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खेती पर कम्पनियों के नियंत्रण के खिलाफ संसद मार्च

                                नये दौर में पहुँचा 

                  किसान आंदोलन


संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन कॉर्पोरेट अधिग्रहण की चपेट में जाने की संभावनाएं दिख रही है - हम भारत में इसी के खिलाफ संघर्ष कर रहे है: 

                             --संयुक्त किसान मोर्चा


जैसा कि पहले ही घोषित किया जा चुका है, संयुक्त किसान मोर्चा मानसून सत्र के सभी कार्य दिवसों पर संसद के पास विरोध प्रदर्शन की अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। हर दिन 200 प्रदर्शनकारियों द्वारा इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया जाएगा और किसान यह प्रदर्शित करेंगे कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को किस तरह से चलाया जाना चाहिए। एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की। योजनाओं को व्यवस्थित, अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। 200 चयनित प्रदर्शनकारी सिंघू बॉर्डर से प्रतिदिन पहचान पत्र लेकर रवाना होंगे। एसकेएम ने यह भी कहा कि अनुशासन का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

वर्तमान किसान आंदोलन ने हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने में बड़ा योगदान दिया है। किसान आंदोलन ने जन-केंद्रित मुद्दों को उठाने में अब तक एक सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाई है। हमारे नागरिकों के एक बड़ा हिस्सा होने के नाते किसान चुनी हुई सरकारों से जवाबदेही की मांग कर रहे हैं, और मांग कर रहे हैं कि सत्ता आम नागरिकों के करीब हो और सुलभ हो। किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार द्वारा कृषि और (कृषि) बाजार - जो राज्य सरकार के विषय हैं - पर कानून बनाने पर भारत सरकार को एक कड़ी चुनौती दी है। मौजूदा संघर्ष ने इस बात पर भी जायज सवाल खड़े कर दिए हैं कि नीति और कानून-निर्माण को नागरिकों के दृष्टिकोण, सरोकारों और अनुभवों के साथ कैसे जोड़ा जाना चाहिए। किसानों ने पहले से ही "कृषि बचाओ, लोकतंत्र बचाओ" के नारे दिए हैं। एसकेएम ने कहा कि 22 जुलाई से जंतर-मंतर पर विरोध जमीनी मुद्दों को उजागर करेगा और उम्मीद है कि सभी सांसदों को जारी किया गया पीपुल्स व्हिप यह सुनिश्चित करेगा कि हमारे मुद्दों को संसद के अंदर उठाया जाए।

आज भी संसद के मानसून सत्र के दूसरे दिन किसान आंदोलन की मांगें और नारे संसद में सुनाई दिए। एसकेएम सांसदों को याद दिलाना चाहता है कि करोड़ों किसान सांसदों को देख रहे हैं, और इस बात पर ध्यान दे रहे हैं कि पीपुल्स व्हिप का पालन किया जा रहा है या नहीं।

संयुक्त किसान मोर्चा भारत में खाद्य और कृषि प्रणालियों पर कॉर्पोरेट नियंत्रण, और नागरिकों के हितों की रक्षा की अपनी जिम्मेदारी और दायित्व से पीछे हटने वाली सरकार के खिलाफ लड़ रहा है। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र में एक अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया चल रही है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन (यूएनएफएसएस), की एक पूर्व-शिखर सम्मलेन बैठक 26 जुलाई से 28 जुलाई 2021 के बीच रोम में निर्धारित है, जबकि शिखर सम्मेलन सितंबर में अमेरिका में होगा। संयुक्त किसान मोर्चा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन पर कॉर्पोरेट प्रभाव को संज्ञान में लेता है। यूएनएफएसएस एक तरफ जहाँ खाद्य प्रणालियों में संकट के लिए "प्रकृति-सकारात्मक समाधान" की बात करता है, वहीँ खुद 'कॉर्पोरेट अधिग्रहण' के चपेट में जाने की संभावना में दिख रही है, जो स्वीकार्य नहीं है। इस तरह की प्रक्रिया का नेतृत्व किसानों और उपभोक्ता संगठनों सहित नागरिक समूह द्वारा किये जाने के बजाय, इसका नियंत्रण उन संस्थाओं द्वारा हाथ में ले लिया गया है जो दावोस में मुनाफे और धन संचय पर नजर गराये रहते हैं। ये संस्थाएं स्वदेशी ज्ञान और नवाचारों सहित जमीनी स्तर से विकसित प्रगतिशील अभिनव समाधानों का दिखावा करती हैं, मगर ऐसे समाधानों को कॉरपोरेट के लिए अधिक अवसर प्रदान करने के लिए संशोधित कर लिया गया है। दुनिया के नागरिक अब मुनाफे की भूखी निकायों की पर्यावरण के ढोंग और अन्य युक्तियों से मूर्ख नहीं बनेंगे। यह समय है कि हम सामूहिक रूप से अपनी खाद्य प्रणालियों को सामाजिक समानता, आर्थिक न्याय और आम नागरिकों और छोटे उद्यमों के लिए लाभप्रदता, पर्यावरणीय स्थिरता, पोषण सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और अल्पीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के पुनर्जनन, संसाधनों के नियंत्रण के लिए कृषक समुदाय आदि को प्राथमिकता देने के लिए सही करें। एसकेएम वास्तविक स्थानीय समाधानों के किसी भी तरह से पटरी से उतरने के खिलाफ चेतावनी देता है, साथ ही हमारे खाद्य प्रणालियों पर सामुदायिक नियंत्रण के लिए मौलिक संरचनात्मक बदलाव की पुनःपुष्टि करता है। यूएनएफएसएस प्रक्रियाओं में कॉरपोरेट सलाहकारों और अन्य लोगों के इशारे पर ऐसी स्थानीय स्थायी खाद्य प्रणालियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

इस बीच सिरसा में, एसकेएम और प्रशासन के बीच टकराव जारी - सरदार बलदेव सिंह सिरसा का आमरण अनशन तीसरे दिन में पहुँचा - एसकेएम ने एक बार फिर 5 गिरफ्तार किसानों की तत्काल रिहाई की मांग की - हरियाणा भाजपा और जेजेपी नेताओं को हर जगह काले झंडे के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

सिरसा में सरदार बलदेव सिंह सिरसा का अनिश्चितकालीन अनशन आज तीसरे दिन में प्रवेश कर गया है। कल प्रशासन और किसान प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई बैठक के बाद भी प्रशासन के साथ टकराव जारी है। एक मीटिंग सिरसा के प्रशासन के साथ आज भी हुई है जो फेल हो चुकी हैI 11 जुलाई 2021 को हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष रणबीर गंगवा के विरोध के बाद, 100 से अधिक किसानों के नाम पर झूठे मामले दर्ज किए गए, जिनमें राजद्रोह जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। एसकेएम की मांग है कि सभी मामले वापस लिए जाएं और गिरफ्तार किए गए पांच प्रदर्शनकारियों को तुरंत रिहा किया जाए। सिरसा में ही, उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को, उनके काफिले को रामायण टोल प्लाजा से डायवर्ट किए जाने के बावजूद, कल काले झंडे के विरोध का सामना करना पारा, जहां बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी प्रदर्शन कर रहे थे। चरखी दादरी में भाजपा की एक अन्य नेता बबीता फोगट को किसानों के काले झंडे के विरोध का सामना करना पड़ा।

चंडीगढ़ में गिरफ्तार किए गए तीन कृषि कार्यकर्ताओं को कल जमानत मिल गई। चंडीगढ़ पुलिस शनिवार दो भाजपा नेताओं के समबन्ध में हुई घटनाओं में गिरफ्तार लोगों की संलिप्तता नहीं साबित कर सकी, और परिणामस्वरूप जमानत दे दी गई। प्रदर्शनकारियों की ओर से लड़ने वाले वकीलों का समूह एफआईआर को रद्द करने के लिए भी आवेदन करेगा, जिसके कारण चंडीगढ़ पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर झूठे और मनगढ़ंत मामले दर्ज किए गए।

कर्नाटक में, किसान 21 जुलाई 2021 को गडग जिले के नरगुंड में 41वें शहीद स्मृति दिवस के रूप में मनाएंगे। 1980 में इसी दिन सरकार द्वारा किसानों पर लगाए गए तथाकथित "बेहतर कर" के खिलाफ आंदोलन में पुलिस फायरिंग में दो किसान मारे गए थे। एसकेएम के नेतृत्व में मौजूदा आंदोलन इस साल शहीद स्मारक में प्रमुखता से शामिल होगा।

प्रेसनोट जारीकर्ता:

 बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, हन्नान मुल्ला, जगजीत सिंह दल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहन, शिवकुमार शर्मा 'कक्काजी', युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव

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