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Showing posts with the label किसान क्रांति

वे कहीं नहीं जा रहे, शासको!...

            किसानों की घर-वापसी                                                        -- अशोक प्रकाश वे कहीं नहीं जा रहे शासको, तुम्हारी परीक्षा ले रहे हैं तुम्हें लोकतांत्रिक होने का एक और मौका दे रहे हैं... मुग़ालते में मत रहना जुमलेबाजी और मत करना! ये देश असल में किसानों का है मजदूरों मेहनतकशों नौजवानों का है देश में जुमलेबाज नहीं रहेंगे काम चलेगा किसान मजदूर नौजवान बिना आखिर देश क्या रहेगा? जनद्रोही होने से डरना फिर विश्वासघात मत करना! तुम्हें पता है वे झूठ नहीं बोलते नमकहराम पूंजीपतियों की तरह मनुष्य को मुनाफ़े के तराजू पर नहीं तौलते... किसान आंदोलन के मोर्चों पर शहीद हुए किसानों को याद रखना किसानों के दिलों में- 'तुम्हीं सचमुच देशद्रोही हो' पैदा करने से बचना! हाँ, वे कहीं नहीं जा रहे शासको, हजारों साल से इस धरती को शस्य-श्यामला उन्होंने ही बनाया है देश की सारी प्रगति उनके ही खून-पसीने की माया है... तुम्हारे मित्र और तुम्हारे मित्रों के मित्र मुनाफ़ाखोर हैं, धूर्त हैं, लुटेरे हैं हो सके तो समझना किसान मजदूर नौजवान ही देश के पहले हक़दार हैं, उ

सावधान, किसान फिर धोखा खा सकता है!

                                  सावधान!            शासकवर्ग बड़ा चालाक है!   किसान आंदोलन ने एक बार और जनता की अपराजेयता की तरफ इशारा किया है। हमारे देश के लोग जितना जल्दी इस इशारे का महत्त्व समझ जाएं, उतना ही हितकर! देश के शासकों को, बड़े शूर-वीर बनने और खुद को भगवान समझने वाले शासकों को भी यह बात समझ लेना चाहिए। ' जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा!' - के नारे की सच्चाई को भी उन्हें समझना और उस पर समझदारी दिखाना चाहिए। यह कोई जुमला नहीं। ऐसा इतिहास हमें बताता-सिखाता है। यह राजाओं-महाराजाओं, बादशाहों की गुलामी का दौर नहीं है, इसका भी शासकों के साथ-साथ शासितों को भी अहसास करना चाहिए। जनता अगर सचमुच  किसी निज़ाम के खिलाफ  उठ खड़ी होगी  तो शासकों की हार तय है। फौजें भले न जीत सकें, जनता देर-सबेर जीतती ही है।                 वर्तमान किसान आंदोलन का मतलब तीन किसान विरोधी कानूनों की वापसी और किसानों और समर्थक आम जनता की विजय तो है ही, कॉरपोरेट और उसकी पक्षधर सरकारों के लिए सीख भी है। इतिहास जानता है कि कम्पनीराज के नुमाइंदों ने कहने और लिखने से ज़्यादा अपने मुनाफ़े के व्यापार

अनदेखी पड़ेगी महँगी

                  किसान आंदोलन की अनदेखी                                  पड़ेगी महँगी   कोई समझे या न समझे! कोई माने या न माने! देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दुनिया की जनता की दुश्मन नम्बर एक सिद्ध हो रही हैं। पूँजी के बल पर ज्ञान-विज्ञान पर कब्ज़ा कर अपने मुनाफ़े के लिए वे मानव-जीवन के साथ लगातार खिलवाड़ कर रही हैं। #भोपाल_गैस_त्रासदी उनके इसी मानवद्रोही खेल का नतीज़ा थी। अपने देश में ही लाखों पेड़ों का काटा जाना, बक्सवाहा जैसे प्राकृतिक वातावरण को अक्षुण्ण रखने वाले जंगलों को नष्ट किया जाना, शहरों से लेकर गाँवों तक तक रासायनिक तत्त्वों और खतरनाक विकिरण के माध्यम से जन-जीवन को दाँव पर लगाना- सब पूंजीपतियों और उनकी सर्वग्रासी कम्पनियों की करतूतों के चलते हो रहा है। भोपाल गैस काण्ड के हत्याओं के दोषियों को सरकारों ने बचा लिया। अपनी कुर्सी के लिए नेताओं की ऐसी करतूतें देशद्रोह क्यों नहीं कही जानी चाहिए?             संयुक्त किसान मोर्चा ने भोपाल गैस काण्ड को याद करते हुए कम्पनीराज के पक्ष में खड़ी वर्तमान भाजपा सरकार को यह याद दिलाया है कि किसान आंदोलन को मिल रहे व्यापक जन समर्थन की अनदे

बहाना न बनाए सरकार...

                जारी है किसान आंदोलन,                      जारी रहेगा! ★ विरोध कर रहे किसानों की लंबित मांगों के संबंध में स्वीकृति के किसी भी औपचारिक वार्ता के बिना भारत सरकार उन्हें मोर्चों पर बने रहने के लिए मजबूर कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि उनके पास विरोध कर रहे किसानों की मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं है - किसान सकारात्मक कार्रवाई और उनकी जायज़ मांगों को पूरा किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ★ भाजपा-जजपा नेताओं का बहिष्कार जारी है - उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला गांव में प्रवेश न कर सके, इसके लिए जींद (हरियाणा) के उचाना के धरौली खेड़ा गांव में बड़ी संख्या में किसान जमा हुए ★ जहाँ सरकार कह रही है कि उसके पास प्रदर्शनकारी किसानों की मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है, एसकेएम याद दिलाता है कि पिछले साल औपचारिक वार्ता के दौरान शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकार के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर मौन धारण किया था - आंदोलन के पास सभी आंदोलन के वीर शहीदों का रिकॉर्ड हैं और शहीदों के परिजनों के पुनर्वास की मांग पूरी करने के लिए सरकार का इंतजार रहा है:संयुक्त किसान मोर्चा

मानव-सभ्यता के संघर्ष की एक कड़ी है किसान आंदोलन

                       किसान आंदोलन:              और आगे बढ़ेगा    अभी और जीतें हासिल होंगी किसान आंदोलन को। लेकिन इससे आंदोलन खत्म करने के शासकों के मंसूबे पूरे नहीं होंगे। कारण, पूरे देश के प्राकृतिक सांसधनों, विशेषकर जीवन के आधार खेती पर गिद्धदृष्टि लगाए कॉरपोरेट घरानों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंपने की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रक्रिया चला रखी है उससे देश की बहुसंख्यक आबादी की दुर्दशा होनी ही है। किसान आंदोलन धीरे-धीरे कॉरपोरेट-गुलामी के खिलाफ उभर रहे जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है। और यह स्वाभाविक है। मानव-जीवन को दाँव पर लगाकर अधिकाधिक मुनाफ़ा कमाने की पूंजीपतियों की होड़ कॉरपोरेट-राज के खात्मे पर ही खत्म हो सकती है। इसलिए यह संघर्ष अवश्यंभावी है।          किसान आंदोलन का हर कदम इस मानवोचित संघर्ष की अगली कड़ी है। शासक सुधर जाएं तो अलग बात है। पढ़ें संयुक्त किसान मोर्चा की हालिया प्रेस-विज्ञप्ति: ★ 26 नवंबर 2021 को भारत के लाखों किसानों के लगातार संघर्ष के 12 महीने पूरे होने पर देशभर में बड़े कार्यक्रमों की तैयारी जारी - 25 नवंबर को हैदराबाद में एक महाधरना होगा - सर छोटू राम की जयंती क

कविता की भाषा में किसान आंदोलन

             क्या है किसान आंदोलन ?                               - अशोक प्रकाश 1. हम पर न दया करो, न तरस खाओ हमारा हक़ छीना जा रहा है, हमारे साथ आओ!.. 2. खाद-बीज-बिजली-डीज़ल-कीटनाशक सब पर जिनका अधिकार है, किसान की मेहनत के लुटेरे हैं वे, इन मुनाफाखोरों का किसान शिकार है!... 3. सबको अपनी उत्पादन-लागत-मेहनत के अनुसार मुनाफ़ा तय करने का अधिकार है, ये कौन सी नीति है, किसान की लागत, कीमत, मुनाफ़ा पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधिकार है?...  4. जब किसान को मिलेगी सुनिश्चित आय कर्जा-मुक्त होंगे जब सभी किसान फसल का मिलेगा पूरा दाम जब देश में होगा  किसान का तब असली सम्मान!..  5.   विकास का सारा मतलब उलटा समझाया गया है चंद लोगों के विकास को किसानों का, जनता का विकास बताया गया है... ऐसा कब तक और क्यूँ चलेगा? किसी का एंटिला देखकर बेरोजगार नौजवान कब तक बहलेगा??...                           ★★★★★★★ हिन्दी साहित्य

'शर्म उनको मगर नहीं आती...'

                    झूठ का राज कब तक चलेगा? क्या गाजीपुर बॉर्डर गए हैं आप?.. टिकरी और सिंघु बॉर्डर? सवाल किसानों, किसान आंदोलनकारियों से नहीं- किसान आंदोलन के उन समर्थकों और विरोधियों से है जो पूरी हकीकत से नहीं वाकिफ़! नहीं गए लेकिन इस बात में उत्सुकता है कि सरकार किसानों से कितना भयभीत है या भयभीत होने के बहाने उन्हें डराने-धमकाने की नाकाम कोशिश किस तरह कर रही है तो बिना समय गंवाए एक-दो दिन में वहां पहुंच जाइए और देखिए कि हुक्मरानों का लोकतंत्र और देश की जनता पर कितना विश्वास है!..और तब जब सच और झूठ के अंतर्विरोधों से घिरी सरकार को किसान आंदोलन ने बखूबी बेनकाब कर दिया है, आपको किसान आंदोलन की अहमियत का पता लग जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा की यह प्रेस-विज्ञप्ति आपकी मदद करेगी!..  ★ संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर मांग करता है कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड की जांच सीधे सर्वोच्च न्यायालय के मातहत की जानी चाहिए ★ कृषि आत्महत्याओं पर भारत सरकार का एनसीआरबी डेटा पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि दर्शाता है - संयुक्त किसान मोर्चा की मांग है कि किसानों के संकट को दूर

क्या हिंसा से दबा दिया जाएगा किसान आंदोलन?

                            हिंसा और बदले की कार्रवाई से                     किसान आंदोलन को             खत्म करने की कोशिश यह कोई नई बात नहीं है, न ही अजूबी है। शासकवर्ग जनता के आंदोलनों को ख़त्म करने, बदनाम करने, लाठियाँ-गोलियाँ  बरसाने की कोशिशें अंग्रेजों के जमाने से और उससे भी पहले से करता रहा है। सुई की नोक बराबर भी जमीन की मांग न स्वीकार करने, महाभारत रचने, प्रतिभाशाली धनुर्धरों का अंगूठा काट लेने, विरोधियों के सिर हाथियों से कुचलवा देने अथवा जिंदा ही दीवार में चिनवा देने आदि-आदि बर्बर काण्डों की कहानियों से हम परिचित हैं। बहादुर शाह जफर के बेटों के सिर काटकर तस्तरी में पेश करने, जलियांवाला बाग काण्ड से लेकर न जाने कितने क्रूरतम कारनामे इतिहास में दर्ज़ हैं। अपनी सत्ताओं को बनाने और बचाने के लिए शासकों ने कितनी तरह की यातनाएं विरोधियों को दी है, मानव सभ्यता के विकास का रक्तरंजित इतिहास उसका गवाह है।...         लेकिन परिणाम क्या रहा?.. बर्तोल्त ब्रेख्त याद आते हैं:  'जिन्होंने नफ़रत फैलाई, क़त्ल किए और खुद खत्म हो गए नफ़रत से याद किए जाते हैं... जिन्होंने मुहब्बत का सबक पढ़ाया और

और तेज होगा किसान आंदोलन!..

                  मशाल जल रही है,            जलती रहेगी! ★ एसकेएम ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड के संबंध में किसान आंदोलन की मांगों को पूरा करने के लिए कार्यक्रमों की एक श्रृंखला की घोषणा की - 12 अक्टूबर को पूरे भारत में प्रार्थना और श्रद्धांजलि सभाओं और मोमबत्ती मार्च के साथ शहीद किसान दिवस के रूप में चिह्नित किया जाएगा - 15 अक्टूबर को दशहरा के दिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भाजपा के स्थानीय नेताओं का पुतला दहन - 18 अक्टूबर को पूरे देश में रेल रोको - 26 अक्टूबर को लखनऊ में महापंचायत ★ एसकेएम ने नोट किया कि आशीष मिश्रा टेनी आज पूछताछ के लिए पेश हुए - एसकेएम अजय मिश्रा टेनी सहित दोषियों की गिरफ्तारी की प्रतीक्षा कर रहा है ★ एसकेएम ने अज्ञात व्यक्तियों द्वारा महाराष्ट्र के किसान नेता सुभाष काकुस्ते पर हमले की निंदा की दिनाँक 9 अक्टूबर, 2021 को नई दिल्ली में प्रेस क्लब में एक विशेष रूप से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में, कई एसकेएम नेताओं ने मीडिया को संबोधित किया और लखीमपुर खीरी किसान नरसंहार में किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए योजनाओं को साझा किया। भ

बेरोजगार किसान आंदोलन से क्यों जुड़ रहे हैं?

बेरोजगारी और किसान आंदोलन                       ख़त्म होते रोजगार के अवसर और            किसान आंदोलन की उम्मीदें आजादी के बाद डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों और असली आज़ादी के लिए शहीद भगत सिंह जैसे नौजवानों की कुर्बानियों के चलते जो कुछ रोटी-रोजगार के साधन हमें हासिल भी हुए थे, आज एक-एक कर छीन लिए जा रहे हैं। देशी-विदेशी कम्पनियों के मुनाफों की चिंता करने वाली सरकारें निजीकरण के नाम पर न केवल पहले से हासिल नौकरियां और रोजगार खत्म कर रही हैं जिससे आरक्षित वर्गों के आरक्षण अपने आप खत्म हो रहे हैं, बल्कि व्यापक जनता की आजीविका के साधन खेती योग्य जमीनों, पहले से स्थापित सार्वजनिक उद्यमों, सरकारी संस्थानों को भी खत्म कर पूँजीपतियों और विदेशी कंपनियों के हवाले कर रही हैं। बैंक, बीमा, परिवहन, रेलवे, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय सहित तमाम सार्वजनिक उपक्रम पूरी बेशर्मी के साथ प्राइवेट हाथों में सौंपने का ही नतीजा है कि शिक्षित-अशिक्षित सभी प्रकार के नौजवान-मजदूर-किसान बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।             बेरोजगारी आज समाज के सभी मेहनतकश वर्गों की एक मुख्य और विकराल समस्या है। पढ़े-लिखे लोगों

खेती पर कम्पनियों के नियंत्रण के खिलाफ संसद मार्च

                                नये दौर में पहुँचा                     किसान आंदोलन संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन कॉर्पोरेट अधिग्रहण की चपेट में जाने की संभावनाएं दिख रही है - हम भारत में इसी के खिलाफ संघर्ष कर रहे है:                                -- संयुक्त किसान मोर्चा जैसा कि पहले ही घोषित किया जा चुका है, संयुक्त किसान मोर्चा मानसून सत्र के सभी कार्य दिवसों पर संसद के पास विरोध प्रदर्शन की अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। हर दिन 200 प्रदर्शनकारियों द्वारा इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया जाएगा और किसान यह प्रदर्शित करेंगे कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को किस तरह से चलाया जाना चाहिए। एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की। योजनाओं को व्यवस्थित, अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। 200 चयनित प्रदर्शनकारी सिंघू बॉर्डर से प्रतिदिन पहचान पत्र लेकर रवाना होंगे। एसकेएम ने यह भी कहा कि अनुशासन का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वर्तमान किसान आं

IDEA या किसानों की ज़िंदगी का समझौता?

                            क्यों कर रही सरकार              किसानों की ज़िंदगी से खिलवाड़? संयुक्त किसान मोर्चा ने आगाह किया है कि भारत सरकार को अपनी योजनाओं की भारी खामियों को अनदेखी करके, और बगैर पूर्ण परामर्श और उचित लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के कृषि में अपनी आईडिया डिजिटलीकरण (IDEA Digitisation) योजना में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। सरकार को विभिन्न कंपनियों के साथ वर्तमान समझौता ज्ञापनों को वापस लेना चाहिए। भाजपा-आरएसएस सरकार किसान आंदोलन की जायज मांगों को पूरा करने के बजाय साफ तौर से अहंकार के खेल में लिप्त है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि सरकार तीन काले कानूनों को निरस्त नहीं करे और सभी किसानों के लिए एमएसपी की गारंटी के लिए एक कानून न लाए। यह स्पष्ट है कि भाजपा के अपने नेता या तो कानूनों के बारे में चिंतित हैं या किसान आंदोलन के परिणामस्वरूप पार्टी के भविष्य के बारे में चिंतित हैं। हरियाणा के पूर्व मंत्री संपत सिंह ने हरियाणा भाजपा अध्यक्ष ओपी धनखड़ को पत्र लिखकर और पत्र को सार्वजनिक कर भाजपा हरियाणा राज्य कार्यकारिणी समिति में अपने  पद को ठुकरा दिया। इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से किसान आं

किसानों-बेरोजगारों का धरना-योग बनाम सरकारी-चमत्कारी योग-दिवस!!

Yog माने पेट भरने का जोग!                               किसान-बेरोजगार का हठयोग योग से किसी को न तो वैर है, न किसी को इस पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानना चाहिए। वह बाबा रामदेव हों या गली मोहल्ले में आजकल योग की दुकान खोले अन्य बाबा और उनके चेले-चपाटे! योग जीवन की एक सामान्य शारीरिक क्रिया है, कार्य करने के क्रम में होने या किया जाने वाला व्यायाम है। इसकी किसी मेहनतकश को नहीं, खाए-अघाए लोगों को ही विशेष जरूरत पड़ती है। तो क्या योग का अति प्रचार भी जनता के अन्य जरूरी मसलों से ध्यान हटाने का माध्यम है?...या स्वास्थ्य/लोक कल्याण कार्यक्रमों से पूरी तरह पल्ला झाड़कर वही तथाकथित 'आत्मनिर्भर बनो' योजना?...ताकि लोग व्यवस्था पर सवाल न उठा योग न कर सकने की अपनी नियति पर ही अफ़सोस कर चुप रह जाएं?... शायद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग का ढोल पीटने के पीछे भी उस 'नई विश्व व्यवस्था' का आदेश है जिसमें पूरी दुनिया को एक डंडे से हाँकने की व्यवस्था की जा रही है!..        योगदिवस पूरे धूमधाम से मनाया गया। कितना सरकारी (जनता का) पैसा इसके प्रचार-प्रसार पर लगा, इसका हिसाब शायद ही कभी कोई दे। किसानों

संशोधित बिजली कानून जन-विरोधी क्यों है?..

                        संशोधित बिजली कानून                    लागू करने की निंदा  संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिल्ली की सीमाओं पर चलाए जा रहे किसान आंदोलन के 200 पूरे होने पर मोर्चा ने किसानों को मिलने वाली बिजली सब्सिडी के संबंध में भारत सरकार के द्वारा किए गए नीतिगत बदलावों की कड़ी निंदा की है। मोर्चा का कहना है कि यह कदम न केवल किसान विरोधी है, बल्कि आम जन विरोधी भी है। जैसा कि हम जानते है हाल ही मे वित्त मंत्रालय ने उन राज्यों को हताश किया है जो कृषि और किसानों को बिजली सब्सिडी प्रदान करते हैं। मंत्रालय ने कृषि संबंधी कुछ शर्तों के आधार पर राज्य सरकारों को अतिरिक्त ऋण देने का फैसला किया है यह शर्तें कुछ इस प्रकार है: इसमें उन राज्यों को अधिक अंक देने का प्रावधान है, जिनके पास कृषि कनेक्शन के लिए बिजली सब्सिडी नहीं है या कृषि मीटर खपत पर सब्सिडी नहीं है या इससे संबंधित खाता ट्रांसफर प्रणाली नहीं है।  किसान आंदोलन की प्रमुख मांगों में से एक, केंद्र सरकार द्वारा विद्युत संशोधन विधेयक 2020 के कानूनी रास्तों के द्वारा प्रयास करने के संदर्भ में किया गया है जिसमें कृषि में बिजली सब्सिडी

मुक्केबाज स्वीटी ने क्यों किसानों को समर्पित किया चैंपियनशिप का पदक?

      काला कानून, कितना काला!                     किसान आंदोलन की                        परीक्षा  एवं सफलताएं                                      Boxer  Saweety Boora                                             Ph oto Courtesy: merisaheli.com  किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं सहित देश के कोने-कोने में तीन कृषि सम्बन्धी कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन और धरने जारी हैं, उसी तरह शासकों के साथ-साथ प्रकृति द्वारा भी उसकी परीक्षाएँ जारी हैं। मुसीबतों और अड़चनों के बावजूद धैर्य और दृढ़ता से किसान इनका सामना कर रहे हैं! संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के क्रम में शाहजहांपुर बॉर्डर को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा। इस तूफान के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा ने समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया है कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्

तो सांसद-विधायकों से होगा सीधा टकराव?..

     काला कानून, कितना काला!                                                    लंबी लड़ाई के लिए                तैयार हो रहे किसान ★ भाजपा सांसद, विधायक व जनप्रतिनिधियों के दफ्तरों के सामने किसान जलाएंगे कानूनों की प्रतियां ★ पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनकी पुण्यतिथि पर किसानों द्वारा श्रद्धांजलि ★ पंजाब के दोआबा से किसानों का बड़ा जत्था आया ★ पंजाब में किसान आंदोलन के 8 महीने पूरे : 100 से ज्यादा जगह पक्के मोर्चे ★ किसानों की लंबे संघर्ष की तैयारी : सभी तरह के इंतजाम कर रहे किसान तीन कृषि कानूनो के खिलाफ  देश के किसानों की लंबी लड़ाई चल रही है। पंजाब का इस लड़ाई का अहम योगदान है। पिछले साल सितम्बर से पंजाब में मोर्चे लगने लग गए थे। आज पंजाब में आंदोलन शुरू हुए 8 महीने हो गए है। पंजाब के किसानों के संघर्ष का परिणाम है कि राज्य में किसी भी टोल प्लाजा पर टैक्स नहीं लिया जा रहा है। पंजाब के किसान ना सिर्फ सरकारों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे है, बल्कि देश के बड़े कॉरपोरेट्स घरानों के खिलाफ भी बड़ी जंग छेड़े हुए है। किसानों ने हर मौसम में अपने आप को मजबूत रखते हुए सरकार व कॉर्पोरेट के खिल

बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और किसानों का 'काला दिवस'

              बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और                           किसानों का 'काला दिवस' संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के छह महीने पूरे होने के बाद भी शासकों द्वारा उनकी माँगे न माने जाने पर 26 मई को एक तरफ 'काला दिवस' मनाने का फ़ैसला किया है, दूसरी तरफ इसी दिन बुद्ध पूर्णिमा पड़ने के कारण 'बुद्ध पूर्णिमा' भी मनाने का आह्वान किया है। क्या इसके पीछे कोई रणनीति है या यह सिर्फ़ एक औपचारिकता के तौर पर ही कहा गया है?... क्या आंदोलन का गौतम बुद्ध के विचारों से कोई तालमेल भी है। अपरंच, क्या बौद्ध धम्म का किसी आंदोलन से कोई रिश्ता हो सकता है या यह भी मात्र एक धर्म है, धार्मिक सम्प्रदाय है? इन सवालों का बेहतरीन जवाब महापण्डित कहे जाने वाले और सच्चे बुद्धानुयायी राहुल सांकृत्यायन का जीवन और किसान आंदोलन में उनकी भूमिका को जानने-समझने से मिलता है। राहुल न केवल तत्कालीन किसान आंदोलन का साथ देते हैं बल्कि अमवारी के किसान आंदोलन का नेतृत्व भी करते हैं।  'किसानों, सावधान!' शीर्षक एक लेख में राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं, "किसानों की कठिनाइयां और कष्ट काल्पनिक नहीं है

क्या जनता नहीं, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपराजेय हैं?

          किसान-मजदूर आंदोलन के सामने                                   उठते सवाल   देश की आम जनता, विशेषकर किसान आंदोलन के सामने कुछ ज्वलंत सवाल खड़े हैं!...क्या मजदूर किसान आंदोलन से जुड़ेंगे?...अगर जुड़ेंगे तो किसान आंदोलन का स्वरूप क्या होगा? हाल ही में प्रवासी मजदूरों को किसान आंदोलन से जुड़ने का जो आह्वान किया गया था, उसका निहितार्थ क्या है? उसका क्या प्रभाव पड़ा?...क्या हमारे देश में प्रवासी मजदूरों के संघर्ष का कोई इतिहास है? इस नए अर्थात उदारीकरण के दौर में क्या मजदूर परम्परागत मजदूर रह गया है? क्या प्रवासी मजदूरों ने पिछले साल की विभीषिका से कोई सबक लिया है? लिया है तो क्या? - मालिकों के सामने गिड़गिड़ाकर किसी भी तरह, किसी भी शर्त पर काम पाना या कुछ और?...क्या किसान आंदोलन से उन्हें कोई उम्मीद है? ... ऐसे बहुत से सवाल शासकवर्ग से अलग सोच रखने वाले मजदूरों, किसानों, बेरोज़गारों, बुद्धजीवियों के सामने आज खड़े हैं। कोरोना ने इन सवालों को अगर अप्रत्यक्ष रूप से तीखा किया है तो बहुत से अन्य सवाल भी खड़े किए हैं। मसलन, प्रत्यक्ष दिखने वाला संकट क्या शासकवर्गों अपरंच साम्राज्यवादी शक्तियों का