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कौन दबाव में है- किसान या सरकार?..

                संयुक्त किसान मोर्चा ने लिखा

                            प्रधानमंत्री को पत्र

लगता तो है कि हालात दबाव बना रहे हैं।... किसान आंदोलन पर एक दबाव है कोरोना का तो दूसरा दबाव  है मौसम का ! सरकार की बेरुखी और हठधर्मिता का दबाव किसानों पर नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन सरकार पर भी कम दबाव नहीं है। कोरोना की दुर्व्यवस्थाओं के चलते बिगड़े हालातों और किसान आंदोलन के प्रति जनता के सकारात्मक रुख से सरकार की छवि और धूमिल हो रही है। इन स्थितियों में जहाँ सरकार ने डीएपी के बढ़ाए दाम में किसानों को राहत दी है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। दूसरी तरफ 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध का भी आह्वान कर रखा है। क्या है इसका मतलब?..

पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति का सार:

★ संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा ; किसानों से बातचीत कर मांगे माने सरकार।

★ पर्यावरणविद सूंदर लाल बहुगुणा और किसान नेता बाबा गौड़ा पाटिल के निधन पर शोक।

 संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखते हुए किसानों से बातचीत करने की अपील की है। इस पत्र में मुख्य तौर पर किसान आंदोलन पर सरकार के रवैये का जिक्र किया गया है। इसके साथ ही ग्रामीणों व सामान्य नागरिको के लिए कोरोना महामारी से बचाव के लिए कदम उठाने का भी आह्वान किया है।

किसान नेताओ का कहना है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते सरकार को परिपक्वता दिखानी चाहिए व किसानों की मांगों पर विचार करना चाहिए। वे कानून जो किसानों द्वारा ठुकराए जा चुके है उन्हें जबर्दस्ती लागू करना देश की लोकतांत्रिक व मानवता के मूल्यों के खिलाफ है। संयुक्त किसान मोर्चा शांतिपूर्ण आंदोलन में विश्वास रखता है व शांतमयी विरोध ही जारी रखेगा। 

आज महान पर्यावरणविद व आंदोलनकारी श्री सूंदर लाल बहुगुणा का देहांत हो गया। संयुक्त किसान मोर्चा उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। अनेक आंदोलन के प्रणेता श्री बहुगुणा ने देश-दुनिया की पर्यावरण के बारे में समझ बढ़ाई व लोगो को पर्यावरण से जोड़ा। कर्नाटक से किसान नेता व भारत सरकार में पूर्व मंत्री श्री बाबा गौड़ा पाटिल के निधन पर संयुक्त किसान मोर्चा शोक व्यक्त करता है। कर्नाटक के किसानों की आवाज श्री गौड़ा का किसान कल्याण में योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।

इसके पूर्व संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान आंदोलन के 175 वें दिन DAP के बढ़े रेट वापस होने को  किसानों की जीत बताया तथा यह मांग की कि सरकार और भी दाम घटाए। मोर्चा ने सवाल खड़ा किया कि आत्मनिर्भर भारत नीति कहाँ है अगर विदेशों सेखाद भी मंगवानी पड़ रही है? मोर्चा ने सरकार द्वारा जारी बयान में DAP के रेट वापस 1200 करने के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया गया। ऐसे समय मे जब किसान चारों तरफ से मार झेल रहे है,  दिल्ली की सीमाओं सहित देश के अन्य हिस्सों में किसान 6 महीनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे है, पिछले महीने सरकार ने DAP के मूल्य बढ़ाने का फैसला किया था। किसानों के भारी दबाव के तले यह दाम वापस तो कर दिए परंतु DAP का मूल मुख्य 2400 हो गया है। सरकार किसी भी समय सब्सिडी हटा सकती है जिससे सारा भार किसानों पर आएगा।

सरकार ने अपने फैसले को किसानों के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला बताते हुए किसान कल्याण का दावा किया। DAP का बैग एक महीना पहले किसान के लिए 1200 ₹ में मिलता था जब उसका असल मूल्य 1700 ₹ था। एक महीना पहले जिस DAP बैग का मूल्य 1700 ₹ से बढ़ाकर 2400 ₹ कर दिया और उसमें 1200 ₹ सब्सिडी करके DAP का मूल्य वही 1200 ₹ ही रखा है। यहां किसान को तो कुछ भी नया नही मिला है। किसान की सब्सिडी के नाम पर फर्टिलाइजर कम्पनी को प्रति बैग पर सब्सिडी 500 रु से बढ़ाकर 1200 रु प्रति बैग कर दी है। सरकार इस फैसले को बहुत जोर-शोर से दिखाकर इसे भी उपलब्धि बता रही है। यह सिर्फ मीडिया हैडलाइन के लिए किए गए फैसले है। धरातल पर किसानों के जीवन मे कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आएगा। इस सम्बंध में सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने खाद के दाम बढ़ाये है। सयुंक्त किसान मोर्चा यह सवाल करता है कि मोदी सरकार बार बार आत्मनिर्भर भारत का नाम क्यों लेती है। इससे पहले भी मेक इन इंडिया का प्रचार क्यों करती थी जब देश की अपनी सरकारी व घरेलू संस्थाएं भी खाद बनाने में सक्षम क्यों नहीं है? सरकार आत्मनिर्भर भारत को सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल करती है वहीं देश मे कृषि सेक्टर की सरकारी संस्थानों को लगातार घाटे में रखकर बंद करने पर मजबूर किया जा रहा है। इसकी आड़ में बड़े कॉर्पोरेट्स को उत्पादन का एकाधिकार देकर किसानों को शोषण करने की नीति है।

अगर तीन नए कृषि कानून लागू होते है व MSP की कानूनी गांरटी नहीं मिलती तो DAP के ये भाव भी किसानों को बहुत नुकसान करेंगे। सरकार को कृषि इनपुट कॉस्ट में कमी करनी चाहिए चाहिए व पूरी पारदर्शिता के साथ MSP की गणना होनी चाहिए। यह सब MSP पर कानून बनने से व्यवस्थित रूप में होगा इसलिए किसान MSP के कानून की मांग कर रहे है।

सयुंक्त किसान मोर्चा यह भी अपील करता है कि बहस का मुख्य मुद्दा तीन कृषि कानून व MSP ही होना चाहिए। 470 किसानों की मौत के बाद भी सरकार किसानों को दिखावे के तौर पर खुश रखना चाहती है तो यह बहुत शर्म की बात है। सरकार अपनी इमेज पर ज्यादा ध्यान देती है न कि किसान कल्याण पर। सरकार को किसानों की मांगे मानकर असल मे किसान कल्याण करना चाहिए। सरकार किसानों से दुबारा बातचीत शुरू करें व किसानों की मांगें मानें।

प्रेसविज्ञप्ति जारीकर्ता-

 बलवीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मौला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उग्राहां, युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव, अभिमन्यु कोहाड़।

                                                     ★★★★★★★


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