रोजगार का संकट:
किसानी पर दबाव
बेरोजगारी अब पढ़े-लिखे नौजवानों और मजदूरों की ही समस्या नहीं रही। बड़ी संख्या में किसान भी साल में कम से कम छह महीने हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के लिए मजबूर हैं। विशेषकर लाकडाउन के बाद शहरों से हुए मजदूरों के पलायन ने हालात और बिगाड़ दिए। वे भी गाँवों में इसीलिए लौटे कि वहीं कुछ काम-धाम करके गुजारा कर लेंगे। पर किसानी की पहले से ही खस्ताहाल दशा ने उन्हें राहत से ज़्यादा मुसीबत दी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट बताती है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में 28.4 लाख रोजगार ख़त्म हो गए। शहरी क्षेत्रों में भी लगभग 5.6 लाख रोजगार खत्म हुए। इसका भी असर ग्रामीण क्षेत्र के रोजगार पर पड़ा।
किन्तु सरकारें बेरोजगार लोगों को सपने दिखाकर इससे निपटना चाहती हैं। अखबारों और टीवी चैनलों पर गरीब लोगों के मुस्कराते चेहरे दिखाने से रोजगार की स्थिति नहीं बेहतर हो जाती और न ही हर साल दो लाख रोज़गार के जुमले से। कई-कई साल बाद होनी वाली नियुक्तियों का इस तरह प्रचार किया जाता है कि लोगों को लगे अब सारी बेरोजगारी दूर हो गई है। लेकिन खेती पर कम्पनियों द्वारा आरोपित संकट इस बेरोजगारी की स्थिति को और भयावह कर रहा है। पूँजीपतियों का मुनाफा बढ़ने से किसान नहीं खुशहाल हो जाता। जिन चंद बड़े किसानों, कहना चाहिए फार्म हाउस मालिकों के आधुनिक तकनीक से मुनाफ़े के उदाहरण प्रचारित किए जाते हैं उससे दो एकड़ से कम किसानों को संतुष्ट नहीं हो सकते। उनका लागत मूल्य लगातार बढ़ता जा रहा है। उसके अनुसार एमएसपी की कानूनी गारंटी देने के सवाल पर सरकार कन्नी काट जाती है। सच तो यह है कि जब तक कॉरपोरेट मुनाफ़ा केंद्रित कृषिनीति में बदलाव नहीं होता और किसानी की लागत वास्तव में कम नहीं होती, छोटे किसानों की हालत खस्ता ही रहेगी।
किसी भी गाँव में जाइए, किसी से भी पूछिए, पता चलेगा कि खेती अत्यंत घाटे का सौदा बन चुकी है। किसान इसीलिए खेती कर रहे हैं कि उनके पास और कोई चारा नहीं है। 100 घरों की किसानों की आबादी में शायद ही कोई घर मिले जहाँ कोई न कोई किसान-पुत्र बेरोजगार न बैठा हो। कोरोना के नाम पर लोगों के छोटे-मोटे चलते-फिरते जो धंधे बंद कर दिए गए, उनसे खेतिहर मजदूरों की हालत अब और पतली होती जा रही है। किसान के भी मजदूरी के लिए कस्बों-शहरों की तरफ रुख करने से हालत और बुरे हो रहे हैं।
ऐसा कितने दिन तक चलता रहेगा, हुक़्मरानों?
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