पेरिस कम्यून और शहीद भगत सिंह एवं उनके
साथियों को याद करने का महीना
- अशोक प्रकाश
Picture Courtesy: marxist.com
मार्च का महीना हिंदुस्तानियों के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया की शोषित-पीड़ित जनता के लिए खास महीना है! यह कार्ल मार्क्स, पेरिस कम्यून, मैक्सिम गोर्की, शहीद भगत सिंह और उनके साथियों, अवतार सिंह पाश को याद करने का महीना है।
...और हाँ, मार्च के इसी महीने में शहीद भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव ने शहादत दी जो देश के सामने बहुत से सवाल और उनके जवाब छोड़ गई! इसका प्रत्यक्ष और व्यापक प्रभाव पड़ा और कुछ समय बाद अंग्रेजों को मजबूरन देश छोड़ना पड़ा! भले ही इन शहीदों के सपनों का भारत नहीं बन सका!...
हो सकता है शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहादत-दिवस हम 23 मार्च की जगह 24 मार्च को मना रहे होते!...
हो सकता है 1931 में कांग्रेस का वह अधिवेशन कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया होता!...
हो सकता है, इन शहीदों को भी 'कालापानी' की सजा हो जाती और वे 1947 के बाद भी सक्रिय होते!...
हो सकता है, जमीन का 'राष्ट्रीयकरण' हो जाता ताकि उस पर सामूहिक-खेती होती...और कारखानों का राष्ट्रीयकरण हो जाता ताकि मज़दूरों को कम से कम नियमित और निश्चित मज़दूरी मिलती- सभी मज़दूरों को पेंशन,बोनस,फंड मिल सकता...हो सकता है शहीदों की देश की जनता के लिए मांगी जाने वाली ये साधारण सी मांगें 1947 के बाद पूरी हो गई होतीं!...
हो सकता है, जाति या धर्म के आधार पर भेद और उत्पीड़न को समाज में अपराध की तरह प्रचार-प्रसार करने के सरकारों ने हर संभव प्रयास किए होते! वर्णव्यवस्था अतीत की बर्बरता मानी जाती और किसी को भी उत्पीड़ित करने की मध्ययुगीन हरकतों पर किसी के भी खिलाफ सचमुच कठोर कार्रवाई हो पाती!...
हो सकता है, लुटेरी बहुराष्ट्रीय/विदेशी कंपनियों को 'विदेशी-निवेश' के नाम पर देश में आमंत्रित करने और जल-जंगल-जमीन के जनता के प्राकृतिक संसाधनों को उन्हें सौंपने के लिए हमारे देश के किसी नेता को पूरी दुनिया में भागा-भागा न फिरना पड़ता, चक्कर न लगाना पड़ता!...हो सकता है देश के पूंजीपति अरबों-खरबों की संपत्ति के मालिक न होकर आम नागरिक की तरह देश के निर्माण और प्रगति में अपनी स्वाभाविक भूमिका निभा रहे होते!...
किन्तु, यह सब नहीं हुआ! शहीदों की उम्मीदों का देश नहीं बना और वर्ण-वर्ग व्यवस्था की जंजीरों में अभी भी समाज जकड़ा हुआ है!..
इसीलिए शहीद भगत सिंह के सवाल, बेहतर दुनिया- व्यापक मानवतावादी दुनिया बनाने की ख़्वाहिश रखने वालों के सपने अभी भी जिंदा हैं! जिंदा हैं ये सपने मेहनत और सुकून से काम करने की इच्छा रखने वालों में... गलियों, चौराहों, गांवों, बस्तियों, कल-कारखानों, देशी-विदेशी मालों में काम करने वालों में...बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में 12 घण्टे से अधिक काम करने वाले तथाकथित सॉफ्टवेयर इंजीनियरों, कामगारों के दिलों में!...
सवाल हैं, इसीलिए, हाँ...
शहीद भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव को याद करने के कारण हैं! मार्च का महीना बेहतर दुनिया बनाने के सवालों और जवाबों पर चिंतन करने का महीना है!
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