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भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसरों की घेराबंदी


              भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसरों की घेराबंदी 

             शैक्षणिक संस्थाओं पर हो रहे हमलों पर आयोजित 
                    पीपुल्स ट्रिब्यूनल  की रपट 7 मई 2019
                      कान्स्टीट्यूशन क्लब दिल्ली में जारी

ह रपट देश की शैक्षणिक संस्थाओं की संकटपूर्ण स्थिति को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण दस्तावेज है। छात्रों को हाशिये पर ढकेलने, बढ़ते अपराधीकरण के संदर्भ में यह अधिक प्रासंगिक है।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे लगातार हमलों के चलते सिकुड़ते लोकतांत्रिक दायरों ,छात्र संघों ,शिक्षक संगठनों ,नागरिक संगठनों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 2016 में
पीपुल्स कमिशन ऑन श्रिंकिंग डेमोक्रेटिक स्पेस इन इंडिया (पीसीएसडीएस) गठित कर भारत में सिकुड़ते लोकतंत्र के दायरे पर जन आयोग (पीसीएसडीएस) 11 अप्रैल से 13 अप्रैल, 2018 के बीच, भारत में शैक्षिक संस्थानों पर हमलों पर पहला  पीपुल्स ट्रिब्यूनल का आयोजित किया, जिसमें  देश के 17 राज्यों के 50 संस्थानों और विश्वविद्यालयों के लगभग 130 छात्रोंऔर संकायों के द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुत किये गए , 49 ने मौखिक गवाहियां दी।

ज्यूरी पैनल में पूर्व न्यायमूर्ति होसबेट सुरेश, पूर्व न्यायमूर्ति
बीजी कोलसे पाटिल, प्रो अमित भादुड़ी, डॉ उमा चक्रवर्ती, प्रो टीकेओमेन, प्रो वासंती देवी, प्रो घनश्याम शाह, प्रो मेहर इंजीनियर, प्रोकल्पना कन्नबीरन और सुश्री पामेला फिलिप जैसी विख्यात हस्तियाँ शामिल थी।

ज्यूरी पैनल के सामने 17 विशेषज्ञों ने शिक्षा में निजीकरण ओर वैश्वीकरण शिक्षा के निजीकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव, इतिहास और पाठ्यक्रम के विकृतिकरण , शिक्षा का भगवाकरण और विद्रुपन , विश्वविद्यलय परिसरों में  छात्र संघों के चुनाव, विरोध का
अपराधीकरण ,जाति लिंग क्षेत्र धर्म के आधार पर शैक्षणिक संस्थाओं में भेदभाव आदि विषयों पर विचार व्यक्त किये ।

ट्रिब्यूनल के अंतिम दिन, शपथपत्रों एवं मौखिक गवाहियों के आधार पर जूरी पैनल द्वारा एक अंतरिमरिपोर्ट भी जारी की गई ।

जूरी ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला कि भारत में उच्च शिक्षा के विचार पर ही संस्थागत - सुनियोजित हमला किया जा रहा है ।  ज्यूरी के अनुसार उच्च शिक्षा के क्षेत्र मे  गत दशकों में संकट लगातार गहराता रहा है ,जो विशेषतौर पर गत 4 वर्षों में  गंभीर हो गया है । यह सुनियोजित तौर पर किया जा रहा है क्योंकि शिक्षित नागरिक ही सत्ताधीशों से  सवाल
पूछ सकते है ,जो  लोकतंत्र के गहरीकरण ओर विस्तारण के लिये आवश्यक है ।
इसलिए यह संकट केवल शिक्षा का ही नहीं वरन पूरे समाज का संकट है ।

शपथ पत्र और  गवाहियाँ के दौरान  शिक्षा के निजीकरण और वैश्वीकरण, शिक्षा के क्षेत्र में सरकार द्वारा बजट में कमी किया जाना , शुल्क बढ़ोतरी,अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को वित्तीय सहायता में कमी के परिणामस्वरूप इन समुदायों के हाशिये पर पहुँच जाना , विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता, स्व-वित्तपोषण पाठ्यक्रमों,छात्रवृत्ति में देरी ओर कम किया जाना प्रवेश प्रक्रिया का केन्द्रीयकरण
,राज्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की खस्ता  स्थिति आदि मुद्दों को
रेखांकित किया गया।

गवाहियों के दौरान यह खुलासा हुआ कि हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा
सुनियोजित तौर पर  पाठ्यक्रम का भगवाकरण किया जा रहा है । इसके चलते संवैधानिक मूल्यों – धर्मनिरपेक्ष संस्कृति  ओर लोकतान्त्रिक मूल्यों पर कुठाराघात हो  रहा है। यह भी स्पष्ट हुआ कि विश्वविद्यालयों कि स्वायतता को सत्ताधीशों द्वारा अपने लोगों को बैठा कर सवाल पूछने वाले तथा विरोध कि आवाजों को कुचला जा रहा है ।विभिन्न छात्रों ओर संकायों ने बताया कि छात्र संघ के चुनावों के दौरान को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संघ से जुड़े छात्र संघों के पक्ष में दवाब डाला जाता है ।
चुने हुए छात्र संघों को स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने दिया जा रहा है तथा विरोध का दमन व अपराधीकरण किया जा रहा है।

एफटीआईआई, जेएनयू,एचसीयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, बीबीएयू, पंजाब विश्वविद्यालय,टीआईएसएस, गौहाटी विश्वविद्यालय छात्रों, संकायों ने बताया कि उन्हें किस तरह से सुनियोजित तौर पर प्रताड़ित किया जा रहा है  तथा अपराधिक तौर तरीके अपनाकर विरोध को खत्म करने कि कोशिश की जा रही है। राष्ट्रद्रोह, आगजनी, दंगे फ़ैलाने दंगों से जुड़े आरोप लगा कर फर्जी मुकदमें दर्ज कराए जा रहे हैं ।

अनु.जा., जन जाति विरोधी नीतियों को अपनाये जाने के चलते इन समुदायों के छात्र असुरक्षित हो गए हैं तथा उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया है तथा उनके साथ भेदभाव लगातार  बढ़ता जा रहा है ।

शैक्षणिक संस्थाओं में यौन प्रताडना से संबंधित प्रकरणों में लगातार वृद्धि हो रही है । क्योंकि शैक्षणिक संस्थायें कानूनी ओर नीतिगत प्रावधानों को परिसरों में लागू नहीं कर रही है ।विशेष तौर पर पूर्वोत्तर और कश्मीरी छात्रों को प्रताड़ित किये जाने उनके साथ भेदभाव किये जाने तथा हिन्दूवादी ताकतों द्वारा शैक्षणिक संस्थाओं के वातावरण को सांप्रदायिक बनाया जा रहा है । उत्तर पूर्व और कश्मीर के छात्रों को विशेष तौर पर निशाना बनाया जा रहा है जो कि
समाज में बढती साम्प्रदायिक  हिंसा से जुडा हुआ है।

जूरी ने शैक्षणिक संस्थाओं में चौतरफा संकटों पर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त हुए कहा कि यदि इन्हें तुरंत संबोधित नहीं किया गया तो भारत की उच्च शिक्षा को ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरे पैदा हो जायेंगे।

अनिल चौधरी
संयोजक
(पी.सी.एस.डी.एस)
मोबा. 9811119347

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