Skip to main content

कितना समर्थन मिला कालादिवस को?..

काला कानून, कितना काला!   

                         किसान आंदोलन में                             उत्साह 

                             काला-दिवस' सुदूर दक्षिण तक

'काला-दिवस' को मिले देश भर के भारी समर्थन से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाए जा रहे किसान आंदोलन में अत्यधिक उत्साह का संचार हुआ है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विरोध प्रदर्शन को जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक और पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक व्यापक समर्थन मिलने और आंदोलन को गाँवों-कस्बों तक पहुँचने की खबरें आईं। किसानों ने काले झंडे दिखाते, पुतले फूँकते अपने फोटो और वीडियो वायरल किए। इससे यह संदेश गया है कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने की सरकार की सभी साजिशें नाकाम सिद्ध हो रही है।

विविध कार्यक्रमों से यह स्पष्ट हुआ कि अपनी मांगों को पूरा करने में किसानों का पक्ष मजबूत हो रहा है। किसान मांगों को पूरा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सयुंक्त किसान मोर्चो सभी देशवासियों को कल के सफल कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करता है।

यह आंदोलन अब भारत भर में व्यापक स्थानों पर फैल रहा है। चाहे वह उत्तर पूर्व भारत में हो, या जम्मू और कश्मीर, या केरल या गुजरात या छत्तीसगढ़ में, स्पष्ट रूप से दिखाता है कि आंदोलन वास्तव में अधिक समर्थन और ताकत जुटा रहा है। पूरे देश में आम नागरिकों में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है और इसका परिणाम भाजपा और केंद्र सरकार को भुगतना है।

 किसान नेताओं ने अलग-अलग स्थानों पर कहा कि किसान अगले आम चुनाव तक भी लड़ने के लिए तैयार हैं। किसान समझते हैं कि वर्तमान में मोदी सरकार द्वारा किसानों की मांगों को पूरा नहीं किया जाता है तो भविष्य में चुनावों में भी कृषि आजीविका को एक प्रमुख मुद्दा बनाया जाएगा।

 विरोध दिवस मनाने के लिए कई ट्रेड यूनियनों ने भी किसानों का पूरा साथ दिया। मोदी सरकार द्वारा लाए गए मजदूर विरोधी लेबर कोड के खिलाफ भी मजदूर संघर्ष कर रहे हैं, और समग्र जनविरोधी नीतियों के खिलाफ भी लड़ रहे है।

समाज के अन्य वर्गों ने भी एसकेएम के आह्वान का जवाब देते हुए  किसानों को अपना समर्थन दिया। जालंधर में ऑटो चालकों ने विरोध प्रदर्शन किया।  कई जगह प्रगतिशील युवा और महिला संगठन भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।

  कुछ मीडिया घरानों ने कड़े संपादकीय के साथ सरकार से किसानों की मांगों को हल करने के लिए कहा। उनके विचारों में कोविड महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार को किसानों से बातचीत करने की बात है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी जनता द्वारा सरकार का पुतला जलाने, ट्रैक्टर और मोटर साइकिल रैली, रास्ता रोको और काला झंडा फहराने की खबरों का हवाला देते हुए कहा, "हाल के समय में शायद कोई अन्य सरकार नहीं है, जिसने पूरे देश में नागरिकों द्वारा इतना प्रतिरोध देखा हो। मोदी सरकार की नीतियां ऐसी शोषणकारी रही हैं जिसके कारण इसका ज्यादा विरोध हो रहा है।

संयुक्त किसान मोर्चा एक बार पुनः सभी किसानों, मजदूरों समेत देशवासियों का धन्यवाद करता है। साथ ही उन सभी संगठनों का धन्यवाद करता है जिन्होंने संगठनात्मक रूप से कल के कार्यक्रम को समर्थन दिया व सफल बनाया।

जारीकर्ता- 

बलवीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हनन मौला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उग्राहां, युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव, अभिमन्यु कोहाड़.

काला कानून, कितना काला!   

                            ★★★★★★★★

Comments

  1. संयुक्त किसान आंदोलन हीं भारत का भविष्य तय करेगा। मुनाफाखोर व्यवस्था हमारे लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक साबित होगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कह रहे हैं। किसान आंदोलन बड़े बदलाव का सूचक हो सकता है!

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और...