Skip to main content

विद्यार्थी परीक्षा से नहीं, धोखाधड़ी से घबराएँ- बचें!

खुद को न दें धोखा, बढ़िया होगी परीक्षा!

                 विद्यार्थी और परीक्षा

किसी विद्यार्थी के लिए परीक्षा किसी कक्षा में उत्तीर्ण होने की परीक्षा ही नहीं होती, यह उसके जीवन की परीक्षा भी होती है। उसने पढ़-लिखकर कुछ सीखा भी या यूँ ही 'टाइम-पास' किया, इसकी भी परीक्षा किसी कक्षा की परीक्षा के साथ ही होती चलती है। जो विद्यार्थी किसी 'शॉर्टकट', किसी 'इम्पोर्टेन्ट' के चक्कर में लगा रहता है, वह अपने जीवन में फेल होता है- किसी परीक्षा में जैसे-तैसे भले ही 'पास' हो जाय! विद्यार्थी-जीवन जीवन का वह अनमोल समय होता है जो मनुष्य को सोना या मिट्टी में से एक चुनने का अवसर देता है। जीवन की सफलता किसी परीक्षा में उत्तीर्ण होने भर से नहीं आँकी जाती, कोई व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का कितना बढ़िया हल निकाल सकता है, इससे भी तय होती है। 

         विद्या को हमारे देश में 'सरस्वती' देवी की उपाधि से विभूषित किया गया है। इसका मतलब यह नहीं कि सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर पूजा-आराधना करने से विद्या आ जाएगी, ज्ञान प्राप्त हो जाएगा; बल्कि इसका तात्पर्य यही है कि निरन्तर प्रवाहित होने वाली अपनी मन-वचन-कर्म की इंद्रिय रूपी नदियों को सक्रिय रखना, उन्हें सूखने न देना है। यह एक सहज- साधना है। यदि आप विद्यार्थी हैं और खुद को धोखा नहीं देते, अपने मन को सत्कर्म अर्थात् विद्याध्ययन में लगाते हैं तो आपमें सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। यह ऊर्जा आपको अच्छे रास्ते की ओर ले जाती है, आपकी सद्बुद्धि को गतिशील रखती है। इससे आप बड़ी आसानी से सफलता की ओर उन्मुख होते हैं। 

         दरअसल, यह जीवन हर पल हमारी परीक्षा लेता रहता है। हम जितनी शिद्दत, जितनी गम्भीरता से यह परीक्षा देते चलते हैं, सफलता और खुशियों के दरवाजे उतनी ही आसानी से खुलते जाते हैं। हमारी सक्रियता से ही हमारे मन में विराजमान देवी 'सरस्वती' (निरन्तर प्रवाहित होने वाली बुद्धि) प्रसन्न होती हैं। वे प्रसन्न होती हैं तो हमारा जीवन प्रसन्न होता है। इसलिए कोई भी परीक्षा हमारी अपनी परीक्षा, हमारे जीवन की परीक्षा है- अपने मन, अपने हृदय में स्थित 'सरस्वती' की पूजा है, आराधना है।

【विद्यार्थी इस विषय में बेबाक होकर अपने विचार Comment Box में लिखें ताकि इस विषय में उनकी शंकाओं और जिज्ञासाओं का समाधान किया जा सके】

                                ★★★★★★★

Comments

Popular posts from this blog

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और...