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जल बचाएं, पर किससे और कैसे?...


                        'जल-बचाओ, जीवन-बचाओ'
                                        पर
                              कैसे और किससे?...




               दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर के बाद हमारे देश के खूबसूरत समुद्र के किनारे बसे चेन्नई शहर को भूमिगत जल-शुष्क शहर प्रचारित किया जा रहा है। और ऊपर से लेकर नीचे के स्तर तक इसका दोष आम जनता पर मढ़ा जा रहा है। ध्यान देंगे तो पाएंगे कि हमेशा हर समस्या की जड़ जनता और उसके प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को बताया जाता है। जबकि सर्वविदित तथ्य यह है कि जनता अपने प्राकृतिक संसाधनों-जलजंगलजमीन को बचाने के लिए पूरी दुनिया में प्राणों की आहुति देकर संघर्ष कर रही है।
            हकीकत यह है कि दुनिया का छोटा सा ऊपरी धनाढ्य तबका न केवल प्राकृतिक संसाधनों पर अन्याय और अत्याचार के बल पर कब्ज़ा जमाए है और इनका सर्वाधिक दुरुपयोग करता है बल्कि अपने मुनाफ़े को बढ़ाते रहने के लिए लगातार ऐसे तिकड़म रचता रहता है जिससे बचे-खुचे थोड़े बहुत संसाधनों पर भी वह कब्जा कर सके!



               https://youtu.be/Hq0XQa57FkA

पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ने के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक और अतार्किक दोहन करने के कारण इसमें संदेह नहीं कि पूरी दुनिया संकटग्रस्त होती जा रही है, हवा-पानी-मिट्टी सब बर्बाद और दूषित हो रहे हैं, किन्तु इसका मुख्य कारण जनसाधारण नहीं बल्कि वे नीतियाँ हैं जो इनका दोहन मुनाफालोभियों के लिए सुगम बनाती हैं। ...


                 https://youtu.be/x4O-Sys55K0

जल जैसे प्राणिजगत के लिए अपरिहार्य तत्त्व का अनियंत्रित दोहन भी इसी तरह का है। हम सब जानते हैं कि बोलिविया से लेकर भारत तक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इस जल पर पूर्ण नियंत्रण और उसकी बिक्री से मिलने वाले अकूत मुनाफे के लिए न जाने कितने तिकड़म अपनाए हैं। इसके कारण अनेक प्रकार के संघर्ष हुए हैं और अनेक मानवतावादी अपने प्राण भी गवां चुके हैं। लेकिन मुनाफालोभियों की लोभलिप्सा खत्म होने का नाम नहीं लेती।




इसलिए जब बच्चे/विद्यार्थी 'जल-बचाओ, जीवन-बचाओ' जैसे उत्साही नारे लगाएं, उन पर कार्यक्रम करें, नाटक खेलें या कविता रचें तो उन्हें यह भी बताया जाना चाहिए कि वे स्वयं अथवा भोली-भाली जनता को पानी नष्ट करने का अपराधबोध न कराएं बल्कि बड़े अपराधियों से भी धरती के अमूल्य जल को बचाने के उपाय भी खोजें!

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