शिक्षक-दिवस?...
क्या शिक्षक-दिवस?
प्राथमिक शिक्षा और उसके
प्राथमिक शिक्षा और उसके
शिक्षकों की व्यथा-कथा!
पिछले कुछ वर्षों से शिक्षकों से ही नहीं, बल्कि शिक्षा के प्रति शासक वर्ग का जो रवैया दिखाई दिया है, वह शिक्षकों को सम्मानित करने, शिक्षा को समाजोपयोगी बनाने का नहीं पूँजीपतियों की सेवा करने का रहा है। ऐसे में 5 सितंबर को अपने अग्रणी शिक्षक, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद करना शिक्षकों में एक ऐसी भावानुभूति पैदा करता है जिसमें उनकी स्मृतियों के प्रति सम्मान का अतिरेक तो वर्तमान शिक्षा के यथार्थ के प्रति गहरे क्षोभ की अभिव्यक्ति होती है।
पिछले कुछ वर्षों से शिक्षकों से ही नहीं, बल्कि शिक्षा के प्रति शासक वर्ग का जो रवैया दिखाई दिया है, वह शिक्षकों को सम्मानित करने, शिक्षा को समाजोपयोगी बनाने का नहीं पूँजीपतियों की सेवा करने का रहा है। ऐसे में 5 सितंबर को अपने अग्रणी शिक्षक, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद करना शिक्षकों में एक ऐसी भावानुभूति पैदा करता है जिसमें उनकी स्मृतियों के प्रति सम्मान का अतिरेक तो वर्तमान शिक्षा के यथार्थ के प्रति गहरे क्षोभ की अभिव्यक्ति होती है।
पांच सितम्बर, 2019 को पूरे उत्तर प्रदेश के शिक्षक 'प्रेरणा ऐप' को दुष्प्रेरणा ऐब यानी बुरी नीयत से जबरन सेल्फी-प्रशासन लागू करने की कोशिश मानते हुए विरोध-प्रदर्शन एवं धरने पर गए! शिक्षकों का कहना था कि तथाकथित 'प्रेरणा' ऐप अमेरिकी सर्वर द्वारा संचालित एक ऐसा असुरक्षित ऐप है जिसका परिणाम शिक्षकों को गैर-ज़िम्मेदार, कामचोर, लापरवाह, अनुशासनहीन आदि सिद्ध करके उनका वेतन काटना, अनुपस्थित दिखाकर दंडित करना, नौकरी से बर्खास्त करना आदि होना है।
ऐसे वातावरण में एक शिक्षक की अभिव्यक्ति कुछ इस तरह होती है:
★"जो साल भर भूंजे जाते है वो आज एक दिन पूजे जाएंगे!..
जिनका वेतन साल भर लोगों के दुःख का कारण बनता है वो भी आज आप को बधाई देंगे!..
'का मास्टर फ्री का वेतन लेते हो , मास्टर की ही मौज है- बोलने वाले सीने पे हिमालय रख के इस दिन की बधाई देंगे।..."★
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से शिक्षकों को फंसाने के इस तरह के हथकण्डे अपनाए जाते रहे हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि शासन-प्रशासन की नज़र में समाज का सबसे बड़ा दोषी और नाकारा वर्ग शिक्षकों का ही है! लेकिन अर्थव्यवस्था की खामियों से जूझ रही सरकारों का असल मकसद शिक्षा-व्यय में कटौती ही प्रतीत होता है! इसे छुपाने की हर कोशिश बेपर्दा होने के बावजूद शासकों की नीयत में कोई बदलाव आता नहीं दिख रहा है। हर स्तर की शिक्षा को निजी हाथों (पूंजीपतियों) को सौंपते जाने के बावजूद शिक्षा की हर दुर्दशा का कारण शिक्षकों को ठहराने की कोशिश शिक्षा को गड्ढे में ढकेल देने की कोशिश जैसी है! शायद इसीलिए शिक्षक की नौकरी की मांग कर रहे लाखों बेरोजगार नौजवान ही नहीं बल्कि किसी तरह नौकरी पा गए शिक्षक भी शासकों को बोझ की तरह लग रहे हैं!...
सोशल मीडिया पर शिक्षक शिक्षक-दिवस पर शुरू किए गए प्रेरणा-ऐप पर कुछ जिस तरह अपना क्षोभ और आक्रोश व्यक्त कर रहे थे,वह कालांतर में सत्य सिद्ध हुआ है!
"जिस प्रदेश में नामांकित छात्रों के अनुपात में लाखों शिक्षक कम हों, हजारों प्रधानाध्यापकों के पद रिक्त हों, सहायक अध्यापकों को बिना कोई अतिरिक्त भत्ता दिए प्रभारी प्रधानाध्यापक का अतिरिक्त कार्य लिया जा रहा हो, शिक्षा अधिकार अधिनियम के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों में प्रधान अध्यापक के अतिरिक्त कम से कम 5 शिक्षक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में प्रधान अध्यापक के अतिरिक्त कम से कम 4 शिक्षकों की व्यवस्था न हुई हो, पदोन्नति लम्बे समय से बाधित हो, वेतन विसंगति छठवे वेतन आयोग से चली आरही हो, और जहां सारे विद्यालयों में न चहारदीवारी भी न हो, न बच्चों को बैठने के लिए फ़र्नीचर हो, न शुद्ध पेय जल हो, न सफ़ाई कर्मचारी हों और न अनुचर हों, उस प्रदेश सरकार द्वारा आर टी ई के मानकों के अनुरूप अवस्थापना सुविधाओं की व्यवस्था किये बिना केवल शिक्षकों को अपमानित करने, और उन पर सन्देह करने का निरन्तर कार्य किया जा रहा हो, जहां निर्वाचन कार्य शिक्षक सबसे अच्छा करता है, पल्स पोलियो, जनगणना, भवन-निर्माण, मध्याह्न-भोजन गुणवत्ता में अव्वल हो, लेकिन फिर भी केवल उसके पढ़ाने यानी उसके मूल कार्य को लेकर उस पर शक किया जा रहा हो, यह किस तरह की सोच है?"....
प्रेरणा ऐप के सम्बंध में एक शिक्षक का कहना है कि ..."अब एक प्रेरणा ऐप लाया गया है, सुबह 8 बजे प्रार्थना सभा की फ़ोटो खींच कर अध्यापकों व बच्चों की गणना करनी है!... परिषद के विद्यालयों में आने वाले बच्चे बस, कार व ऑटो आदि में बैठकर तो विद्यालय आते नहीं, वे अपने घर में अपने अभिभावक के काम में सहयोग करते हैं! काम से फुरसत पा फिर देर से अपने विद्यालय पहुंचते हैं। बच्चे शिक्षा विभाग से वेतन नहीं पाते कि उन्हें अनुपस्थित कर सस्पेंड किया जाय! शिक्षकों को ही उन्हें और उनके अभिभावकों को मोटिवेट करना पड़ता है। आर्थिक अभावों से झूझ रहे बहुसंख्यक आबादी को यह मोटिवेशन तभी सार्थक लगता है जब उनकी रोटी-रोजी का न्यूनतम जुगाड़ हो! वे कुछ देर सवेर भी विद्यालय आते हैं। कुछ बच्चे तो प्रार्थना-सभा के बाद भी विद्यालय आते हैं। यदि ज़्यादा दबाव बनाया जाता है तो अभिभावक टका सा जवाब देता है- "अरे माट्टर साहब, एक दिन में न कलट्टर बन जावेगो!..."
एक शिक्षक का कहना है कि अच्छी बात है कि विद्यालय की व्यवस्था अपडेट हो, हाज़री अपडेट हो, लेकिन हर क्लास में शिक्षक भी तो हो, चहारदीवारी भी तो हो, शिक्षक समस्याओं का निदान भी तो हो, फ़र्नीचर, शुद्ध पेय जल, सुरक्षा के इंतजाम की कुछ व्यवस्था भी तो हो।...दूर-दूर से आने वाली महिला शिक्षकों के साथ आए दिन घटने वाली घटनाओं की कुछ रोकथाम भी तो हो!...
सोशल मीडिया पर शिक्षक शिक्षक-दिवस पर शुरू किए गए प्रेरणा-ऐप पर कुछ जिस तरह अपना क्षोभ और आक्रोश व्यक्त कर रहे थे,वह कालांतर में सत्य सिद्ध हुआ है!
"जिस प्रदेश में नामांकित छात्रों के अनुपात में लाखों शिक्षक कम हों, हजारों प्रधानाध्यापकों के पद रिक्त हों, सहायक अध्यापकों को बिना कोई अतिरिक्त भत्ता दिए प्रभारी प्रधानाध्यापक का अतिरिक्त कार्य लिया जा रहा हो, शिक्षा अधिकार अधिनियम के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों में प्रधान अध्यापक के अतिरिक्त कम से कम 5 शिक्षक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में प्रधान अध्यापक के अतिरिक्त कम से कम 4 शिक्षकों की व्यवस्था न हुई हो, पदोन्नति लम्बे समय से बाधित हो, वेतन विसंगति छठवे वेतन आयोग से चली आरही हो, और जहां सारे विद्यालयों में न चहारदीवारी भी न हो, न बच्चों को बैठने के लिए फ़र्नीचर हो, न शुद्ध पेय जल हो, न सफ़ाई कर्मचारी हों और न अनुचर हों, उस प्रदेश सरकार द्वारा आर टी ई के मानकों के अनुरूप अवस्थापना सुविधाओं की व्यवस्था किये बिना केवल शिक्षकों को अपमानित करने, और उन पर सन्देह करने का निरन्तर कार्य किया जा रहा हो, जहां निर्वाचन कार्य शिक्षक सबसे अच्छा करता है, पल्स पोलियो, जनगणना, भवन-निर्माण, मध्याह्न-भोजन गुणवत्ता में अव्वल हो, लेकिन फिर भी केवल उसके पढ़ाने यानी उसके मूल कार्य को लेकर उस पर शक किया जा रहा हो, यह किस तरह की सोच है?"....
क्षोभ की एक अन्य अभिव्यक्ति कुछ इस तरह है:
"शिक्षक को शिक्षा विभाग के अधिकारी, प्रशासन के अधिकारी, प्रधान, विधायक, सांसद, उनके प्रतिनिधि, तो चेक करते ही हैं, BDO/ADO, लेखपाल और तो और सफ़ाई कर्मी भी अब हमें चेक करने लग गये हैं, यानी जो हम से बहुत कम वेतन पाते हैं, जिनकी योग्यता हम से बहुत कम है वे भी हमारे विद्यालय में आकर साहिबी करते हैं।...इतने लोगों की फ़ौज लगाने के बाद भी सरकार को शिक्षकों पर संदेह करना उचित नहीं।"...प्रेरणा ऐप के सम्बंध में एक शिक्षक का कहना है कि ..."अब एक प्रेरणा ऐप लाया गया है, सुबह 8 बजे प्रार्थना सभा की फ़ोटो खींच कर अध्यापकों व बच्चों की गणना करनी है!... परिषद के विद्यालयों में आने वाले बच्चे बस, कार व ऑटो आदि में बैठकर तो विद्यालय आते नहीं, वे अपने घर में अपने अभिभावक के काम में सहयोग करते हैं! काम से फुरसत पा फिर देर से अपने विद्यालय पहुंचते हैं। बच्चे शिक्षा विभाग से वेतन नहीं पाते कि उन्हें अनुपस्थित कर सस्पेंड किया जाय! शिक्षकों को ही उन्हें और उनके अभिभावकों को मोटिवेट करना पड़ता है। आर्थिक अभावों से झूझ रहे बहुसंख्यक आबादी को यह मोटिवेशन तभी सार्थक लगता है जब उनकी रोटी-रोजी का न्यूनतम जुगाड़ हो! वे कुछ देर सवेर भी विद्यालय आते हैं। कुछ बच्चे तो प्रार्थना-सभा के बाद भी विद्यालय आते हैं। यदि ज़्यादा दबाव बनाया जाता है तो अभिभावक टका सा जवाब देता है- "अरे माट्टर साहब, एक दिन में न कलट्टर बन जावेगो!..."
एक शिक्षक का कहना है कि अच्छी बात है कि विद्यालय की व्यवस्था अपडेट हो, हाज़री अपडेट हो, लेकिन हर क्लास में शिक्षक भी तो हो, चहारदीवारी भी तो हो, शिक्षक समस्याओं का निदान भी तो हो, फ़र्नीचर, शुद्ध पेय जल, सुरक्षा के इंतजाम की कुछ व्यवस्था भी तो हो।...दूर-दूर से आने वाली महिला शिक्षकों के साथ आए दिन घटने वाली घटनाओं की कुछ रोकथाम भी तो हो!...
एक अन्य सोशल मीडिया समूह में अभिव्यक्त शिक्षकों का दर्द है कि "प्रेरणा ऐप आये, लेकिन उस से पहले दस वर्ष से रुकी स्थानांतरण की प्रक्रिया भी सम्पन्न हो! शिक्षक/शिक्षिका दसों वर्षों से दूर-दराज़ जगहों पर फंसे हुए हैं जबकि उनके आस पास के विद्यालयों में जगहें रिक्त हैं। आप पहले उन्हें तो व्यवस्थित कर दीजिए। शिक्षकों को उनके ग्रेड पे के अनुसार अन्य विभागों की तरह कैम्पस में आवास भी तो दीजिये।...लेखपाल, ब्लॉक, रेवेन्यू, सिंचाई विभाग, PWD आदि विभागों के कर्मचारियों से शिक्षकों की क्रॉस चेकिंग ही करानी है तो यह कार्रवाई एकतरफ़ा क्यों हो?... शिक्षकों से भी रेवेन्यू, ब्लॉक, PWD, सिंचाई विभाग की चेकिंग करने का मौका दीजिए,... फिर देखिए कितने घोटाले सामने आएंगे? क्या पढ़े-लिखे होने या बच्चों को पढ़ाने की शिक्षकों को यह सजा दी जाती है??... केवल शिक्षकों पर ही सन्देह क्यों?"...
एक शिक्षक की व्यथा है- अधिकारी विद्यालय में सुधार के लिए निरीक्षण नहीं करते, शिक्षकों-विद्यार्थियों की परेशानियों को दूर करने के लिए निरीक्षण नहीं करते!... मिड-डे-मील ठीक है कि नहीं, ड्रेस बढ़िया है कि नहीं, बच्चे कम क्यों आए- आदि-आदि सवाल या फिर शिक्षकों के औचक इम्तहान के लिए ही वे आते हैं!....उस पर भी वितरित किये गए फटे जूतोें, मोज़ों और बैग वितरण में एन.जी.ओ. की भूमिका पर कोई बात नहीं करेगा, यानी उसे प्रताड़ित करना है तो सिर्फ़ शिक्षक को!...जबकि NGO के भ्रष्टाचारों की कहानी सर्व विदित है, लेकिन अब तो उनका भी भरपूर दख़ल शुरू हो गया है। उन्हें तमाम तरह की ट्रेनिंग करा रहे हैं। मेहनत शिक्षक कर रहे, घर-घर जा कर शिक्षक ही बच्चों को विद्यालय ला रहे हैं और लखनऊ में नामांकन बृद्धि का आंकड़ा NGO पेश कर रहे हैं कि हमारी मेहनत से नामांकन बढ़ा। बताइए तो भाई! कौनसा एन जी ओ किस गांव में गया, ज़रा पता तो कीजिए!...
ऐसे में एक अन्य शिक्षक का यह सवाल मर्म पर चोट करता है- "जिस प्रदेश में शिक्षक पर संदेह किया जा रहा हो और जिस प्रदेश के विद्यालयों को अवस्थापना सुविधाओं से वंचित रखा गया हो, उस प्रदेश में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को सम्मानित करने का ढोंग क्यों?"...
★★★★★★ https://youtu.be/06cJG2VRBww (शिक्षक-दिवस पर देखिए, एक शिक्षक की व्यथा-कथा)
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