्शन करती थीं। माताजी कहती थी कि मेरा बेटा आपके मुद्दों को लेकर जेल गया है, आप ही उसको बाहर निकाल सकते हैं। मेरे बेटे को वोट दो! इसका भावनात्मक असर होता था। अखिल गोगोई की टीम के प्रमुख वेदांता  जैसे तमाम साथी थे जो दिनभर नुक्कड़ सभाएं किया करते थे। 

      अखिल गोगोई ने जिस तरह से चुनाव लड़ा वह तरीका अनुकरणीय है। यदि अखिल गोगोई जेल से बाहर होते तथा कांग्रेस ने उनके लिए सीट छोड़ी होती तो वे भारी मतों से चुनाव जीतते। कांग्रेस के चुनाव अभियान का सबसे दुखद पहलू यह है कि उन्होंने  अखिल गोगोई जैसे सेकुलर व्यक्ति को भाजपा का एजेंट बताने का कुकृत्य  किया ताकि मुसलमानों को अलग किया जा सके। लेकिन कांग्रेस की यह नीति पूरी तरह असफल रही। शिवसागर कभी सीपीआई का गढ़ हुआ करता था, बाद में कांग्रेस पार्टी का गढ़ बना लेकिन अब आने वाले समय में शिवसागर असम की नई राजनीति का गढ़ बन कर उभरेगा।

    अखिल गोगाई के साथ अन्ना आंदोलन की कोर कमेटी में साथ काम करने तथा  जनांदोलनों  के राष्ट्रीय समन्वय में राष्ट्रीय संयोजक मंडल के साथ काम करने के  अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि अगर  अखिल गोगाई को जीवित रहने दिया गया तो वे असम के भावी नेतृत्वकर्ता  होंगे। अखिल गोगोई की टीम पूरे चुनाव के प्रचार में यह कहते रही कि इस बार भी भाजपा को हॉफ करेंगे और 2026 में साफ करेंगे यानी खुद सरकार बनाएंगे।       

      संयुक्त संघर्ष मोर्चा के द्वारा 'भाजपा हराओ' अपील का शिव सागर के चुनाव में असर पड़ा। योगेंद्र यादव जी के साथ मैंने अखिल गोगोई से अस्पताल में मिलकर गुवाहाटी में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सभा को संबोधित किया। मेधा पाटकर जी एवं संदीप पांडेय जी ने शिव सागर में बड़ी चुनावी रैली की जिसमें उनके साथ बिहार के पूर्व सांसद भी मौजूद रहे।

       अखिल गोगोई की जीत से देश के किसान आंदोलन और जन आंदोलन को बल मिलेगा। वे जेल में रहने के बावजूद आज भी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य हैं तथा जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय मंडल के सदस्य हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा अब खुल कर अखिल गोगाई के पक्ष में खड़ा हो गया है। उसने आज अखिल गोगाई की तत्काल रिहाई की मांग की है। आने वाले समय मे कई राज्यों के मुख्यमंत्री अखिल गोगाई की रिहाई के लिए सक्रिय दिखाई पड़ेंगे। 

जेल से रिहा होने के बाद अखिल गोगाई  सड़क से  विधान सभा तक नई भूमिका में दिखलाई देंगे।

कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्च का बदला रुख देखना  दिलचस्प होगा।

मुझे उम्मीद है असम के मीडिया ने तमाम दबाव और प्रलोभनों के बावजूद जिस तरह से अखिल गोगाई के संघर्ष को साथ दिया, वह अब जनप्रतिनिधि के तौर पर अखिल गोगाई को बढ़-चढ़ कर मिलेगा।

अखिल गोगोई की बहादुरी और जज्बे तथा शिव सागर के मतदाताओं की परिपक्वता, कृषक मुक्ति संग्राम समिति और राइजोर दल के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को मेरा सलाम!

                                                     -  डॉ सुनीलम

 (पूर्व विधायक एवं अध्यक्ष किसान संघर्ष समिति, राष्ट्रीय संयोजक- जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय; वर्किंग ग्रुप सदस्य-अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति - संयुक्त किसान मोर्चा)

              samajwadisunilam@gmail.com

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और...