Skip to main content

Posts

Showing posts from 2019

अय भाग जा दरिन्दे फ़ौरन (ग़ज़ल):

तमाम संघर्षों को समर्पित...                                                                           ग़ज़ल                                                 - कवि महेन्द्र मिहोनवी अय भाग जा दरिन्दे फ़ौरन मचान लेकर निकले हैं  अब परिन्दे गद्दी पे प्रान लेकर दरकी  हैं ये  ज़मीनें  कय्यक हज़ार मीलों फूटी  हैं  कुछ चटानें इतनी  उठान लेकर रस्ते  में  हर क़दम पर  खूँख़ार जानवर हैं चलना  हमें  पड़ेगा  तीरो   कमान लेकर बुलबुल को बर्तनी है अतिरिक्त सावधानी सैयाद   घूमते  हैं  टोही   विमान  लेकर जिसमें मगर के हक़ में सारे नियम बने हैं चाटेंगीं मछलियाँ क्या एसा विधान लेकर जंगल  में दूर   शायद  बरसात  हो रही है आने  लगीं हवायें  माफ़िक़ रुझान लेकर लाठी नहीं तो क्या ग़म बाजू तो हैं सलामत मिट्टी  को  रो  रहे हो  हीरों की खान लेकर जगमग  है  राजधानी  मेला  नया  लगा  है ठग  तो  वही  पुराने   बैठे  दुकान  लेकर इससे तो था ये अच्छा आते न मुझसे मिलने सीने  से लग  रहे हो  दिल में गठान लेकर माने  कोई न   माने  मंज़िल के जो दीवाने वो   बैठते  नहीं  हैं  पथ में थकान लेकर               

एक चुटकुला: प्राइवेट बनाम सरकारी काम...

  Whatsappचुटकुला:                                                                               प्राइवेट बनाम सरकारी प्राइवेट काम करने वालों को लगता है कि सरकारी कर्मचारी को तो फोकट की तन्ख्वाह मिलती है। एक वैल्डिन्ग मिस्त्री काफी दिनों से एक सरकारी कर्मचारी को तन्ख्वाह ज्यादा होने व काम कम होने के ताने दे रहा था | एक दिन सरकारी कर्मचारी का दिमाग खराब हो गया वह घर से एक टूटी बाल्टी की कड़ी डलवाने व पुराना टूटा हुआ हत्था लेकर उस मिस्त्री के पास जा पहुँचा! मिस्त्री ने 100 रू मरम्मत खर्च बताया ... कर्मचारी बोला - 150 ₹ दे दूँगा .. पर कुछ नियम ध्यान में रखना.. मिस्त्री राजी होकर बोला -बताओ बाबूजी जी..? कर्मचारी ने एक रजिस्टर निकाला और मिस्त्री से बोला - ये लो इस में रिकार्ड भरना है... 1.बाल्टी किस सन में बनी व कब टूटी (RTI) 2.बाल्टी किस कम्पनी की बनी है TATA/JSW/SAIL  3.बाल्टी की मरम्मत में खर्च वैल्डर,बिजली,पानी व समय का ब्यौरा दर्ज करना होगा।* 4.मरम्मत से पहले व बाद मे बाल्टी का वजन लिखना होगा। 5.हत्थे में कितनी जंग लग चुकी है ... उसका वजन और कारण दर्ज कर

हम #रोहिंग्या

                                हम देख्या जग सारा!..                                                  - अशोक प्रकाश हम सारी दुनिया देखते-देखते यहाँ पहुँचे हैं!..ईरान आर्यान है और क्राइस्ट कृष्णावतार!... हम सब जानते हैं। हमसे ज़्यादा जबान मत लड़ाना!...सो, जो बोलें सो सुनो! जब घुट्टी में पिलाए गए धार्मिक प्रपंचों को सौ फीसदी झूठ पाकर भी हम दिन-रात उन्हीं की पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं, अपने सारे कष्टों का कारण अपने कर्मों में और निवारण ऊपर वाले में देखते हैं तो किसी तर्क-वितर्क का हम पर असर नहीं पड़ने वाला!..  हम भक्तप्राण लोग हैं और अपने आराध्य हनुमानजी की कृपा से ही हमने सारी पदप्रतिष्ठा पाई है, ऐसा मानते हैं। हम भाग्यशाली हैं और भाग्य ने ही हमें सब कुछ दिया है। तुम भी परमपिता परमेश्वर की शरण में जाओ और मुसलमान हो तो बेनागा पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ो, जिस लायक होओगे,  ऊपर वाला देगा!...            जब उसकी मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिल सकता तो संविधान, अम्बेडकर, नेहरू, मोदीशाह सब उसी के बनाए हैं और उसी के इशारे पर अपना काम करते हैं!...हमें न तो किसी रोजी-रोज़गार की जरूरत है, न

शिक्षा गुणवत्ता का ढिंढोरा: दाल में कुछ काला है!

दाल में कुछ काला है क्या?...                            शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक में                            उत्तर प्रदेश फिसड्डी घोषित!                                             साभार- 'अमर उजाला'                        उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा इन दिनों अक्सर मीडिया की सुर्खियों में रहती है!...ये सुर्खियां प्रायः शिक्षकों की कामचोरी, अक्षमता, अनुपस्थिति, लेट-लतीफी आदि की होती हैं! शिक्षकों को छोड़कर शिक्षा-व्यवस्था से जुड़े बाकी सभी नेता, नौकरशाह, अधिकारी, कर्मचारी, ग्राम प्रधान, गैर-सरकारी संगठन यानी एनजीओ आदि प्रायः सुयोग्य, चुस्त-दुरुस्त, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार बताए-दिखाए जाते हैं! या कम से कम शिक्षकों को छोड़कर अन्य किसी पर उंगलियां नहीं उठाई जातीं!..क्यों?         शिक्षकों से सम्बंधित इस 'क्यों?' -सवाल के उत्तर से पहले उसके परिणामों पर गौर करना जरूरी है। क्योंकि समाज और अधिकारियों के कठघरे में खड़े किए जाते शिक्षक सजा पाने के हक़दार तर्क और न्याय की किसी कसौटी पर कसे बिना ही पहले से ही अपराधी घोषित किए जा रहे हैं! सजा भी देना शुरू हो रहा है। उदाह

शिक्षक हैं तो...सिखाइए!

                                    शिक्षक हैं तो                            और सीखिए, और सिखाइए!                                                 - अशोक प्रकाश             जीवन एक संघर्ष है और इस संघर्ष को जितना ही मानव-सभ्यता के संघर्ष से जोड़कर हम देखते हैं, उतना ही यह मजेदार लगता है। हमारी तकलीफ़ भी सिर्फ़ हमारी नहीं होती। हमें यह भी पता चलता है कि इसे झेलने वाले हम कोई विरले इंसान नहीं हैं!...           तो फिर इस पर इतना हायतौबा करते हुए जीना कैसा?...          दरअसल, यह जीवन एक विराट और न ख़त्म होने वाली यात्रा की तरह है। यह यात्रा मानव-सभ्यता की विकास-यात्रा है। एक इंसान को  इस यात्रा को हमेशा ही बेहतर और सुखद बनाने की कोशिश करना चाहिए!         हम इस संसार को जितना बेहतर देख, जान, समझ सकेंगे उतना बेहतर जी सकेंगे, इसे और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकेंगे। तो इस संसार को ज़्यादा से ज़्यादा देखिए, जानिए, समझिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में साझा कीजिए!...ध्यान रखिए कि इसमें निरंतर कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ मनोरंजक, कुछ चिंतन-चेतना को बढ़ाने वाला हो!           और हाँ, विधि-विधान की

नोटबन्दी की तरह 'भाषा की बंदी'

                                      भाषा की बंदी                                                             - रहीम पोन्नाड नोटबंदी की तर्ज पर केरल के एक कवि #रहीम_पोन्नाड ने मलयालम में एक कविता लिखी थी #भाषा_निरोधनम जिसका अनुवाद ए आर सिन्धुऔर वीना गुप्ता ने किया और हमने थोड़ा सा संपादन ! एक नए किस्म का प्रयोग है, भाषा के जरिए नोटबंदी की स्थितियों को फिर से जिया गया है ! #बादल_सरोज की वाॅल से यह कविता हिंदी दर्शन के जरिए प्राप्त हुई है ! आप भी आंनद लें :                                      प्रस्तुति: गुरचरन सिंह (फेसबुक- साभार)                                     भाषा की बंदी           एक दिन आधी रात को  उन्होंने भाषा पर पाबंदी लगा दी घोषणा हुई आज से सब की एक ही भाषा होगी पुरानी भाषा को डाकघर से बदल कर ले जा सकते हैं । नींद से उठ कर लोग इधर-उधर भागने लगे हर जगह चुप्पी थी माँओ ने बच्चों के मुंह को हाथ से दबाकर बंद किया, ठूंसा गया बुजुर्गों के मुंह में कपड़ा, रुक गया मंदिर में भजन और मस्जिद से अज़ान भी, रेडियो पर सिर्फ वीणा वादन हो रहा था टीवी पर इशारों क

'शिक्षक की जासूसी' का डिज़िटल संस्करण- 'प्रेरणा-ऐप'

                           वे हमें चोर समझते हैं!..                                                        - अशोक प्रकाश   वे हमें चोर समझते हैं!... वे, जिनकी चोरी की समानान्तर व्यवस्था पूरे समाज में बदबू की तरह फैली है... वे, जो अंग्रेजों के दलालों के रूप में हमारे देश और उसकी  भोली-भाली जनता को  गुलाम बनाए रखे रहे उसका खून चूसा... वे, जो खुद बंगलों में रहते रहे और झोपड़ियों को खाक में मिलाते रहे... वे, जो रोब-दाब मतलब  शोषण और अत्याचार के पर्याय हैं वे, 'आखर का उजियारा फैलाने वाले' देश के भविष्य की उम्मीद शिक्षक को चोर समझते हैं!... पूंजी के संचार माध्यमों से शिक्षकों को  बदनाम करने  वालों असली चोरों के असली सरदारों, समाज की चेतना के वाहक शिक्षक भी तुम्हें   अच्छी तरह समझते हैं!...                          'प्रेरणा-ऐप' की प्रेरणादायी परिस्थितियाँ                महान जासूस 008 जेम्स बांड के डिजिटल-अवतार                                         प्रेरणा ऐप                        के इंजीनियरों से शिक्षकों के कुछ सवाल          

प्रेरणा ऐप के खिलाफ शिक्षकों की व्यथा-कथा

'प्रेरणा' ऐप के खिलाफ़ उभरता क्षोभ: https://youtu.be/PXtlaq8_9Ug              शिक्षकों का बढ़ता क्षोभ और उभरते कई सवाल क्या बेसिक शिक्षा परिषद बन रहा है  प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी  ?... प्रेरणा एक मामूली अप्लीकेशन है, अगर यह सोचकर आप भूल कर रहे हैं तो आप स्वयं अपने, अपने परिवार, समाज और देश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इस अप्लीकेशन पर बहुत सारे रिसर्च किये गये हैं। और इसको केन्द्र बिन्दु बना कर बेसिक शिक्षा परिषद को एक प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने की पूरी योजना तैयार कर ली गयी है। पिछले वर्ष *मानव सम्पदा* का जिन्न आपके सामने मात्र सूचना भर के नाम पर लाया गया। जिसको आप सब भांप नही पाये, फिर *ग्रेडेड लर्निंग* का पांच दिवसीय प्रशिक्षण देकर *प्रेरणा एप* लांच किया गया जिसे भी आप सब पुन: नही भांप पाये।  अब यहीं से शुरू होता है....बेसिक शिक्षा को प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने का असली खेल। जिस परिषद के बच्चों को परीक्षा के लिए एक अदद गुणवत्ता युक्त प्रश्न पत्र नही मिलते थे, उसे ग्रेडेड लर्निंग के माध्यम से *ओएमआर और हाई ब्रान्ड का प्रश्न पत्र* दिया गया और परिणाम को प्रेरणा

जल बचाएं, पर किससे और कैसे?...

                         'जल-बचाओ, जीवन-बचाओ'                                          पर                                कैसे और किससे?...                दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर के बाद हमारे देश के खूबसूरत समुद्र के किनारे बसे चेन्नई शहर को भूमिगत जल-शुष्क शहर प्रचारित किया जा रहा है। और ऊपर से लेकर नीचे के स्तर तक इसका दोष आम जनता पर मढ़ा जा रहा है। ध्यान देंगे तो पाएंगे कि हमेशा हर समस्या की जड़ जनता और उसके प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को बताया जाता है। जबकि सर्वविदित तथ्य यह है कि जनता अपने प्राकृतिक संसाधनों-जलजंगलजमीन को बचाने के लिए पूरी दुनिया में प्राणों की आहुति देकर संघर्ष कर रही है।             हकीकत यह है कि दुनिया का छोटा सा ऊपरी धनाढ्य तबका न केवल प्राकृतिक संसाधनों पर अन्याय और अत्याचार के बल पर कब्ज़ा जमाए है और इनका सर्वाधिक दुरुपयोग करता है बल्कि अपने मुनाफ़े को बढ़ाते रहने के लिए लगातार ऐसे तिकड़म रचता रहता है जिससे बचे-खुचे थो ड़े बहुत संसाधनों पर भी वह कब्जा कर सके!                 https://youtu.be/Hq0XQa57FkA पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ने के कार

कैसा शिक्षक-दिवस?...

शिक्षक-दिवस?...क्या शिक्षक-दिवस?            प्राथमिक शिक्षा और उसके शिक्षकों की व्यथा-कथा !            पांच सितम्बर, 2019 को पूरे उत्तर प्रदेश के शिक्षक 'प्रेरणा ऐप' को दुष्प्रेरणा ऐब यानी बुरी नीयत से जबरन सेल्फी-प्रशासन लागू करने की कोशिश मानते हुए विरोध-प्रदर्शन एवं धरने पर रहे!  शिक्षकों का मानना है कि तथाकथित 'प्रेरणा' ऐप अमेरिकी सर्वर द्वारा संचालित एक ऐसा असुरक्षित ऐप है जिसका परिणाम शिक्षकों को गैर-ज़िम्मेदार, कामचोर, लापरवाह, अनुशासनहीन आदि सिद्ध करके उनका वेतन काटना, अनुपस्थित दिखाकर दंडित करना, नौकरी से बर्खास्त करना आदि होना है।  पिछले कुछ समय से शिक्षकों को फंसाने के इस तरह के हथकण्डे अपनाए जा रहे हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है शासन-प्रशासन की नज़र में समाज का जैसे सबसे बड़ा दोषी और नाकारा वर्ग शिक्षकों का ही है! लेकिन अर्थव्यवस्था की खामियों से जूझ रही सरकारों का असल मकसद शिक्षा-व्यय  में  कटौती ही प्रतीत होता है! शायद इसीलिए शिक्षकों की नौकरी मांग रहे न केवल लाखों बेरोजगार नौजवान बल्कि किसी तरह नौकरी पा गए शिक्षक भी उसे बोझ की तरह लग रहे हैं!...

कोई सवाल न उठाएं..

                          समय आ गया है...                                                               - अशोक प्रकाश   समय आ गया है कि हम पहले ताली बजायें फिर अपनी पीठ थपथपाएँ कि... 'आपके अवशेष और वेतन भुगतान हेतु स्वीकृत बजट विधान सभा और विधान परिषद में प्रस्तुत कर दिया गया है... और जल्दी ही दोनों जगहों से पारित हो जाएगा।...' कि आपकी #पुरानी_पेंशन की मांग जल्द पूरी हो जाएगी... इसलिये जरूरी है कि हम इस पर कोई सवाल न उठाएं सिर्फ़ ताली बजायें मसलन... घोषणाओं को मिल गया, मिल गया- बतायें क्या-क्या नहीं मिला या चला गया... - ऐसे सवाल नहीं उठाएं... नीला, हरा होते हुए जो #भगवा हो गया है उसकी विजय-पताका फहरायें इसे शिक्षक समुदाय की बहुत बड़ी जीत बताएं जोर-जोर से चिल्लाएं! उसे विधानसभा या संसद पहुंचाने का जश्न मनायें अभी से माला पहनाएं! समय आ गया है उसे नेता बनाएं खुद भाड़ में जाएं!....                           ★★★★★

भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसरों की घेराबंदी

               भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसरों की घेराबंदी               शैक्षणिक संस्थाओं पर हो रहे हमलों पर आयोजित                      पीपुल्स ट्रिब्यूनल  की रपट 7 मई 2019                       कान्स्टीट्यूशन क्लब दिल्ली में जारी य ह रपट देश की शैक्षणिक संस्थाओं की संकटपूर्ण स्थिति को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण दस्तावेज है। छात्रों को हाशिये पर ढकेलने, बढ़ते अपराधीकरण के संदर्भ में यह अधिक प्रासंगिक है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे लगातार हमलों के चलते सिकुड़ते लोकतांत्रिक दायरों ,छात्र संघों ,शिक्षक संगठनों ,नागरिक संगठनों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 2016 में पीपुल्स कमिशन ऑन श्रिंकिंग डेमोक्रेटिक स्पेस इन इंडिया (पीसीएसडीएस) गठित कर  भारत में सिकुड़ते लोकतंत्र के दायरे पर जन आयोग  (पीसीएसडीएस) 11 अप्रैल से 13 अप्रैल, 2018 के बीच, भारत में शैक्षिक संस्थानों पर हमलों पर पहला  पीपुल्स ट्रिब्यूनल का आयोजित किया,  जिसमें  देश  के 17 राज्यों के 50 संस्थानों और विश्वविद्यालयों के लगभग 130 छात्रों और संकायों के द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुत किये गए , 49 ने मौखिक गवाहियां दी। ज्यूरी

उच्च शिक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय...

                       बर्बादी की कगार पर विश्वविद्यालय   दिल्ली विश्वविद्यालय के मैथेमेटिक्स और अन्य विभागों में पोस्ट ग्रैजुएट स्टूडेंट के फेल होने की सच्चाई: शिक्षा, विशेष रूप से उच्च शिक्षा पर चल रहे हमले के साथ, यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की क्षमता के बारे में संदेह होना स्वाभाविक हैयह स्वाभाविक है। वें प्रेस कांफ्रेंस की क्षमता के बारे में उलझन में हैं। आपको झटका देने के लिए, लेकिन संख्याएं खुद बोलेंगी दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर छात्रों के बीच विफलता की एक अशांत और अविश्वसनीय दर है। डीयू, राजधानी के एक प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में अपने पाठ्यक्रमों में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करता है। आवेदकों को पीजी कोर्स की सीमित सीटों पर या तो राष्ट्रीय प्रवेश के माध्यम से या स्नातक में उनके अंकों के आधार पर प्रवेश मिलता है।   उत्कृष्टता का विचार डीयू में प्रवेश पाने वाले छात्रों का स्नातक में बहुत अधिक प्रतिशत होता है या वे प्रवेश परीक्षा में उच्च कट ऑफ को पूरा करते हैं। लेकिन कुछ ही समय में, वास्तव में 3-4 महीने में वे असफल छात्र बन जाते हैं। MA / MSC म

क्या शिक्षा में सचमुच गरीबों के लिए कोई जगह है?

             प्राथमिक शिक्षा के प्रति                  उनका नकचढ़ापन!                                                  - अशोक प्रकाश              प्राथमिक शिक्षा का जो हाल किया जा रहा है वह बाहर से कुछ और, भीतर से कुछ और है! बाहर से तो दिख रहा है कि शासक-लोग गरीब जनता को अंग्रेजी पढ़ाकर उन्हें बड़ी-बड़ी कम्पनियों में नौकरी के लिए तैयार कर रहे हैं, पर हक़ीक़त में उनसे उनकी पढ़ाई-लिखाई की रही-सही संभावनाएं भी छीनी जा रही हैं। एक तरफ पूरी दुनिया की भाषाओं में हिंदी भाषा की रचनाओं के अनुवाद किए जा रहे हैं, गूगल से लेकर तमाम सर्च इंजन और वेबसाइटों द्वारा दुनिया की मातृभाषाओं के अनुसार अपने को ढालने और लोगों तक पहुंचने की कोशिशें की जा रही हैं, दूसरी तरफ हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही उनकी मातृभाषा छीनने की कोशिश हो रही है।...             इस क्रम में उत्तर प्रदेश के पिछले सालों में हिंदी माध्यम के प्राथमिक विद्यालयों को खत्म कर उन्हें अंग्रेजी माध्यम में रूपांतरित करने की कार्रवाई को देखा जा सकता है। सरकार ने कोई अतिरिक्त अंग्रेज़ी के विद्यालय नहीं खोले बल्कि थोड़ा बेहतर आधा

A Call from AIFUCTO:

                      "Save Campus, Save Education,                                      Save Nation..." Friends, Greetings from AIFUCTO. In the mean time you must have gone through AIFUCTO circular appealing you all to make Peoples' March to New Delhi on February 19th 2019 a grand success.This will be a manifestation of unique solidarity of all teachers' organizations from KG to PG,students' organisations ,employees and many others working in education sector with a commitment to "Save Campus, Save Education,Save Nation" A meeting of JFME(Joint Forum for Movement on Education) held today in New Delhi to finalize the detail program of Peoples' March.All the member organisations enthusiastically participated in the discussions and gave valuable suggestions for the success of the program. Following important decisions were taken; 1.Peoples'March on 19th Feb,2019 will start from Mandi House ,New Delhi by 11 am and will proceed to Parl