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प्रेरणा ऐप के खिलाफ शिक्षकों की व्यथा-कथा


'प्रेरणा' ऐप के खिलाफ़
उभरता क्षोभ:

https://youtu.be/PXtlaq8_9Ug


             शिक्षकों का बढ़ता क्षोभ और उभरते कई सवाल

क्या बेसिक शिक्षा परिषद बन रहा है
 प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी ?...

प्रेरणा एक मामूली अप्लीकेशन है, अगर यह सोचकर आप भूल कर रहे हैं तो आप स्वयं अपने, अपने परिवार, समाज और देश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इस अप्लीकेशन पर बहुत सारे रिसर्च किये गये हैं। और इसको केन्द्र बिन्दु बना कर बेसिक शिक्षा परिषद को एक प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने की पूरी योजना तैयार कर ली गयी है। पिछले वर्ष *मानव सम्पदा* का जिन्न आपके सामने मात्र सूचना भर के नाम पर लाया गया। जिसको आप सब भांप नही पाये, फिर *ग्रेडेड लर्निंग* का पांच दिवसीय प्रशिक्षण देकर *प्रेरणा एप* लांच किया गया जिसे भी आप सब पुन: नही भांप पाये। 

अब यहीं से शुरू होता है....बेसिक शिक्षा को प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने का असली खेल। जिस परिषद के बच्चों को परीक्षा के लिए एक अदद गुणवत्ता युक्त प्रश्न पत्र नही मिलते थे, उसे ग्रेडेड लर्निंग के माध्यम से *ओएमआर और हाई ब्रान्ड का प्रश्न पत्र* दिया गया और परिणाम को प्रेरणा पर अपलोड किया गया। ....-आप लोग इसे भी भांप नही पाये।  




क्या यह बेसिक शिक्षा का निजीकरण है ??...

पैसा सरकार का, मेहनत आप सबकी। *बिचौलिया एनजीओ*!... एनजीओ के पास ना स्टाफ है, ना कर्मचारी और ना आफिस। सरकार से पैसा लेकर अधिकारियों से दबाव दिला कर उसने आपके बीच के ही शिक्षकों से मात्र पांच दिन का प्रशिक्षण करा कर *आपके सिर पर बैठ कर मानिटरिंग* करना शुरू कर दिया। सरकार का पैसा भी खर्च हो गया। किसी को नौकरी भी नही देनी पड़ी, कहीं से विरोध नही झेलना पडा। और पैसा को जहां पहुंचना था वह सही स्थान पर पहुंच भी गया।

किसी बेहतर व्यवस्था को चौपट करना हो तो उसका सबसे शानदार तरीका है वहां पर कार्यरत लोगों के बीच वेतन विसंगतियों की एक खाई खोद दो, जो कभी ना पट सके। मानक ऐसे बदल दो और कार्य समान लो कि वह आपस में ही लडते झगडते रहें। आज स्थिति आपके सामने है। प्राईमरी में सहायक अध्यापक और शिक्षामित्र,जूनियर में सहायक अध्यापक और अनुदेशक,कार्यालयों में नियमित लिपिक और आउट सोर्सिंग वाले आपरेटर। *अंग्रेजों ने तो गोरे काले का भेद किया था,फूट डालों राज करो* की पालिसी अपनायी थी। और आज तो अपनी चुनी हुयी सरकार ही अपने नागरिकों के बीच *लडाओ और राज करो* की राह पर चल रही है। क्या यही आजादी गांधी और भगत सिंह ने मांगी थी। संविधान में कल्याणकारी राज्य की संकल्पना है। जो अपने अपने नागरिकों के बीच किसी प्रकार का विभेद ना करे। पर हो क्या रहा है साहब! 

गरीबों के बच्चों के शिक्षा का निजिकरण करने की आप अलख जगा रहे हैं। फिनलैन्ड चले जाईए।यूनाईटेड स्टेट,यूके, कनाडा,जर्मनी और आस्ट्रेलिया चले जाईए। दुनिया के टाप क्लास के शिक्षा में अग्रणी देश हैं। प्रोफेसर से अधिक सेलरी प्राईमरी के शिक्षकों के पास है। विधायकों और सांसदों से अधिक कोटे प्राईमरी के शिक्षक के पास है। *उत्तर प्रदेश में तो प्राईमरी का मास्टर चोर है। यह आप और आपका सिस्टम रोज चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है।* क्योंकि सबसे सस्ती सेल आपके यहां है। जहां पर चार रूपये में भरपेट भोजन,तीन सौ रूपये में ड्रेस,दो सौ रूपये में स्वेटर सिर्फ प्राईमरी का मास्टर कमीशन के साथ देता है। जूता-मोजा,बैग आपने दिया। उसकी कीमत और गुणवत्ता आपको ही पता है। स्थिति आज यह है कि *अधिकांश स्कूलों के बच्चे दोनों पैर में अलग अलग नम्बर और कपडा कागज लगा कर जूते पहन रहे हैं।* क्या यह कडवा सच नही है। आप शिक्षकों को बदनाम इसलिए कर रहे हैं कि जनमानस में एक धारणा पैदा हो कि प्राईमरी स्कूल की जगह पब्लिक स्कूल में शिक्षा बेहतर मिलती है। गरीब अपना पेट काट कर अमीरों के स्कूलों में अपने बच्चों को पढाये और आप अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड कर शिक्षा का *निजीकरण कर बेसिक शिक्षा परिषद* को एक *प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बना सकें* जो गरीबों पर *इस्ट इण्डिया* की तरह कार्य करती रहे। 
         
        - प्रस्तुति: प्रतिभा वर्मा जैन, शिक्षक 'राष्ट्र निर्माता'★★★   

 
                                        चिन्ता बड़ी है!...

            हमारे जो साथी यह समझ रहे है कि प्रेरणा एप्प केवल समय से आने जाने भर के लिए बनी है उनसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया इस विश्लेषण को पूरा पढ़े और सरकार की गहरी साजिश को समझे।
देश मे महामन्दी की शुरुआत हो चुकी है। GDP ग्रोथ रेट कम हो गयी है,  अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में मंदी है , प्राइवेट सेक्टर से कर्मचारियों की छटनी चालू हो चुकी है । अब सरकारी क्षेत्रों से कर्मचारियों को निकालने की बारी है।
हमारे राज्य में यह काम होमगार्ड से चालू हो चुका है । अगली बारी प्राथमिक के शिक्षकों की है। चुकी प्राथमिक विद्यालय कोई फैक्ट्री तो है नही जिसका आउटपुट सरकार को दिखाई दे इसलिए सरकार हमे खजाने पर बोझ मानती है। हम लोग संख्या में अधिक है, हमारा वेतन भी अच्छा है और हमारा कोई भी ताकतवर  संग़ठन  नही है ,इसलिए हम लोगों की छटनी करना आसान है।
यहाँ माननीय मंत्री जी के बयान से दो बाटे स्पष्ट है-
1-  3 बार से ज्यादा अगर 2 मिनट भी विलंब हुआ तो बिना कारण बताओ नोटिस के या सस्पेंसन के सीधे टर्मिनेट कर दिया जाएगा।जिससे कि आपकी बात न सुननी पड़े और न ही आपको कोई कंपनसेशन देना पड़े।
2- इसके बाद अगर आप कोर्ट में जाये तो पहले तो 5 साल आपको  केस लड़ाने में खींच दे ताकि आपकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाये और बाद में यह कह दे कि साहब , ये इन्ही सेवा शर्तों पर काम कर रहे थे तो सेवा शर्तों के उल्लंघन के लिए इनकी बरख्शतगी की गई है।
साथियों, एक अनुमान के अनुसार अगर सरकार अगले वित्तीय वर्ष तक केवल 10000 शिक्षकों को प्रेरणा एप्प के माध्यम से कार्य मे लापरवाही बरतने के कारण नौकरी से निकाल दे सरकारी खजाने पर एक वर्ष में 5 अरब रुपये से ज्यादे का बोझ कम हो जाएगा।
फिर यही सरकार गार्गी योजना की तरह हर ग्राम सभा के 5 युवा लड़के लड़कियों को पोस्टग्रेजुएट और बीएड या btc है उनको 5000 रुपये मासिक पर उसी प्रथमिक विद्यालय पर नियुक्त कर देगी अर्थात एक अध्यापक के सैलरी से पूरे स्टाफ का वेतन। और इससे रोजगार देने का डेटा भी बढ़ जाएगा और वोट बैंक कि राजनीति भी सध जाएगी।
अगर 5 वर्ष के भीतर 50000 शिक्षकों को निकाल दिया जाए तो  25 अरब से ज्यादा रुपया खजाने का बचेगा और उससे उन्ही विद्यालयों पर 2.5लाख नए अध्यापक भर्ती किये जायेंगे और सरकार सीना फुला कर कहेगी की हमने इतनी बड़ी संख्या में ग्रामीण युवाओं को उनके गांव में ही  रोजगार दिया।
अब रही बात प्रेरणा एप्प के माध्यम से समय पर उपश्थिति देने की तो ये तो बस सुरुवात मात्र है। इसके बाद इससे ग्रामीणों को जोड़ा जाएगा जो हमेशा आपकी शिकायत करेंगे उस आधार पर आपको टर्मिनेट किया जाएगा।
फिर आपसे कहा जायेगा कि आप विद्यालय का टाइम टेबल लोड करें,पाठ्योजना लोड करें, क्लास में ब्लैक बोर्ड पर लिखते हुए पिक्चर लोड करें, smc मीटिंग , MDM है ही , इसके अलावा अन्य कार्यों की पिक्चर लोड करें, दिन में विद्यालय बन्द होने के बाद अन्य कार्य आपको दिए जाएंगे यानी कि किसी न किसी कार्य मे आपकी लापरवाही दिखा कर आपको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
अगर आप बहुत सावधानी से हर कार्य पूरी कर्मठता से काम कर रहे है तो 3 साल बाद आपको अपने विद्यालय से हटाकर कही दूरदराज के क्षेत्र में भेज दिया जाएगा और आपके लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा। यानी 3 से 5 साल के भीतर कुछ न कुछ लापरवाही हो ही जाएगी और आप बाहर, वो भी बिना किसी हर्जाने , बेनेफिट या फण्ड के।
आपके जीवन के मध्यकाल में जब आपके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी रहेगी, बच्चों का भविष्य बनाना रहेगा आपकी जेब और नौकरी दोनों खाली रहेगी।
सरकार के इस गेमप्लान में मीडिया भी पूरा साथ दे रही है। अध्यापकों को चोर घोसित करने में मीडिया कोई कोर कसर नही छोड़ रही है।
दोस्तों, सरकार के इस मंसा को समझे अन्यथा आप खुद ही समझदार है और अपने भविष्य के लिए स्वयं ही जिम्मेदार है।
हालांकि हम लोगों के बीच कोई एकता नहीं है फिर भी नारा लगा देते है -" शिक्षक एकता जिन्दाबाद।"
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