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बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और किसानों का 'काला दिवस'

             बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और                         किसानों का 'काला दिवस'


संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के छह महीने पूरे होने के बाद भी शासकों द्वारा उनकी माँगे न माने जाने पर 26 मई को एक तरफ 'काला दिवस' मनाने का फ़ैसला किया है, दूसरी तरफ इसी दिन बुद्ध पूर्णिमा पड़ने के कारण 'बुद्ध पूर्णिमा' भी मनाने का आह्वान किया है। क्या इसके पीछे कोई रणनीति है या यह सिर्फ़ एक औपचारिकता के तौर पर ही कहा गया है?... क्या आंदोलन का गौतम बुद्ध के विचारों से कोई तालमेल भी है। अपरंच, क्या बौद्ध धम्म का किसी आंदोलन से कोई रिश्ता हो सकता है या यह भी मात्र एक धर्म है, धार्मिक सम्प्रदाय है? इन सवालों का बेहतरीन जवाब महापण्डित कहे जाने वाले और सच्चे बुद्धानुयायी राहुल सांकृत्यायन का जीवन और किसान आंदोलन में उनकी भूमिका को जानने-समझने से मिलता है। राहुल न केवल तत्कालीन किसान आंदोलन का साथ देते हैं बल्कि अमवारी के किसान आंदोलन का नेतृत्व भी करते हैं।

 'किसानों, सावधान!' शीर्षक एक लेख में राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं, "किसानों की कठिनाइयां और कष्ट काल्पनिक नहीं हैं; जिनको कि आप लच्छेदार बातों या बहानों से दूर कर सकते हैं या उन्हें संतुष्ट कर सकते हैं। किसान धोखे में नहीं आ सकते , क्योंकि वह जीभ हिला देने या स्याही से कागज काला कर देने मात्र से सूखी नहीं किए जा सकते।..." और आज क्या हो रहा है?  शासकों ने कागज तो काला किया है किन्तु किसानों की जिंदगी और काली बना देने के लिए।! हाँ, जीभ हिलाने में इनका कोई सानी नहीं! वहाँ तो हमेशा 'शाइनिंग इंडिया' है, हमेशा 'अच्छे दिन' हैं! 

दरअसल, बौद्धधर्म कोई साम्प्रदायिक धर्म न होकर दुःखमय दुनिया से दुःख के निदान का एक आंदोलन ही था। यद्यपि कालान्तर में यह आंदोलन अन्य धर्मों की तरह का एक धर्म जैसा  देखा जाने लगा, किन्तु इसके सिद्धांत इसे व्यावहारिक रूप में दुनिया के एक बड़े आंदोलन का रूप देते हैं। यही कारण है कि आज भी बुद्धानुयायी न केवल किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं बल्कि उसमें सक्रिय भागीदारी भी कर रहे हैं। राहुल सांकृत्यायन इस मायने में आज किसान आंदोलन के प्रेरक सिद्ध हो सकते हैं यदि किसान आंदोलन के सम्बंध में उनके विचारों को व्यवहार में उतारा जाए। आज के किसान आंदोलन के बारे में भी राहुल सांकृत्यायन कितने समीचीन हैं, यह उनके एक वक्तव्य से समझा जा सकता है- "...अगर किसान सजग न रहेंगे और अपने अधिकार के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी करने को तैयार न होंगे, तो धोखा खाएँगे।"

शासकों की हठधर्मिता के खिलाफ़ काला दिवस मनाते हुए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि किसान आंदोलन बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर राहुल के इस चेतावनी पर ध्यान देते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाता रहेगा।

                              ★★★★★★★★★

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