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नरक की कहानियाँ: ~ इक मुट्ठी आसमां

                   इक मुट्ठी आसमां             चाँद छुपता क्यों नहीं?           ट्रेन के बाहर मौसम बड़ा खुशगवार था। खिड़की से पूनम का चाँद यात्रियों के साथ-साथ चलता नज़र आ रहा था। चलते हुए चाँद का खिड़की के पास बैठा एक यात्री वीडियो बनाने लगा। दिल्ली से गाड़ी चले आधा घण्टा हो चुका था और आरक्षित डिब्बे के यात्री जबरन घुस आए डेली पैसेंजरों से एडजस्ट कर चुके थे। कुछ यात्री अभी भी खडे थे किंतु अधिकांश डिब्बे में पहले से बैठे यात्रियों से सटकर इधर-उधर की बातों में मशगूल हो रहे थे। एक पहले से बैठा यात्री अभी एक जबरन घुसे यात्री से उलझा रहा था। इन दोनों को झगड़ते देख अब तक खामोश बैठा एक यात्री बोल उठा- 'अरे यार, आप दोनों चुप हो जाओ, बेकार में तू-तू मैं-मैं करने से क्या फ़ायदा?... आखिर जाना सबको है। भाई साहब रेवाड़ी उतर जाएँगे, तब लेट जाना आप अपनी सीट पर!..'           यह सुनकर आरक्षित बर्थ का आदमी मुँह बनाते हुए चुप हो गया। उलझ रहे डेली पैसेंजर ने भी थोड़ा खिसकते हुए उसे और जगह दे दी। दो बर्थों पर तीन महिलाएं भी डेली पैसेंजर के रूप में बैठीं थीं और ऐसा लगता था तीनों किसी दुकान में काम करतीं हों