भाषा की बंदी
- रहीम पोन्नाड
नोटबंदी की तर्ज पर केरल के एक कवि #रहीम_पोन्नाड ने मलयालम में एक कविता लिखी थी #भाषा_निरोधनम जिसका अनुवाद ए आर सिन्धुऔर वीना गुप्ता ने किया और हमने थोड़ा सा संपादन ! एक नए किस्म का प्रयोग है, भाषा के जरिए नोटबंदी की स्थितियों को फिर से जिया गया है ! #बादल_सरोज की वाॅल से यह कविता हिंदी दर्शन के जरिए प्राप्त हुई है ! आप भी आंनद लें :
प्रस्तुति: गुरचरन सिंह (फेसबुक- साभार)
भाषा की बंदी
एक दिन आधी रात को
उन्होंने भाषा पर पाबंदी लगा दी
घोषणा हुई आज से सब की एक ही भाषा होगी
पुरानी भाषा को डाकघर से बदल कर ले जा सकते हैं ।
नींद से उठ कर लोग इधर-उधर भागने लगे
हर जगह चुप्पी थी
माँओ ने बच्चों के मुंह को हाथ से दबाकर बंद किया,
ठूंसा गया बुजुर्गों के मुंह में कपड़ा,
रुक गया मंदिर में भजन
और मस्जिद से अज़ान भी,
रेडियो पर सिर्फ वीणा वादन हो रहा था
टीवी पर इशारों की भाषा में खबर चली
अखबार के नाम पर
आठ पन्नों का कोरा कागज मिला
खामोश हो गया हर एक की-बोर्ड
मोबाइल स्क्रीन पर सिर्फ चिन्ह दीखे ।
डाकघर की लाइन में सब खामोश खड़े थे
एक दिन में एक व्यक्ति
सिर्फ दो ही शब्द बदल सकता था,
कोई कोई तो बोरियां भरकर शब्द लाये थे
शब्दों से भरा 'टिफिन बॉक्स' और 'स्कूल बैग' लेकर
आए बच्चे भी खड़े थे लाइन में
जिसने 'अम्मा' दिया उसको 'मां' मिला
जिसने 'अब्बा' दिया उसको मिला 'बाप'
'चॉकलेट' और 'गेम' बदलने आए बच्चों को
वापस भेजा गया काउंटर से ही,
कहा, सिर्फ भाषा ही बदल सकते है।
बदले में शब्द ना होने के कारण
'बेजार' और 'कफन- को लौटाया गया
छुरी बदलने आए लोगों को भगा दिया गया
अफीम बदलने जो आए उन्हें पुलिस ने धर लिया,
लाइन में थके हुए बूढ़े ने 'पानी' मांगा तो
गोली से उसका मुंह बंद कर दिया गया ।
ये सब देखकर घर पहुंचा तो
आंगन में शब्दों का ढेर लगा था,
बदल कर लाने के लिए घरवालों ने
इकट्ठा किए थे शब्द नए, पुराने, बिना लिपि के;
तकिए से पापा ने जो शब्द निकाला
मेरी ही समझ में नहीं आया,
मां के पल्लू में भरे शब्दों को
कभी सुना ही नहीं था हमने,
बीवी ने रसोई में खींच लिया जब
तभी पता चला कि वह अब तक
इतने ही शब्दों के बीच पक रही थी
बेटी की बगिया में 'होमवर्क' का शब्द
बेटे के बक्से में अपनी जगह से हटे मजाकिया शब्द
कैसे बताऊं इनको
कि दो ही शब्द मिलेंगे इनको बदले में !!
शब्दों के ढेर में मैंने काफी खोजा
काफी मशक्कत के बाद आखिर में
एक-एक भारी भरकम शब्द
दोनों हाथों की सारी ताकत लगा कर
मैंने शब्दों को बाहर निकाला
'जनवाद' और 'विविधता',
भागते हुए डाकखाने पहुंचा
तो अंधेरा घिरने लगा था
मेरे हाथों में इन शब्दों को देखकर
काउंटर पर बैठे लोग चौंक कर खड़े हो गए
फिसलकर गिर गए मेरे हाथ से वे शब्द ;
कई लोगों के भागते हुए इकट्ठा होने और
बूटों की आवाज सुनाई दे रही थी
बेहोश होते होते बदले में मिले दो शब्द मैंने सुना
'मार डालो', देशद्रोही' !!!
★★★
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