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चित्रलेखा~ आज के राजकुमारों का लेखाजोखा

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                           चित्रलेखा उपन्यास: 

                           एक परिचय


'चित्रलेखा' हिन्दी साहित्य का एक ऐसा प्रसिद्ध उपन्यास है जिसकी प्रसिद्धि प्रेमचन्द के उपन्यास गोदान, फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास मैला आँचल, यशपाल के उपन्यास दिव्या आदि की तरह मानी जाती है। उपन्यास अपने प्रकाशन वर्ष सन् 1934 से ही यह चर्चा के केंद्र में रहा है। उपन्यास सामाजिक-आध्यात्मिक क्षेत्र के बहु-चर्चित मुद्दे- अध्यात्मवाद बनाम भौतिक जीवन को अत्यंत जीवन्त रूप में प्रस्तुत करता है। उपन्यास धर्म और समाज की पारम्परिक मान्यताओं को चुनौती देता है। सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में प्रचलित पाखण्डों पर चोट करने के कारण इसने साहित्यिक क्षेत्र में विशेष प्रसिद्धि पाई।

         चित्रलेखा उपन्यास को प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक-उपन्यासकार और सन् 1921 के साहित्य का नोबेल पुरस्कार विजेता अनातोले फ्रांस के उपन्यास थॉयसिस से प्रेरणा-प्राप्त उपन्यास कहा जाता है किंतु इसका विषय अनातोले फ्रांस के ही 1914 में प्रकाशित उनके  दूसरे उपन्यास 'रिवोल्ट ऑफ़ एंजेल्स' अथवा 'देवदूतों का विद्रोह' से ज़्यादा मिलता-जुलता है। इसके बावजूद भगवती चरण वर्मा ने चित्रलेखा की कथा को इतने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है कि किसी अन्य साहित्यिक-कृति से उसकी तुलना बेमानी लगती है। इसका विषय और विवाद भी हमारे देश के अध्यात्म और भौतिकता के विवादों पर ही आधारित है। यद्यपि उपन्यास पढ़ने पर ऐसा लगता है कि जैसे यह कोई ऐतिहासिक उपन्यास है और इसे चन्द्रगुप्त मौर्य के काल से जोड़ने का प्रयास भी किया गया है, किंतु इसके पात्रों का वास्तविक इतिहास से कोई लेना-देना नहीं। इसके पात्र पूरी तरह कथाकार की कल्पना के पात्र हैं। हाँ, लेखक ने बड़ी खूबसूरती से इन पात्रों को प्राचीन भारत के परिवेश में ढालने का प्रयास जरूर किया है।
           
        चित्रलेखा उपन्यास में प्रमुख स्त्री पात्रों के रूप में चित्रलेखा और यशोधरा का चित्रण किया गया है जबकि प्रमुख पुरुष पात्रों में बीजगुप्त, कुमारगिरि, श्वेतांक, विशालदेव, मृत्युंजय और महाप्रभु रत्नाम्बर हैं। लेकिन पूरी कहानी चित्रलेखा, बीजगुप्त और कुमारगिरि के इर्द-गिर्द घूमती है। श्वेतांक, विशालदेव, मृत्युंजय और यशोधरा कहानी को आगे बढ़ाने का काम करते हैं।
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                     चित्रलेखा उपन्यास के
                             प्रमुख पात्र


◆ चित्रलेखा
◆ यशोधरा
◆ बीजगुप्त
◆ योगी कुमारगिरि
◆ श्वेतांक
◆ महाप्रभु रत्नाम्बर
◆ विशालदेव
◆ मृत्युंजय
◆ कृष्णादित्य
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★★ चित्रलेखा उपन्यास पर केदार शर्मा द्वारा पहले 1941 में और दूसरी बार 1964 फिल्में बनाई गईं।
1941 में बनाई गई फ़िल्म में चित्रलेखा की भूमिका में मिस मेहताब और बीजगुप्त की भूमिका में नंद्रेकर ने अदाकारी की। 1964 में बनाई गई फ़िल्म में चित्रलेखा के रूप में मीनाकुमारी और बीजगुप्त के रूप में प्रदीप कुमार तथा योगी कुमारगिरि के रूप में अशोक कुमार ने भूमिकाएँ निभाईं।

★★ उपन्यास के दो प्रसिद्ध संवाद:

◆ ''कुमारगिरि योगी है, उसका दावा है कि उसने संसार की समस्त वासनाओं पर विजय पा ली है। संसार से उसको विरक्ति है, और अपने मतानुसार उसने सुख को भी जान लिया है, उसमें तेज है और प्रताप है; उसमें शारीरिक बल है और आत्मिक बल है। जैसा कि लोगों का कहना है, उसने ममत्व को वशीभूत कर लिया है। कुमारगिरि युवा है; पर यौवन और विराग ने मिलकर उसमें एक अलौकिक शक्ति उत्पन्न कर दी है। संसार उसका साधन है और स्वर्ग उसका लक्ष्य।.."- रत्नाम्बर

◆ "बीजगुप्त भोगी है; उसके हृदय में यौवन की उमंग है और आँखों में मादकता की लाली। उसकी विशाल अट्टालिकाओं में भोग-विलास नाचा करते हैं; रत्नजटित मदिरा के पात्रों में ही उसके जीवन का सारा सुख है। वैभव और उल्लास की तरंगों में वह केलि करता है, ऐश्वर्य की उसके पास कमी नहीं है। उसमें सौंदर्य है, और उसके हृदय में संसार की समस्त वासनाओं का निवास। उसके द्वार पर मातंग झूमा करते हैं; उसके भवन में सौंदर्य के मद से मतवाली नर्तकियों का नृत्य हुआ करता है। ईश्वर पर उसे विश्वास नहीं, शायद उसने कभी ईश्वर के विषय में सोचा तक नहीं है। और स्वर्ग तथा नरक की उसे कोई चिंता नहीं। आमोद और प्रमोद ही उसे जीवन का साधन है तथा लक्ष्य भी है।..." - रत्नाम्बर

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