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'शर्म उनको मगर नहीं आती...'

                   झूठ का राज कब तक चलेगा?


क्या गाजीपुर बॉर्डर गए हैं आप?.. टिकरी और सिंघु बॉर्डर? सवाल किसानों, किसान आंदोलनकारियों से नहीं- किसान आंदोलन के उन समर्थकों और विरोधियों से है जो पूरी हकीकत से नहीं वाकिफ़! नहीं गए लेकिन इस बात में उत्सुकता है कि सरकार किसानों से कितना भयभीत है या भयभीत होने के बहाने उन्हें डराने-धमकाने की नाकाम कोशिश किस तरह कर रही है तो बिना समय गंवाए एक-दो दिन में वहां पहुंच जाइए और देखिए कि हुक्मरानों का लोकतंत्र और देश की जनता पर कितना विश्वास है!..और तब जब सच और झूठ के अंतर्विरोधों से घिरी सरकार को किसान आंदोलन ने बखूबी बेनकाब कर दिया है, आपको किसान आंदोलन की अहमियत का पता लग जाएगा।

संयुक्त किसान मोर्चा की यह प्रेस-विज्ञप्ति आपकी मदद करेगी!..

 ★ संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर मांग करता है कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड की जांच सीधे सर्वोच्च न्यायालय के मातहत की जानी चाहिए

★ कृषि आत्महत्याओं पर भारत सरकार का एनसीआरबी डेटा पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि दर्शाता है - संयुक्त किसान मोर्चा की मांग है कि किसानों के संकट को दूर करने के लिए 3 किसान विरोधी कानूनों को निरस्त करने और लाभकारी एमएसपी कानून लागू किया जाये

★ पुलिस टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर मोर्चों पर कुछ बैरिकेड को हटा रही है, एसकेएम नेताओं ने कहा कि वे सही साबित हुए हैं कि पुलिस ही सड़कों को अवरुद्ध कर रही थी

संयुक्त किसान मोर्चा संज्ञान लेता है कि, जहां लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड की संवेदनशील जांच धीमी गति से चल रही है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने भी नोट किया है, उत्तर प्रदेश सरकार प्रमुख अधिकारियों के तबादले कर रही है। राजनीतिक कारणों से हो रहे ये तबादले, शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर रहे किसानों के बर्बर नरसंहार में जांच और न्याय की आवश्यकता को और अधिक प्रभावित कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में जहां अपराधी मंत्री अजय मिश्रा टेनी या प्रधानमंत्री के पास हितों के टकराव को दूर करने, और वास्तव में अजय मिश्रा टेनी को लखीमपुर खीरी नरसंहार के सूत्रधार के रूप में गिरफ्तार करने में कोई अड़चन नहीं है, एसकेएम उम्मीद करता है कि सुप्रीम कोर्ट इन तबादलों और उन्हें क्यों किया जा रहा है, पर भी गौर करेगा इस बीच आशीष मिश्रा को मिल रहे वीआईपी ट्रीटमेंट की खबरें आ रहीं हैं। एसकेएम ने एक बार फिर मांग की है कि इस मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए पूरी जांच की निगरानी सीधे उच्चतम न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए।

कल से दिल्ली पुलिस प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ सड़कों पर लगाए गए बैरिकेड्स और विभिन्न अन्य बाधाओं को हटाने के लिए विशेष प्रयास कर रही है। ऐसा टिकरी मोर्चा के साथ-साथ गाजीपुर मोर्चा पर भी हो रहा है। यह सर्वविदित है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के साथ ऐसा व्यवहार किया है जैसे कि वे भारत के दुश्मन हैं और देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं; पुलिस ने विशाल सीमेंट बोल्डर, धातु के बैरिकेड्स की 9 परतें, सड़कों पर रेत के ट्रक लगाकर और सड़क पर कीलों की कई परतों को ठोक कर मोर्चा स्थल को किलेबंद किया है। नवीनतम आख्यान में, जाहिर तौर पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय को प्रभावित करने के लिए, इन बैरिकेड्स को आंशिक रूप से हटाने का काम किया जा रहा है। एसकेएम इन घटनाओं पर नज़र रखे हुए है, और भाजपा सरकार के युद्धाभ्यास को देख रहा है।

एसकेएम नेताओं ने यह भी कहा कि विरोध करने वाले किसान सही साबित हुए हैं - यह पुलिस है जिसने सड़कों को अवरुद्ध किया है और किसानों ने नहीं है । यही किसानों ने पहलें भी समझाने की कोशिश की थी। प्रदर्शनकारियों ने पहले भी यातायात की जगह दी थी और अब भी ऐसा ही किया जा रहा है ।

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा की अनाज मंडी में विशाल किसान महापंचायत हुई। इस सभा में नरसिंहपुर जिले और मध्य प्रदेश के अन्य जिलों के हजारों किसानों ने भाग लिया, जिसे एसकेएम के कई नेताओं द्वारा संबोधित किया गया। वक्ताओं ने मध्य प्रदेश के किसानों से ऐतिहासिक किसान आंदोलन में अपनी भागीदारी तेज करने, अपना भविष्य सुरक्षित करने, तीन किसान विरोधी कानूनों को निरस्त करने, और सभी कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी अधिकार प्राप्त करने का आग्रह किया।

संयुक्त किसान मोर्चा ने संज्ञान लिया कि भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2020 में कृषि आत्महत्या की संख्या 10,677 आंकी है। 2020 के भारत में दुर्घटना मृत्यु और आत्महत्याओं पर एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, इन आत्महत्याओं में से 5579 खेती करने वालों की हैं और 5098 खेतिहर मजदूरों की है। कृषि आत्महत्याओं की सबसे बड़ी संख्या महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से है। कृषि आत्महत्याओं की संख्या 2020 में देश में कुल आत्महत्याओं का 7% है। जहां वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में कृषि आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं कृषि आत्महत्याओं के आंकड़ों पर एनसीआरबी की रिपोर्ट की विश्वसनीयता की कई आलोचनाएं भी मौजूद हैं, और इसमें 2016 से कृषि आत्महत्याओं में गिरावट रिपोर्ट करने की प्रवृत्ति रही है। इन रिपोर्टों में शून्य कृषि आत्महत्याओं रिपोर्ट करने वाले कई राज्यों की विसंगति सर्वविदित है। जबकि यह सब कृषि आत्महत्याओं के संबंध में वास्तविक तस्वीर को दबाने के संदर्भ में है, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि देश में किसान जिस विकट कृषि संकट से गुजर रहे हैं, लॉकडाउन-प्रेरित कठिनाइयों के साथ ही वह भी बढ़ रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर मांग करता है कि भारत सरकार कॉर्पोरेट-समर्थक कानूनों को लाकर किसानों की स्थिति को बदतर न करे, और मांग करता है कि सरकार तीन किसान विरोधी कानूनों को तुरंत निरस्त करे। एसकेएम यह भी मांग करता है कि भारत सरकार सभी किसानों और सभी कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी गारंटी कानून तत्काल लागू करे। कृषि में लागत कम करने और बाहरी इनपुट निर्भरता से संबंधित कई अन्य लंबे समय से लंबित मुद्दों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के युग में प्राकृतिक आपदाओं सहित जोखिमों को कम करने और उनसे बचाव करने, कृषि में वास्तविक खेतिहरों का समर्थन करना आदि, को सरकारों द्वारा गंभीरता से संबोधित करने की आवश्यकता है।

पंजाब के बरनाला में किसानों ने भाजपा नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल के धान के खेत से जुड़ी एक घटना में प्रदर्शनकारियों पर दर्ज मामलों के खिलाफ आज विरोध प्रदर्शन किया और प्रदर्शनकारियों ने मामलों को बिना शर्त वापस लेने की मांग की। घटना जुलाई 2021 में बरनाला जिले के धनौला में ग्रेवाल के खेत में हुई थी।

प्रेसविज्ञप्ति जारीकर्ता--

बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह 

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